स्मार्ट प्रीपेड मीटर घोटाले के चलते एक लाख 15 हजार करोड़ रुपए का एरियर खतरे में पड़ने की आशंका :

निजीकरण हेतु प्रीपेड मीटर लगाकर डाउन साइजिंग करने की साजिश:

निजीकरण के विरोध में प्रान्त भर में विरोध प्रदर्शन

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश की प्रेस विज्ञप्ति

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश

प्रेस विज्ञप्ति

2 सितंबर 2025

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने आशंका जताई है कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर घोटाले के चलते विद्युत वितरण निगमों का 115000 करोड़ रुपए का एरियर खटाई में पड़ सकता है। संघर्ष समिति ने यह भी आरोप लगाया है कि निजीकरण हेतु स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने के नाम पर बड़े पैमाने पर डाउन साइजिंग की जा रही है।

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के केंद्रीय पदाधिकारियों ने आज यहां बताया कि सीतापुर, गोण्डा आदि स्थानों पर पकड़ा गया स्मार्ट प्रीपेड मीटर घोटाला निजी कंपनियों और दोषी उपभोक्ताओं की मिलीभगत के साथ किसी बड़ी साजिश का हिस्सा भी हो सकता है।

संघर्ष समिति ने कहा कि यह ध्यान देने की बात है कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के पीछे सबसे बड़ा तर्क घाटे का दिया जा रहा है। संघर्ष समिति ने कहा कि वैसे तो पावर कार्पोरेशन प्रबंधन घाटे के झूठे और मनगढ़ंत आंकड़े दे रहा है। किन्तु स्मार्ट मीटर लगाने वाली कंपनियों की पुराने मीटर की रीडिंग शून्य करने या नष्ट करने के समाचार बहुत खतरनाक संदेश दे रहे हैं जिसे समय रहते न रोका गया तो बिजली राजस्व का बकाया वसूलना नामुमकिन हो जाएगा और वस्तुतः घाटा और बढ़ जाएगा।

संघर्ष समिति ने कहा कि वर्तमान में विद्युत वितरण निगमों का उपभोक्ताओं पर लगभग 115000 करोड रुपए का बिजली राजस्व का बकाया है। पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन के आंकड़ों के अनुसार लगभग 110000 करोड रुपए का घाटा है। संघर्ष समिति प्रारंभ से ही यह बात कह रही है कि 115000 करोड रुपए का राजस्व वसूल लिया जाए तो कोई घाटा नहीं रहेगा, उल्टे पावर कॉरपोरेशन 5000 करोड रुपए के मुनाफे में आ जाएगा।

संघर्ष समिति ने कहा कि उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार लगभग 34 लाख स्मार्ट मीटर लगाए गए हैं और इनमें से लगभग 06 लाख स्मार्ट मीटर अभी तक वापस नहीं किए गए हैं। कितने लाख मीटर में पुरानी रीडिंग शून्य की गई है या नष्ट की गई है यह एक बड़ी जांच का विषय है।

संघर्ष समिति ने कहा कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर निजीकरण की प्राथमिक शर्त है। स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगने के बाद निजीकरण होने पर निजी कंपनियों को राजस्व वसूली में किसी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा और उन्हें स्वतः राजस्व मिलता रहेगा। स्पष्ट है कि निजीकरण हेतु स्मार्ट मीटर लगाए जा रहे हैं और इस नाम पर पावर कार्पोरेशन प्रबंधन ने निजीकरण के पहले बड़े पैमाने पर डाउनसाइजिंग करना प्रारंभ कर दिया है।

वर्ष 2017 के मापदंडों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में प्रति सबस्टेशन 20 कर्मचारी और शहरी क्षेत्र में 36 कर्मचारियों का नियम था। बड़े पैमाने पर संविदा कर्मचारियों की डाउन साइजिंग करने के लिए मापदंड में प्रतिगामी परिवर्तन किया गया। उपभोक्ताओं की संख्या 2017 की तुलना में कई गुना बढ़ चुकी है। इसके बावजूद अब शहरी क्षेत्र में प्रति सबस्टेशन 18:30 कर्मचारी और ग्रामीण क्षेत्र में प्रति सबस्टेशन 12.5 कर्मचारी का मापदण्ड बनाकर बड़ी संख्या में संविदा कर्मी निकाले जा रहे हैं। यह सब निजी घरानों की मदद के लिए किया जा रहा है।

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