रक्षा उत्पादन क्षेत्र

 

देश में रक्षा उत्पादन को तीन क्षेत्रों में बांटा गया है:
(i) सरकारी क्षेत्र द्वारा रक्षा उत्पादन – आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी)
(ii) रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां (पीएसयू)
(iii) निजी क्षेत्र
रक्षा सार्वजनिक उपक्रम और ओएफबी, दोनों रक्षा उत्पादन विभाग के तहत काम करते हैं, जो रक्षा मंत्रालय का एक भाग है।

आयुध निर्माणियां

ओएफबी की स्थापना 1979 में हुई थी और आज इसके नेटवर्क में 41 आयुध कारखाने, 9 प्रशिक्षण संस्थान, 3 क्षेत्रीय विपणन केंद्र और सुरक्षा के 5 क्षेत्रीय नियंत्रक शामिल हैं। कोलकता के पास ईशापुर में सबसे पुराना आयुध कारखाना अंग्रेजों द्वारा 1787 में स्थापित किया गया था। वर्तमान में, इन कारखानों को पांच समूहों या संचालन समूहों के तहत विभाजित किया गया है और वे रक्षा सेवाओं के लिए हथियारों, गोला-बारूद, बख्तरबंद और पैदल सेना के लड़ाकू वाहन, टैंक, कपड़ों की वस्तुएं और पैराशूट और ऑप्टिकल डिवाइस, इन सब का उत्पादन करते हैं।

आयुध कारखाने पूरे देश में फैले हुए हैं जैसा कि मानचित्र से देखा जा सकता है।

लगभग 80,000 लोग आयुध कारखानों में काम करते हैं और उन्हें सरकारी कर्मचारी माना जाता है।
सभी आयुध कारखानों द्वारा आपूर्ति किए गए सामानों का मूल्य लगभग वित्त वर्ष 2017 में 20,000 करोड़ रु. था।
आयुध कारखाने लगभग 60,000 एकड़ भूमि पर फैले हुए हैं, जिनमें से कुछ बहुत मूल्यवान हैं क्योंकि यह कोलकता, पुणे, कानपुर, जबलपुर, देहरादून आदि जैसे बड़े शहरों में है।
सरकार द्वारा आयुध कारखानों की संपत्ति का मूल्य केवल 75,000 करोड़ रुपये होने का दावा किया गया है। भूमि सहित संपत्ति का वास्तविक मूल्य लगभग दस गुना अधिक है।

रक्षा सार्वजनिक उपक्रम
इस क्षेत्र में 9 सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां (पीएसयू) शामिल हैं:
1. हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल): विमान और हेलीकॉप्टर का उत्पादन करता है; यह सबसे बड़ा रक्षा पीएसयू है।
2. भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल): विभिन्न रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों और प्रणालियों का उत्पादन करता है।
3. भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (बीडीएल): विभिन्न मिसाइल और अन्य हथियारों का उत्पादन करता है।
4. बीईएमएल लिमिटेड (बीईएमएल): रक्षा के लिए हथियारों के लिए का उत्पादन करता है और रेलवे, खनन और निर्माण के लिए उपकरणों का उत्पादन करता है।
5. मिश्र धातु निगम लिमिटेड (मिधानी): स्टील और टाइटेनियम के मिश्र धातुओं का उत्पादन करता है।
6. मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल): युद्धपोतों और पनडुब्बियों का उत्पादन करता है।
7. गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (जीआरएसई): युद्धपोतों का उत्पादन करता है।
8. गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (जीएसएल): युद्धपोतों का उत्पादन करता है।
9. हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (HSL): युद्धपोतों के रखरखाव और उत्पादन के लिए सबसे बड़ा शिपयार्ड है।
रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) मूल्य के मामले में रक्षा सेवाओं के लिए वस्तुओं के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता हैं। उन सबकी बिक्री मिलकर वित्त वर्ष 2019 में लगभग 45,000 करोड़ रु. थी।

निजी क्षेत्र

प्रमुख कॉर्पोरेट समूह जो पहले ही रक्षा उत्पादन में प्रवेश कर चुके हैं, वे हैं टाटा, महिंद्रा, हिंदुजा, कल्याणी, एलएंडटी, अंबानी और अदानी। इनमें से कुछ समूहों ने विदेशी रक्षा उपकरण आपूर्तिकर्ताओं के साथ संयुक्त उद्यम बनाए हैं। निजी क्षेत्र पहले से ही बख्तरबंद वाहनों, तोपखाने प्रणालियों, गोला-बारूद, मिसाइलों और वायु रक्षा समाधान और छोटे हथियारों की आपूर्ति कर रहा है। हालांकि निजी क्षेत्र ने रक्षा उपकरणों की आपूर्ति वित्त वर्ष 2019 में केवल लगभग 17,000 करोड़ रु. थी, वह तेजी से बढ़ने की योजना बना रहा है।
सरकार ने भारत को एक प्रमुख रक्षा उत्पादक बनाने की योजना तैयार की है। वित्त वर्ष 2019 में, सभी क्षेत्रों द्वारा कुल रक्षा उत्पादन केवल लगभग 80,000 करोड़ रु. था। सरकार चाहती है कि इसे लगभग दोगुना कर 2025 तक 1,75,000 करोड़ रु. तक बढ़ाना चाहिये और वह 35,000 करोड़ रु. मूल्य का माल निर्यात भी करना चाहती है।

रक्षा उत्पादन का निजीकरण

रक्षा उत्पादन का निजीकरण 20 साल पहले शुरू हुआ था और तब से यह कदम दर कदम चल रहा है।
2001: रक्षा उत्पादन निजी क्षेत्र के लिए खुला और 26% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी गई, लेकिन दोनों के लिए लाइसेंस की आवश्यकता थी।
2016: FDI की सीमा बढ़ाकर 49 फीसदी की गई और लाइसेंस की जरूरत नहीं।
2020: FDI की सीमा बढ़ाकर 74% की गई।
रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) 2016 ने सामरिक भागीदारी नीति (एसपीपी) की शुरुआत की,जिसके माध्यम से निजीकरण को एक और बढ़ावा दिया गया। इसने चुनिंदा भारतीय निजी क्षेत्र की कंपनियों को विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) के साथ साझेदारी करके संयुक्त रूप से लड़ाकू जेट, हेलीकॉप्टर, पनडुब्बी और बख्तरबंद वाहनों के निर्माण के लिए अनुमति दी। भारतीय निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ गठजोड़ करने के इच्छुक वैश्विक रक्षा आपूर्तिकर्ताओं को आवश्यक लाइसेंस प्राप्त करने के लिए भारत सरकार से औपचारिक आश्वासन प्राप्त होगा। इस प्रकार, रक्षा उत्पादन में भारतीय और विदेशी समूहों के प्रवेश के लिए सरकार एक सुविधाजनक भूमिका निभाएगी।
इस क्षेत्र के निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए एक और कदम जुलाई 2019 में उठाया गया था जब आयुध कारखानों द्वारा अब तक उत्पादित 275 वस्तुओं को “नॉन-कोर” घोषित किया गया था। “नॉन-कोर” वस्तुओंको निजी क्षेत्र से खरीदा जा सकता है। आयुध कारखानों के वर्तमान उत्पादन का लगभग 40% इन 275 उत्पादों का है। इस कदम से कई आयुध कारखानों में क्षमता बेकार हो जाएगी जिससे कई मज़दूर “अतिरिक्त” हो जाएंगे।
समय-समय पर उठाए गए इन कदमों के परिणामस्वरूप रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है।

 

शेयरों की बिक्री के माध्यम से रक्षा पीएसयू का निजीकरण भी कई वर्षों से किया जा रहा है। पिछले पांच वर्षों के दौरान हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल), भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (बीडीएल), मिश्र धातु निगम लिमिटेड (मिधानी), गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (जीआरएसई) और मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) का आंशिक निजीकरण सरकार द्वारा उनमें अपनी हिस्सेदारी कम करके किया गया है। बीईएमएल लिमिटेड में सरकारी शेयरधारिता को पिछले कुछ वर्षों से घटाकर पहले ही 54% कर दिया गया था। अब बीईएमएल के अन्य 26% शेयरों की बिक्री के साथ उसका पूरी तरह से निजीकरण किया जा रहा है, जिससे सरकार बीईएमएल में अल्पांश शेयरधारक बन जाएगी।
आयुध कारखानों को निगमित करने के प्रयास 2016 से चल रहे हैं, लेकिन उन्हें श्रमिकों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा है। 2019 में, जब सरकार ने निगमीकरण की योजना को पुनर्जीवित किया और श्रमिक अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए, तो सरकार ने वादा किया कि इस क्षेत्र के कर्मचारियों के परामर्श के बिना इस क्षेत्र का निजीकरण करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाएगा। फिरभी सरकार ने 2020 में पुनः निगमित करने की योजना की घोषणा की और जून 2021 में उसने OFB को समाप्त करने और 7 निगम बनाने का निर्णय लिया। सरकार ने निगमीकरण और निजीकरण के विरोध का गला घोंटने के लिए रक्षा कर्मियों द्वारा हड़ताल पर प्रतिबंध लगाने के लिए 30 जून 2021 को एक अध्यादेश, “आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश 2021” लाने का अभूतपूर्व कदम उठाया है। अध्यादेश को कानून में बदलने के लिए 22 जुलाई 2021 को संसद में एक विधेयक पेश किया गया था।