भारतीय रेल

भारतीय रेलवे (IR) हमारे देश की अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा है। इसने भारत के विकास और प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमारे देश के असंख्य लोगों ने भारतीय रेलवे की सेवाओं से लाभ उठाया है। भारतीय रेलवे को, पिछले 165 वर्षों में, लाखों मजदूरों और भारतीय लोगों की खून-पसीने की कमाई से बनाया गया है।

भारतीय रेलवे दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेलवे-व्यवस्था है। लगभग 68,000 किमी रेल मार्ग और 99,000 किमी से अधिक पटरियों के द्वारा, भारतीय रेलवे, हमारे विशाल देश के विभिन्न हिस्सों को जोड़ती है।
यह करोड़ों मजदूरों के लिए उनके कार्यस्थल और उनके घर, शहर या गांव के बीच की लंबी दूरी के सफ़र को तय करने का एकमात्र विश्वसनीय और बहुत ही किफायती साधन है। भारतीय रेलवे में हर दिन लगभग 2.2 करोड़ और हर साल, लगभग 800 करोड़ लोग यात्रा करते हैं। रोज सफ़र करने वाले यात्रियों की यह संख्या, ऑस्ट्रेलिया या श्रीलंका जैसे देशों की कुल जनसंख्या के बराबर है!

यात्रियों के साथ-साथ, हमारे देश के सभी भागों में कच्चे माल और तैयार माल के परिवहन के लिए भारतीय रेल के द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाएं भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। खाने से लेकर कोयले और गाड़ियों तक हर साल 110 करोड़ टन से अधिक माल, भारतीय रेल लाइनों द्वारा देश के कोने-कोने में पहुँचाया जाता है।

भारतीय रेल लोगों और सामानों के परिवहन के लिए प्रतिदिन 13,000 से अधिक यात्री ट्रेनें और लगभग 8,500 मालगाड़ियां, देश के 7,300 से अधिक स्टेशनों के बीच चलाती है।
भारतीय रेलवे का वार्षिक राजस्व 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक है, जो देश की सबसे बड़ी दस कंपनियों के वार्षिक राजस्व के बराबर है। भारतीय रेल के राजस्व का लगभग दो-तिहाई माल के परिवहन से आता है।

 

भारतीय रेलवे के स्वामित्व वाली भूमि की विशाल राशि के मूल्य के अलावा, जनता के पैसे से बनी, करीब 6 लाख करोड़ की संपत्ति इस समय, भारतीय रेलवे के पास है। भारतीय रेलवे के पास लगभग 4.81 लाख हेक्टेयर भूमि है, जिसमें से 90% हिस्से का उपयोग स्टेशनों, कॉलोनियों आदि सहित ट्रैक और संरचनाओं के लिए किया जाता है, जबकि 51,000 हेक्टेयर भूमि खाली पड़ी है।
भारतीय रेलवे के पास सात उत्पादन इकाइयाँ हैं जो भारतीय रेलवे के इंजनों और कोचों की संपूर्ण आवश्यकता को, आयात किये जाने आले रोलिंग स्टॉक से कम लागत पर, पूरा करती हैं। (उत्पादन इकाइयों और उन्हें निगमित करने की योजना के बारे में अधिक जानकारी अलग से दी गई है।)

भारतीय रेलवे, लगभग 12.5 लाख कर्मचारियों के साथ, देश का सबसे बड़ा सरकारी स्वामित्व वाला उद्यम है। इसके अलावा, भारतीय रेलवे लगभग 4 लाख अस्थायी और ठेका मजदूरों की आजीविका का भी साधन है।
सिर्फ मजदूर ही नहीं, बल्कि स्टेशनों पर, स्टॉल पर काम करने वाले हजारों लोग और फेरीवाले अपनी आजीविका के लिए, भारतीय रेलवे पर निर्भर हैं।
एक के बाद एक आयी, सभी सरकारें, बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए, भारतीय रेल के आधुनिकीकरण और विस्तार के लिए आवश्यक पूंजी निवेश करने में विफल रही हैं। भारतीय रेलवे के फरवरी 2015 के श्वेत पत्र के अनुसार, भारतीय रेलवे के 1,219 लाइन-सेक्शन में से 40 प्रतिशत लाइन-सेक्शनस का,100 प्रतिशत से अधिक उपयोग किया जाता है। तकनीकी रूप से, अपनी क्षमता के 90 प्रतिशत से अधिक का उपयोग करने वाले अनुभाग को संतृप्त माना जाता है।

 


अत्यधिक उपयोग में लाई जाने वाली रेल लाइनें

भारतीय रेलवे का निजीकरण

पिछले 25 वर्षों के दौरान, “पुनर्गठन”, “तर्कसंगतीकरण”, “आधुनिकीकरण” और हाल ही “मुद्रीकरण” के नाम पर, हर सरकार, जो केंद्र में सत्ता में आयी है, चाहे किसी भी राजनीतिक दल से जुडी हो, भारतीय रेलवे का निजीकरण करती आ रही है। भारतीय रेलवे का निजीकरण, गुप्त रूप से आउटसोर्सिंग, निगमीकरण और पीपीपी (सार्वजनिक-निजी भागीदारी, जिसका अर्थ है कि नुकसान सार्वजनिक है, जबकि लाभ निजी है) के रूप में किया गया है।

भारतीय रेलवे के निजीकरण का कार्यक्रम 1994 में नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस-गठबंधन सरकार द्वारा उदारीकरण और निजीकरण के माध्यम से वैश्वीकरण के समग्र कार्यक्रम के तहत शुरू किया गया था।
1994: भारतीय रेलवे में सुधारों की सिफारिश तैयार करने के लिए तीन समितियों का गठन
2001: राकेश मोहन समिति ने रेलवे गतिविधियों को ‘कोर’ और ‘नॉन-कोर’ के नाम पर बाटने का प्रस्ताव पेश किया और गैर-कोर गतिविधियों के निगमीकरण और आउट-सोर्सिंग करने की योजना बनाई । आउटसोर्सिंग का अर्थ है कुछ विशेष गतिविधि, जो अब तक भारतीय रेलवे के मजदूरों द्वारा की जा रही है उसको एक निजी ऑपरेटर द्वारा कराने काअनुबंध (कोंट्राक्ट) जारी किया जाए।
पिछले कुछ वर्षों में धीरे – धीरे कर-कर, भारतीय रेलवे की कई सेवाओं को अब कॉन्ट्रैक्ट पर दिया जाने लगा. रेलवे स्टेशनों की सफाई, ट्रेनों की धुलाई, भोजन खानपान, बेड रोल की लोडिंग/अनलोडिंग, एसी कोचों के एयर कंडीशनिंग के रखरखाव आदि जैसी कई गतिविधियों को आउटसोर्स किया गया है । रेल कर्मचारियों के कल्याण के लिए स्कूल, कॉलेज और अस्पताल चलाने के साथ-साथ दूरसंचार नेटवर्क और आईटी सिस्टम के रखरखाव जैसी महत्वपूर्ण गतिविधियों को भी आउटसोर्स किया गया है।
2006: कंटेनरों द्वारा माल परिवहन का निजीकरण।
2011: आधुनिकीकरण पर सैम पित्रोदा समिति ने पीपीपी को और आगे बढ़ाया।
2014: विवेक देबरॉय समिति ने भारतीय रेलवे के साथ प्रतिस्पर्धा में निजी यात्री और मालगाड़ी शुरू करने की सिफारिश की।
2014: भारतीय रेलवे के 17 प्रमुख क्षेत्र, 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिए खुले। संयुक्त राज्य अमेरिका के जीई और फ्रांस के एल्सटॉम से विदेशी पूंजी के साथ दो उच्च मूल्य वाले डीजल और इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव निर्माण संयंत्र पहले से ही चल रहे हैं।
2017 – 2021:
• वर्ष 2022 से 12 क्लस्टर में 109 लाभदायक मार्गों पर निजी यात्री ट्रेनों की घोषणा की गयी ।
• वर्ष 2022 से पश्चिमी और पूर्वी समर्पित फ्रेट कॉरिडोर पर निजी मालगाड़ियों की घोषणा की गयी।
• रेलवे की सात उत्पादन इकाइयों, कोच और इंजन के निर्माण के निगमीकरण करने की योजना को, मजदूरों और उनके परिवारों के भारी विरोध के कारण, फिलहाल टाल दिया गया है.
• 100 से अधिक रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास और आधुनिकीकरण के नाम पर उनका निजीकरण सक्रिय रूप से शुरू हो गया है। इन स्टेशनों से यात्रा करते समय यात्रियों को अतिरिक्त ‘उपयोगकर्ता शुल्क’ का भुगतान करना होगा।
• 87 लैंड पार्सल, 84 रेलवे कॉलोनियों और 4 पहाड़ी रेलवे के मुद्रीकरण की घोषणा की गयी है। मुद्रीकरण का मतलब है कि भारतीय रेलवे की ये संपत्ति, मुनाफा कमाने के लिए पूंजीपतियों को लम्बे समय के लिए लीज (किराये) पर दी जाएगी।

चूंकि भारतीय रेलवे, भारत सरकार का एक विभाग है, इसलिए इसे सीधे, प्रत्यक्ष रूप से बेचा नहीं जा सकता है। यही कारण है कि इसे एक सुनियोजित तरीके से अलग-अलग निगमों में विभाजित किया जा रहा है और इन निगमों का बारी – बारी से निजीकरण किया जा रहा है। भारतीय रेल द्वारा की जाने वाली कई गतिविधियों को अलग-अलग करके, लगभग दो दर्जन निगमों का गठन किया जा चुका है और कई अन्य निगमों के गठन की योजना बनाई जा रही है। आईआरसीटीसी, इरकॉन, राइट्स, रेल विकास निगम, आईआरएफसी और रेलटेल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया जैसे निगमों का निजीकरण, उनके शेयरों की बिक्री के जरिए शुरू हो चुका है।
निजीकरण एक ऐसा कार्यक्रम है जो अंततः भारतीय रेलवे की सभी लाभदायक गतिविधियों को निजी हाथों में स्थानांतरित कर देगा, सरकारी स्वामित्व के तहत केवल वही पटरिया रह जायेंगी जिन से मुनाफा नहीं बनाया जा सकता और इस तरह घाटे में चल रही सभी सेवाओं को लोगों के पैसे से पूरा करने के लिए सरकार के हाथों में रखा जायेगा ।