द्वारा आर सावंत, एक आईटी मज़दूर
जब मैंने अपने दोस्तों के साथ एयर इंडिया के निजीकरण की खबर साझा की, तो उनमें से कुछ ने कहा, ‘कम से कम वह एक अच्छा पूंजीपति है’! कुछ साल पहले, एक और मित्र, जिसने टाटा की कोयला खदानों में मज़दूरों के शोषण को देखा था, ने कहा, ‘मैंने कभी नहीं सोचा था कि टाटा ऐसा करेगा’। यह सोच कि टाटा एक अच्छा पूंजीपति है, वह मुख्यधारा के मीडिया द्वारा जानबूझकर निर्मित की गयी है, और ये मीडिया पूंजीपतियों के मालिकी की ही है! लेकिन सच्चाई यह है कि टाटा किसी भी अन्य पूंजीपति की तरह है।
एयर इंडिया की बिक्री पर्याप्त सबूत देती है: एयर इंडिया की रु 50,000 करोड़ से अधिक मूल्य की संपत्ति के लिए टाटा केवल रु 2,700 करोड़ देगा। इसके अलावा, बिक्री के अनुबंध के नुसार टाटा को एयर इंडिया के वर्तमान मज़दूरों को केवल एक वर्ष के लिए बनाए रखना आवश्यक है। इसका मतलब यह है कि टाटा प्रबंधन अगले साल मज़दूरों को नौकरी से निकालके अन्य मज़दूरों को ठेके पर रख के उनसे कम वेतन पर अधिक काम करवाने के लिए स्वतंत्र होगा। इस जानकारी से मेरे कई दोस्त चौक गए। टाटा सहित सभी पूंजीवादी उद्यमों में मज़दूरों को कम वेतन, नौकरी की असुरक्षा और अत्यधिक शोषण के साथ रहने के लिए मजबूर किया जाता है। वास्तव में, दुनिया भर के मज़दूरों ने वर्षों से टाटा की मजदूर-विरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष किया है।
यह स्पष्ट है कि सभी पूंजीपतियों के हित मज़दूरों के कल्याण के खिलाफ हैं, और इसमें कोई अपवाद नहीं है। इसलिए हमें अच्छे पूंजीपति–बुरे पूंजीपति के मिथक को तोड़ना होगा। एयर इंडिया की बिक्री, अन्य सार्वजनिक संपत्तियों की योजनाबद्ध बिक्री की तरह, देश के लाभ के लिए नहीं बल्कि मुट्ठी भर पूंजीपतियों के लाभ के लिए की गयी है। हमें इस फोरम के मंच का उपयोग मुख्यधारा के मीडिया के झूठे प्रचार का मुकाबला करने और अधिक उपभोक्ताओं को निजीकरण-विरोधी संघर्ष में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए करना चाहिए ताकि संघर्ष और मजबूत बने।
टाटा के खिलाफ सिर्फ हिन्दुस्तानी मज़दूरों ने ही नहीं बल्कि UK और नेदरलॅंड्स जैसे देशों के मज़दूरों ने भी आंदोलन किए है| पूंजीवाद दुनिया के सारे मज़दूरों का शोषण करता है….. हमारी लड़ाई सिर्फ हमारे देश तक सीमित नहीं है| ये दुनियाभर के मज़दूरों की लड़ाई है!
आपने साणंद का जो फोटो दिखाया है, उसकी कहानी भी महत्वपूर्ण है| वहा पर मज़दूरों ने यूनियन बनाया ताकि उनकी मांगे पूरी हो| लेकिन मैनेजमेंट ने तुरंत यूनियन के २०-२५ मज़दूरों को नौकरी से निकाल दिया | फिर सैकड़ों मज़दूरों ने एक महीने हड़ताल की| लेकिन ये सोचने की बात है- क्यों ये पूंजीपति का मैनेजमेंट यूनियन से इतना डरता है? क्यों उन्हें हमारी एकता से तकलीफ होती है? बात तो साफ़ है- एकता ही मज़दूर वर्ग की ताकत है| सोचिये अगर हम सारे मज़दूर एक साथ आंदोलन करें तो क्या निजीकरण हो पायेगा? साथियों हम में इतनी ताकत है की हम देश चला सकें| अभी एकजुट होना अनिवार्य है|