कामगार एकता कमेटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट
सार्वजनिक क्षेत्र के मज़दूर और केंद्र व राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के मज़दूरों का एक बड़ा हिस्सा लगातार नई पेंशन योजना (NPS) को समाप्त करने और पुरानी पेंशन योजना (OPS) को बहाल करने की मांग कर रहा है। जबकि सरकारें अपने करोड़ों मज़दूरों की बात सुनने से इनकार कर रही हैं और NPS को जारी रखने पर अड़ी हुई हैं, वहीं NPS व्यवस्था के तहत कर्मचारियों को हो रही कठिनाइयों और नुकसानों को उजागर करने वाली कई कहानियाँ सामने आ रही हैं।
1 नवंबर 2005 के बाद NPS मॉडल में परिवर्तित हुई परिभाषित अंशदान पेंशन योजना (DCPS) के तहत, सभी सरकारी कर्मचारियों को अपने मूल वेतन का 10% पेंशन में देना होता है तथा राज्य भी उतनी ही राशि का योगदान करता है। वेतन देते समय, संबंधित विभागों को मूल वेतन का 10% काटकर, राज्य के अंशदान के साथ, कर्मचारी के स्थायी सेवानिवृत्ति खाता संख्या (PRAN) में तुरंत जमा करना होता है।
हालांकि, समाचार रिपोर्टों से संकेत मिला है कि वेतन का भुगतान करते समय संबंधित विभाग अक्सर मूल वेतन का 10% काट लेते हैं, लेकिन उसे तुरंत संबंधित PRAN खातों में जमा नहीं करते हैं। ऐसे ही एक मामले में, मुंबई शहर के सरकारी सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के हजारों शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों ने आरोप लगाया है कि संबंधित सरकारी विभाग जनवरी 2025 से उनके राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) अंशदान को उनके व्यक्तिगत खातों में जमा करने में विफल रहा है। महाराष्ट्र प्रोग्रेसिव टीचर्स एसोसिएशन (MPTA) के अनुसार, यह चूक 15,000 से अधिक कर्मचारियों को प्रभावित करती है। MPTA ने कहा कि जुलाई 2025 के अंत तक, राज्य ने जनवरी से जून 2025 तक की NPS कटौती अभी तक जमा नहीं की है, जिससे कई लोगों को दीर्घकालिक वित्तीय नुकसान हो रहा है। MPTA के राज्य अध्यक्ष ने तत्काल सुधार और जवाबदेही की मांग की है।
चिंताओं पर प्रतिक्रिया देते हुए, एक शिक्षा अधिकारी ने कथित तौर पर कहा, “यह एक तकनीकी त्रुटि प्रतीत होती है। हम इसकी जाँच करेंगे और जल्द से जल्द समस्या का समाधान करेंगे।” क्या कोई यह मान सकता है कि किसी “तकनीकी गड़बड़ी” को ठीक होने में छह महीने लगेंगे? यह बिल्कुल स्पष्ट है कि राज्य को अपने मज़दूरों के कल्याण की कोई चिंता नहीं है।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के कार्यालय के अनुसार, व्यय विभाग के एक परिपत्र में कहा गया है कि NPS अंशदान जमा करने में किसी भी प्रकार की देरी, जो अंशदाता के कारण नहीं है, के परिणामस्वरूप विलंबित अवधि के लिए ब्याज सहित राशि जमा की जाती है। हालाँकि, इस परिपत्र का ऐसे मामलों में स्वयं रूप से पालन सुनिश्चित करने के लिए किसी भी तंत्र का उल्लेख नहीं है। CAG के अनुसार, धनराशि के हस्तांतरण में एक दिन की भी देरी अंतिम पेंशन राशि पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, जिससे इसमें लगभग ₹40,000 की कमी हो सकती है!
स्पष्ट रूप से, केंद्र और राज्य सरकारें कल्याणकारी योजनाओं और यहाँ तक कि मज़दूरों के वेतन में कटौती करके “मितव्ययिता के उपाय” (austerity measures) लागू करने की कोशिश कर रही हैं। साथ ही, यही सरकारें, हमारे देश के मेहनतकश लोगों से बिना किसी चर्चा के, बड़े पूंजीपतियों को दिए गए लाखों करोड़ रुपये के कर्ज़ों को हाथोंहाथ माफ़ कर देती हैं।
ऐसे अनुभवों पर विचार करना और यह प्रश्न उठाना आवश्यक है कि, “क्या ये सरकारें वास्तव में जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा हैं” या “क्या ये पूँजीपति वर्ग की, पूँजीपति वर्ग के लिए और पूँजीपति वर्ग द्वारा सरकारें हैं?”