महिला पहलवानों के साथ खड़ी हैं पूरे भारत की महिलाएं

महिला संगठनों द्वारा जारी राष्ट्रपति को ज्ञापन

ज्ञापन

महिला पहलवानों के साथ खड़ी हैं पूरे भारत की महिलाएं
POCSO सहित यौन शोषण के कई मामलों में आरोपी सांसद और भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह का बचाव बंद कर उचित कार्रवाई करें।

हमारी मांगें

• बृज भूषण शरण सिंह की तुरंत गिरफ्तारी
• क़ानूनों का पालन करने में नकाम रहने वाली भारतीय ओलिम्पिक संघ की समिति को भंग किया जाए
• निष्पक्ष जांच हो और सभी मामलों में आरोप पत्र दाखिल किए जाएँ
• प्रदर्शनकरियों पर हमले और अनियमितताओं के लिए दोषी दिल्ली पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए

नई दिल्ली
19 मई, 2023

माननीया द्रौपदी मुर्मु,
भारतीय राष्ट्रपति,
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली 110001

विषय: एक नाबालिग सहित सात पहलवानों के लिए न्याय की मांग, जिनका सांसद और हाल तक भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष रहे बृज भूषण शरण सिंह ने यौन शोषण किया

महोदया,

भारत के महिला संगठन सात महिला पहलवानों के साथ हुए यौन शोषण के खिलाफ और आरोपी भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के पूर्व अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह व्यवस्था को मिल रहे व्यवस्थागत संरक्षण के खिलाफ विरोध में अपनी आवाज़ मिलाने के लिए एक साथ खड़े हैं। हमें यह जानकर बहुत हैरानी हुई कि फरवरी 2011 में जब से बृज भूषण शरण सिंह पर भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्षा का पदभार संभाला, तब से वह बेखौफ सभी उम्र की महिलाओं का यौन शोषण करने के गंभीर मामलों में संलग्न होने का आरोप है। यहां तक कि आरोपी ने 18 साल से कम उम्र की लड़कियों को भी नहीं बख्शा। चाहे प्रशिक्षु हों या प्रतियोगी या चैंपियन, आरोपी ने खिलाड़ियों को ज़ोर-जबर्दस्ती पकड़ने या उनके साथ अंतरंग होने का कोई अवसर नहीं गंवाया। इस तरह के आचरण के बावजूद सिंह को मई 2023 तक लगातार WFI के अध्यक्ष पद पर बने रहने दिया गया।

पूरा कुश्ती संघ और का समुदाय जो हो रहा था उसका गवाह था। लेकिन सिंह की ताकत के आगे खिलाड़ियों के कोच भी इस कदर लाचार रहें कि जब महिला खिलाड़ियों ने उनसे गुहार की कि वे किसी आधिकारिक काम से भी सिंह से नहीं मिलना नहीं चाहतीं, तो कोच ने उन्हें मिलने से रोक पाने में अपनी मजबूरी बता दी। उनके पास अपना शोषण करने वाले से मिलने से बच पाने का कोई रास्ता नहीं था। महासंघ में व्याप्त डर, सिंह की ज़्यादतियों को सहने से इंकार करने पर खेलों में चयन से बाहर कर दिये जाने, प्रताड़ना और डराने-धमकाने की संस्कृति के चलते उनके पास चुप रहने के सिवा कोई विकल्प नहीं रह गया था।

यह जानना महत्वपूर्ण है कि खेल संघ उस कानूनी प्रावधान का भी पालन करने में नाकाम रहा है जिसके तहत में इस तरह की शिकायतों के निराकरण के लिए एक आंतरिक समिति का होना अनिवार्य है ताकि खिलाड़ी इस तरह की निरंतर हिंसा या उनकी शारीरिक गरिमा के उल्लंघन के खिलाफ आवाज़ उठा सकें और उनका निराकरण किया जा सके।

जब और अधिक सहना असंभव हो गया तो पहलवानों के एक समूह ने चुप्पी तोड़ने का निर्णय किया और 18 जनवरी 2023 को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया। इस दिन अनेक महिला खिलाड़ियों और उनके पुरुष साथियों ने मिल कर सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों को सबके सामने रखा।

इसके जवाब में खेल मंत्रालय और भारतीय ओलिम्पिक संघ ने एक-एक समिति का गठन किया, लेकिन दोनों ही समितियां कानून का पालन करने में नाकाम रहीं।

भारतीय ओलिम्पिक संघ (आईओए) ने 21 जनवरी 2023 को मुक्केबाज़ी में पदक लाने वाली चैम्पियन मैरी कॉम की अध्यक्षता में समिति का गठन किया। अन्य सदस्यों में आईओए के संयुक्त सचिव आईओए, अलकनंदा अशोक, और खिलाड़ी सहदेव यादव, डोला बनर्जी, योगेश्वर दत्त, और वकील, श्लोक चंद्र और तलिश रे शामिल थे। इस बात पर विशेष रूप से ध्यान देने की ज़रूरत है कि समिति में यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 के तहत अपेक्षित कोई बाहरी स्वतंत्र सदस्य नहीं था। (पॉश अधिनियम)

दिलचस्प बात यह है कि 23 जनवरी 2023 को खेल मंत्रालय ने भी एक निगरानी समिति का गठन किया और इसकी भी अध्यक्ष मैरी कॉम को बनाया गया और इसमें भी योगेश्वर दत्त सदस्य थे। अन्य सदस्यों में टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (TOPS) के पूर्व सीईओ कैप्टन राजगोपालन, SAI की पूर्व कार्यकारी निदेशक (टीम) राधिका श्रीमन और खिलाड़ी तृप्ति मुर्गुंडे शामिल थे। बाद में कुश्ती चैंपियन बबीता फोगट को छठे सदस्य के रूप में शामिल किया गया। निगरानी समिति को यौन उत्पीड़न, भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करनी थी और इसकी जांच की अवधि के दौरान डब्ल्यूएफआई का कामकाज भी देखना था। समिति को अपनी रिपोर्ट देने के लिए एक माह का समय दिया गया।
दशकों से इन मुद्दों पर काम करने वाले महिला समूहों के रूप में हमारा अनुभव यह कहता है कि एक ही समय में, एक ही मुद्दे पर ऐसी दो समितियों की एक साथ स्थापना न्याय के उद्देश्य को नुकसान पहुँचती हैं, खासतौर से जब दोनों का नेतृत्व एक ही अध्यक्ष द्वारा किया जा रहा हो और अन्य सदस्य भी एक समान हो। जाहिर है, खेल मंत्रालय और आईओए की रुचि न्याय प्रदान करने के लिए कानून का पालन करने के बजाय यह भ्रम पैदा करने में ज्यादा थी कि ‘कार्रवाई हो रही है’।

शिकायतकर्ताओं का यह ऐतराज वाजिब था कि समान सदस्यों वाली दो समानांतर समितियों का गठन और अतिव्यापी अधिकार क्षेत्र एक अनिश्चय की स्थिति पैदा करेंगी। पहलवानों ने यह भी कहा था कि IOA समिति के एक सदस्य ने अपने पक्षपात को सार्वजनिक किया था, जब उन्होंने पत्रकारों से कहा था कि आरोप फर्जी हो सकते हैं और इन आरोपों के पीछे की मंशा की जांच की जरूरत है।
इस प्रकार शिकायतकर्ताओं ने एक निष्पक्ष, न्यायपूर्ण और स्वतंत्र जांच के गठन की मांग की। वास्तव में, उन्होंने आईओए समिति से अनुरोध किया था कि जब तक खेल मंत्रालय उनकी आपत्ति पर फैसला नहीं करता तब तक वह अपनी समिति को स्थगित रखे। “इसके अलावा,” उन्होंने यह भी लिखा कि, “यह बेहतर होगा कि इस प्रकरण के संबंध में सभी संचार गोपनीय रखे जाएँ हैं क्योंकि मामला संवेदनशील है और पीड़ितों के लिए अनुचित खुलासा पूर्वाग्रहपूर्ण हो सकता है।”

निगरानी समिति के सामने बयान

नाबालिग फरियादी समेत सभी फरियादियों ने ओवरसाइट कमेटी के सामने बयान दिया। लेकिन बयान लिया गया उस जगह के बाहर बड़ी संख्या मौजूद आरोपी के समर्थकों ने उन्हें डराया-धमकाया। वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष रहने की बजाय, समिति के कुछ सदस्यों ने खिलाड़ियों पर झूठ बोलने और सिंह के कार्यों की ‘गलत व्याख्या’ करने का आरोप लगाया। शिकायतकर्ताओं ने चिंता जताई है कि उन्हें पता नहीं उनकी गवाही कितनी ईमानदारी से दर्ज की गई थी। उनहोंने यह भी बताया कि कुछ सदस्यों ने उनके साथ जो हुआ उसका वीडियो और ऑडियो ‘सबूत’ देने को भी कहा।

कमेटी ने आरोपी का बयान भी दर्ज किया।

निरीक्षण समिति की रिपोर्ट 8 अप्रैल, 2023 को खेल मंत्रालय को सौंपी गई थी। लेकिन अभी तक कुछ भी खुलासा नहीं किया गया है, सिवाय इसके कि पॉश अधिनियम के अनुपालन में डब्ल्यूएफआई में कोई आंतरिक शिकायत समिति नहीं बनाई गई थी।

IOA समिति की नियति क्या होगी, पता नहीं।

23 अप्रैल 2023 को पहलवान फिर विरोध प्रदर्शन के लिए दिल्ली लौट आए, इस बार उनकी एक सूत्रीय मांग है कि आरोपी बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जाए।

कोई परिणाम नहीं निकलने और समितियों की प्रक्रिया में विश्वास खत्म जाने के कारण, पहलवानों के पास दिल्ली लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। उन्होंने कनॉट प्लेस पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज कराई, जिसके अधिकार क्षेत्र के तहत डब्ल्यूएफआई का कार्यालय आता है, लेकिन पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया। अंत में, शिकायतकर्ताओं को उसके लिए भी सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ा। मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने दिल्ली पुलिस को 28 अप्रैल 2023 को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया। दर्ज की गई प्राथमिकी में दो – संख्या 0077/2023 पुलिस स्टेशन कनॉट प्लेस, धारा 354, 354 (ए), 354 (डी) / 34 और धारा के तहत हैं। धारा 10, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण विधेयक (पॉक्सो), 2011 के तहत और प्राथमिकी संख्या 0078/2023, धारा 354, 354 (ए), 354 (डी)/34 के तहत 6 शिकायतकर्तओं ने दर्ज करवाई।

आज की तारीख तक, सभी सात शिकायतकर्ताओं ने धारा 161 के अपने बयान दिए हैं, और नाबालिग सहित चार के सीआरपीसी की धारा 164 के बयान लिए गए हैं।

164 CrPC के बयानों और POCSO के आरोपों के बावजूद, आरोपी आज़ाद है। जब POCSO के आरोपों का सामना करना यह कभी सुनने में नहीं आया। इसलिए बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी के लिए संघर्ष जारी है।

4 मई 2023 को दिल्ली पुलिस द्वारा आधी रात को प्रदर्शनकारियों पर हमला।

प्राथमिकी दर्ज किए जाने के कुछ दिनों के भीतर, आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर विरोध तेज हो गया, 4 मई, 2023 की रात को दिल्ली पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों पर आधी रात को हमला किया गया। घायल होने वालों में दो खिलाड़ी, एक पत्रकार और यहां तक कि दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल को भी नहीं बख्शा गया। इस हमले के संबंध में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

महिला आंदोलनों के लिए चिंता की बात यह है कि युवा पहलवानों द्वारा अपने साथ की गई हिंसा और न्याय के लिए उनके संघर्ष को दिखाने के लिए वे जो विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं उसे बेरहम चुप्पी के साथ देखा जा रहा है और उन्हें सुनने के लिए माननीय प्रधान मंत्री से लेकर बोर्ड भर में मौन व्याप्त है। गृह मंत्रालय, खेल मंत्रालय, अन्य खेल निकाय, महिला और बाल कल्याण मंत्रालय, कानून मंत्रालय के साथ-साथ स्वायत्त निकाय जैसे कि राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग आदि भी खामोश हैं।

महोदय, राष्ट्रीय स्तर पर अधिकांश खेल निकायों में पॉश अधिनियम, 2013 के तहत अनिवार्य आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) को लागू किए जाने को जिस निर्लज्ज तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है, वह पिछले 25 वर्षों के काम की पटरी से उतरने को दर्शाता है। चूंकि विशाखा और अन्य मामलों में एससी दिशानिर्देश तैयार किए गए थे, और 2013 में पॉश अधिनियम पारित किया गया था।

इस विशेष क्षण में हमारी चिंता यह भी है कि बृजभूषण शरण सिंह पहले भाजपा सांसद नहीं हैं, जिन्हें अपने कथित अपराधों के लिए व्यवस्थागत संरक्षण प्राप्त है। हाल के दिनों में, मजबूत राजनीतिक संबंधों वाले बहुत से अभियुक्त यौन हिंसा के अपराधों से बचने में सक्षम रहे हैं जिनमें संसद और विधानमंडल के सदस्य, धर्मगुरु आदि शामिल हैं। जैसे कि ऐसे दुराचारियों की दंडमुक्ति काफी खराब नहीं थी, पिछले साल पूरे देश ने यह देखा कि गुजरात, 2002 में गैंगरेप के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए बलात्कारियों को उनकी सजा के 11 साल बाद ही रिहा कर दिया गया था।

गंभीर यौन हिंसा करने के बाद बच निकलने की व्यवस्थागत संरक्षण की संस्कृति पिछले दस वर्षों में केवल मजबूत हुई है, यौन अपराधों में न्याय की संस्कृति को उलट दिया है।

यह “बेटी बचाओ …” की व्यापक बयानबाजी के बावजूद है, जो महिलाओं और लड़कियों पर बढ़ते अन्याय, और अभियुक्तों के लिए बेशर्म दण्डमुक्ति और राज्य के समर्थन के सामने सभी अर्थ खो चुकी है। लेकिन भारत की जनता ऐसे अपराध की मूक गवाह नहीं बनेगी। पहलवानों के लिए न्याय की लड़ाई अब न्याय के लिए जनांदोलन में बदल गई है।

देश भर के महिला समूहों और संबंधित व्यक्तियों के रूप में, हम मांग करते हैं कि:

• पॉक्सो और अन्य मामलों में डब्ल्यूएफआई के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह को तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए।
• पहलवानों के यौन हिंसा की घटनाओं की जांच करने वाली आईओए और खेल मंत्रालय की दो समितियों को पूरी तरह से खत्म किया जाना चाहिए, क्योंकि वे कानून का पालन नहीं कर रही थीं।
• दिल्ली पुलिस को पहलवानों, जिसमें एक नाबालिग भी शामिल है, के द्वारा दायर यौन हिंसा के सात मामलों की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करनी चाहिए और जल्द से जल्द मजबूत चार्जशीट दायर की जानी चाहिए
• कनॉट प्लेस स्टेशन हाउस ऑफिस और अन्य पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 166 ए (बी) के तहत कार्रवाई की जाए, जिन्होंने एफआईआर दर्ज करने से इनकार किया और सीआरपीसी सेक्शन 161 और 164 के तहत बयान लेने में देरी की।
• 4 मई 2023 की रात प्रदर्शनकारियों पर हिंसा करने वाले संसद मार्ग थाने के पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए
• अधिकारियों और पुलिस की भूल-चूक के अपराधों के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को जवाबदेह बनाया जाता है।यह अनिवार्य है कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सभी खेल निकायों में बाहरी, स्वतंत्र सदस्यों वाली आंतरिक शिकायत समितियां हों, जैसा कि POSH अधिनियम, 2013 के तहत निर्धारित है।
• 12 मई 2023 के SC आदेश, POSH अधिनियम द्वारा अनिवार्य रूप से ICC की स्थापना के संबंध में, 8 सप्ताह के भीतर, पूरी तरह से लागू किया जाना चाहिए।
• हमारे सभी खिलाड़ियों के लिए यौन उत्पीड़न मुक्त कार्यस्थल सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
• हम बहुत आभारी होंगे अगर हमारी मांगों को गृह मंत्रालय और खेल मंत्रालय द्वारा पूरा किया जाता है और संघर्षरत पहलवानों को न्याय मिलता है।

हम हैं,

पुरोगामी महिला संगठन, आल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमन एसोसियेशन (ए.आई.डब्ल्यू.यू.डी.ए.) दिल्ली, आल इंडिया महिला सांस्कृतिक संगठन (ए.आई.एम.एस.एस.), अनहद, सेंटर फॉर स्ट्रगलिंग वुमन (सी.एस.डब्ल्यू.), नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन (एन.एफ.आई.डब्ल्यू.) दिल्ली, प्रगतिषील महिला संगठन दिल्ली, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पी.यू.सी.एल.) दिल्ली, सहेली, वुमन रिसोर्स सेंटर और इंडियन क्रिस्चन मूवमेंट दिल्ली

 

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