पेट्रोलियम सड़क और हवाई परिवहन, औद्योगिक भट्टियों और बॉयलरों के साथ-साथ बिजली उत्पादन के लिए ऊर्जा और ईंधन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। यह पेट्रोरसायन, प्लास्टिक और उर्वरकों के उत्पादन के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध कराता है। पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें पूरी आबादी को प्रभावित करती हैं।
पेट्रोलियम देश के लिए सामरिक महत्व का है। सेना, नौसेना और वायु सेना सभी अपनी ईंधन आवश्यकताओं के लिए परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
भारत दुनिया में पेट्रोलियम उत्पादों का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है। भारतीय मांग वैश्विक औसत से चार से पांच गुना तेजी से बढ़ रही है। वर्ष 2018-19 में कच्चे तेल की कुल खपत लगभग 21.2 टन (MMT) थी। भारत की वार्षिक 24.9 करोड़ टन तेल शोधन क्षमता, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और रूस के बाद दुनिया में चौथी सबसे बड़ी है।
सार्वजनिक क्षेत्र में 16 रिफाइनरियां हैं। दो रिफाइनरियों को संयुक्त उद्यम के रूप में स्थापित किया गया है – एक एचपीसीएल और एलएन मित्तल समूह (दुनिया की सबसे बड़ी स्टील कंपनी के मालिक) के बीच और दूसरी बीपीसीएल और ओमन ऑयल कंपनी के बीच। निजी क्षेत्र में तीन रिफाइनरियां हैं – दो मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज के स्वामित्व में हैं और दूसरी रूसी कंपनी रोजनेफ्ट (पहले रुइया के एस्सार के स्वामित्व वाली) के पास है।
देश की सबसे बड़ी रिफाइनिंग कंपनी सरकारी स्वामित्व वाली इंडियन ऑयल है, जिसकी वार्षिक शोधन क्षमता 8.0 करोड़ टन से अधिक है। गुजरात में दो रिफाइनरियों से रिलायंस की 6.8 करोड़ टन की वार्षिक शोधन क्षमता एक ही स्थान पर दुनिया की सबसे बड़ी शोधन क्षमता है। रिलायंस की आधी से ज्यादा क्षमता निर्यात के लिए समर्पित है। रोजनेफ्ट के स्वामित्व वाली रिफाइनरी की वार्षिक क्षमता 20 करोड़ टन है।
देश की 90 प्रतिशत से अधिक ईंधन आवश्यकता की आपूर्ति तीन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों – इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल द्वारा की जाती है। इन तीनों कंपनियों की कुल वार्षिक क्षमता 1976 में 0.4 करोड़ टन से कम से बढ़कर वर्तमान समय में 17.0 करोड़ टन हो गई है। इनकी कुल संपत्ति 5.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की है। बीपीसीएल और एचपीसीएल के निजीकरण से सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनिंग क्षमता का हिस्सा 60% से घटकर लगभग 42% हो जाएगा।
आज, भारतीय ईंधन विपणन व्यवसाय का 75% से अधिक सार्वजनिक क्षेत्र की तीन कंपनियों – IOC, BPCL और HPCL के स्वामित्व में है।
पेट्रोल और डीजल देश में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सबसे अधिक कर वाले उत्पाद हैं। लोग केंद्र और राज्य सरकारों को सालाना लगभग 6 लाख करोड़ रुपये कर के रूप में दे रहे हैं। पेट्रोल और डीजल की कीमत में लगभग दो-तिहाई टैक्स का योगदान होता है।
रिफाइनरियों का निजीकरण
तत्कालीन ब्रिटिश कंपनी बर्मा शेल, और अमेरिकी कंपनियों Esso और Caltex का क्रमशः BPCL और HPCL बनाने के लिए 1973 और 1976 के दौरान राष्ट्रीयकरण किया गया था।
विदेशी स्वामित्व वाली निजी कंपनियों का राष्ट्रीयकरण सामरिक रक्षा कारणों से किया गया था। एंग्लो-अमेरिकन दबाव में, विदेशी तेल कंपनियों ने 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारतीय नौसेना और वायु सेना को ईंधन की आपूर्ति करने से इंकार कर दिया था।
उनके राष्ट्रीयकरण के बाद पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम ईंधन की कीमतों को विनियमित और सीमित करने के लिए प्रशासित मूल्य तंत्र की शुरुआत हुई।
पेट्रोलियम क्षेत्र के उदारीकरण और निजीकरण की प्रक्रिया लगभग दो दशक पहले शुरू हुई थी।
• 1997: एनईएलपी (नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति) ने भारतीय और विदेशी कंपनियों को समुद्र में तेल भूमि की खोज करने की अनुमति दी।
• 1998-99: सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के शेयरों की बिक्री शुरू हुई। आज सरकार की हिस्सेदारी बीपीसीएल में लगभग 53 फीसदी, आईओसी में 55 फीसदी, ओएनजीसी में 63 फीसदी और ऑयल इंडिया में 68 फीसदी रह गई है।
• 2002: पेट्रोलियम उत्पादों का पूर्ण विनियमन किया; तेल समन्वय समिति को समाप्त किया, जो मूल्य नियंत्रण का संचालन करती थी। निजी रिफाइनरियों को पेट्रोल और डीजल के खुदरा वितरण के लिए लाइसेंस जारी किए गए थे।
• 2003: बीपीसीएल और एचपीसीएल के निजीकरण का प्रयास, श्रमिकों के शक्तिशाली एकजुट विरोध और कानूनी समस्याओं के कारण विफल रहा।
• 2016: पुराने कानूनों को निरस्त करने की आड़ में केंद्र सरकार ने 1976 के राष्ट्रीयकरण अधिनियम को रद्द कर दिया।
• 2018: सरकार ने अपने निजीकरण की दिशा में पहले कदम के रूप में एचपीसीएल में अपने पूरे शेयर ओएनजीसी को बेच दिए।
• 2019: बीपीसीएल को एक निजी कंपनी को बेचने का निर्णय लिया।
बीपीसीएल के बारे में
यह तेल शोधन क्षमता के मामले में तीसरा सबसे बड़ा और ईंधन बाजार हिस्सेदारी (बाजार का 25%) के मामले में दूसरा सबसे बड़ा है। मार्च 2021 में ऑयल इंडिया लिमिटेड को नुमालीगढ़ रिफाइनरी की बिक्री के बाद मुंबई, कोचि, और बीना में इसकी तीन रिफाइनरियां हैं।
• बीपीसीएल के 15,000 से अधिक पेट्रोल पंप और 6000 एलपीजी वितरक हैं।
• पेट्रोलियम उत्पादों के भंडारण और वितरण के लिए 77 प्रमुख प्रतिष्ठान और डिपो हैं।
• 55 एलपीजी बॉटलिंग प्लांट हैं।
• 2241 किलोमीटर की बहु उत्पाद पाइपलाइनें हैं।
• हवाई अड्डों में इसके 56 विमानन ईंधन स्टेशन हैं।
• 4 स्नेहक संयंत्र हैं।
• प्रमुख बंदरगाहों पर कच्चे और तैयार उत्पादों की लोडिंग/अनलोडिंग की सुविधा है।
• भारत और विदेशों में इसकी 11 सहायक कंपनियां और 22 संयुक्त उद्यम कंपनियां हैं।
• पूरे भारत में इसकी 6,000 एकड़ जमीन है, जिसमें से 750 एकड़ अकेले मुंबई में है, जिसकी कीमत हजारों करोड़ रुपये है।
• इसमें 12,000 से अधिक नियमित कर्मचारी और 20,000 कॉन्ट्रेक्ट कर्मचारी कार्यरत हैं।
बीपीसीएल पिछले 16 सालों से फॉर्च्यून 500 की सूची में है। पिछले साल बीपीसीएल ने केंद्र और राज्य सरकारों को कर के रूप में 94,000 करोड़ रुपये का योगदान दिया है। BPCL एक बहुत ही लाभदायक क्षेत्र की पेट्रोलियम रिफाइनिंग कंपनी है, जिसका कर पश्चात शुद्ध लाभ लगभग 2020-21 में रु.19,000 करोड़ था।
यह अनुमान लगाया गया है कि बीपीसीएल की कुल कीमत 7-9 लाख करोड़ रुपये है। केंद्र सरकार इस कीमती सार्वजनिक संपत्ति को उसके मूल्य के 10% से कम पर बेचने की योजना बना रही है।