केईसी संवाददाता की रिपोर्ट
28 अक्टूबर से, महाराष्ट्र में सभी 250 एसटी डिपो के एक लाख से अधिक कर्मचारियों ने संबद्धता की सभी बाधाओं को पार किया और राज्य सरकार के साथ एमएसआरटीसी के विलय की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए। जहां सरकारी कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग के अनुसार वेतन मिलता है, वहीं एमएसआरटीसी मज़दूरों का वेतन चौथे वेतन आयोग के अनुरूप भी नहीं है।
28 अक्टूबर से, महाराष्ट्र में सभी 250 एसटी डिपो के एक लाख से अधिक मज़दूरों ने संबद्धता की सभी बाधाओं को पार किया और राज्य सरकार के साथ महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) के विलय की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए। जहां सरकारी कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग के अनुसार वेतन मिलता है, वहीं एमएसआरटीसी मज़दूरों का वेतन चौथे वेतन आयोग के अनुरूप भी नहीं है। इसलिए उनकी विलय की मांग उठाई गई है।
एमएसआरटीसी 18,849 बसों के बेड़े और लगभग एक लाख कर्मचारियों के साथ महाराष्ट्र में राज्य सरकार का सबसे बड़ा उपक्रम है। महामारी से पहले यह प्रतिदिन 80 लाख से अधिक यात्रियों को ले जाता था। यह राज्य के सभी शहरों, कस्बों और अधिकांश गांवों की सेवा करता है और कुछ पड़ोसी राज्यों में भी सेवाएं प्रदान करता है। एसटी, जैसा कि इसे लोकप्रिय रूप से कहा जाता है, लोगों के जीवन में, विशेष रूप से ग्रामीणों के जीवन में, परिवहन के एकमात्र साधन के रूप में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और इसे चलाने वाले कर्मचारी उनके मित्र हैं।
एमएसआरटीसी के मज़दूरों की यह मांग न केवल न्यायसंगत है, बल्कि सार्वजनिक सड़क परिवहन के निजीकरण की सरकार की योजना को भी विफल कर देगी। वर्षों से सरकार राज्य परिवहन (एसटी) सेवाओं की कीमत पर निजी वाहक को बढ़ावा देकर निजीकरण की दिशा में आगे बढ़ रही है।
राज्य सरकार ने उनकी जायज मांगों को पूरा करने के बजाय निजी बसों को लगा कर हड़ताल तोड़ने का हर संभव प्रयास किया है।
जब इसके मज़दूरों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का फैसला किया, तो हजारों लोगों ने उनका समर्थन किया, जैसा कि हमने पहले रिपोर्ट किया है। (देखिये: एसटी श्रमिकों की हड़ताल के लिए 86000 बिजली कर्मचारियों, इंजीनियरों, अधिकारियों का समर्थन।)
साथियों, मैं एसटी मजदूरों के जायज मांगों का पूर्ण समर्थन करता हूँ | आजकल अखबारों में एवं टीवी पर बहोत सारे खबरों में प्रवासियों को होने वाले परेशानियों के लिए एसटी मजदूरों को जिम्मेदार ठहराया जाता है | यह न पहली बार हुआ है और न ही ये आखिरी बार हुआ है की सत्ता में बैठे लोग मजदूर और उपभोक्ताओं को एक दूसरे के खिलाफ भड़का रहे हो| अगर कोई भी समझदार व्यक्ति एसटी मजदूरों की मांगों का ठीक से अध्ययन करे तो जरूर समझेगा की वास्तव में उनकी मांगे व्यापक जनसमूह के हित में है| जैसा की केईसी के रिपोर्ट में कहा है पूंजीपतियों की सभी सरकारें हरेक सार्वजनिक क्षेत्र का पहले निगमीकरण करके उन्हें कौड़ियों के दाम पर निजी मुनाफाखोरों के हाथ सौपना चाहती हैं| महाविकास आघाडी की सरकार भी इसका अपवाद नहीं हैं| हम सभी मजदूरों को फिर वे चाहे रेलवे में हो या बैंकों में या कोई अन्य क्षेत्र में हो बिजली मजदूरों से सिख लेकर इस संघर्ष में एसटी कामगारों का साथ देना चाहिए|
मजदूर एकता जिंदाबाद
निजीकरण की कोशिशें मुर्दाबाद
एक पर हमला सब पर ,मजदूर एकता जिंदाबाद
लढाकु एस. टी. कामगारांना लाल सलाम