सेना की वर्दी का निजीकरण सेना और देश के हित में नहीं है – श्री सी. श्रीकुमार, महासचिव, एआईडीईएफ

कामगार एकता कमिटी (केईसी) संवाददाता की रिपोर्ट

जब 2021 में आयुध कारखानों का निगमीकरण किया गया, तो यह माना गया कि अंतिम लक्ष्य उन्हें बीमार उद्यमों में बदलकर उनका निजीकरण करना है। नई कंपनी ट्रूप कम्फर्ट्स लिमिटेड (टीसीएल) के तहत आने वाली ऑर्डनेंस क्लोथिंग फैक्ट्रीज (ओसीएफ) को सेना की वर्दी के किसी भी ऑर्डर से वंचित करने की प्रक्रिया अब शुरू हो गई है। सेना की वर्दी के लगभग 12 लाख सेट की पूरी खेप का ऑर्डर 4 निजी कंपनियों को दिया जा रहा है। टीसीएल को 50% नई वर्दी देने की रक्षा मंत्री की मंजूरी के बावजूद, निजी कंपनियों को ऑर्डर दिया गया है क्योंकि वे टीसीएल की तुलना में सस्ती दर पर आपूर्ति करने के लिए तैयार हैं।

सेना ने हाल ही में आयुध फैक्ट्री द्वारा डिजाइन की गई सेना के लोगो वाली लड़ाकू वर्दी को छोड़कर निफ्ट द्वारा डिजाइन की गई डिजिटल रूप से मुद्रित सेना की वर्दी को अपनाया है।


अब खबरें आ रही हैं कि सेना की नई वर्दी बाजार में उपलब्ध है, जिससे लोगों के मन में आशंकाएं पैदा हो रही हैं कि वर्दी का इस्तेमाल असामाजिक तत्वों द्वारा किया जा सकता है। पिछले कुछ दिनों के दौरान आर्मी इंटेलिजेंस और स्थानीय सैन्य अधिकारियों ने कई निजी कपड़ा दुकानों पर छापेमारी की है, जहां बड़ी संख्या में सेना की नई डिजाइन वाली वर्दी के कपड़े और सिले हुए वर्दी मिले हैं।

इन आयुध कारखानों के कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले ऑल इंडिया डिफेंस एम्प्लोयिज फेडरेशन (एआईडीईएफ) ने इसका विरोध किया और उन्होंने असंख्य संख्या में अभ्यावेदन प्रस्तुत किए हैं। एआईडीईऍफ़ आयुध कारखानों के निगमीकरण और निजीकरण के खिलाफ लगातार लड़ रहा है। एआईडीईएफ टीसीएल के तहत चार आयुध कारखानों को नई डिजाइन वाली डिजिटल मुद्रित सेना वर्दी के ऑर्डर प्राप्त करने के लिए तीव्र संघर्ष कर रहा है।

एआईडीईएफ के महासचिव श्री सी. श्रीकुमार के अनुसार, ओसीएफ के अस्तित्व के 125 से अधिक वर्षों में, एक भी ऐसी घटना का हवाला नहीं दिया जा सकता है जहां इन कारखानों से सेना की वर्दी बाजार में गई हो। सेना की वर्दी गोला-बारूद, मिसाइलों आदि जितनी ही महत्वपूर्ण और रणनीतिक है। उन्होंने कहा कि आतंकवादी और राष्ट्र-विरोधी अपने हमलों के लिए सेना की वर्दी का उपयोग कर सकते हैं, क्योंकि समान रूप से डिजाइन की गई वर्दी बाजार में आसानी से उपलब्ध है।

उन्होंने बताया कि जहां सेना की वर्दी का कपड़ा सीएसडी कैंटीन में 2400 रुपये में बिकता है, का 4 निजी कंपनियों ने 1571 रुपये प्रति सेट में ऑर्डर लिया है। उन्होंने पूछा कि आर्मी कैंटीन में जब कपड़ा ही 2400 रुपये में बिकता है निजी कंपनियां 1571 रुपये में सिली हुई वर्दी कैसे दे सकती हैं। वे निश्चित तौर पर गुणवत्ता से समझौता करेंगे और इसका खामियाजा बेचारे जवान को भुगतना पड़ेगा।

ओसीएफ शाहजहाँपुर 120 वर्ष से अधिक पुराना है और ओसीएफ अवाडी 60 वर्ष से अधिक पुराना है। उन्होंने कहा कि निजी कंपनी से सस्ती दर पर वर्दी लेने की दलील देकर देश की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता। टीसीएल के तहत इन 4 आयुध कारखानों के निरंतर अस्तित्व के लिए, इसे केवल 1200 करोड़ रुपये के ऑर्डर की आवश्यकता है जिसे सेना वहन कर सकती है और बदले में उन्हें विश्व स्तरीय सैन्य आराम की वस्तुएं मिलेंगी।

श्री श्रीकुमार ने मांग की है कि सेना को अपने हित और देशहित में निजी कंपनियों को दिए गए वर्दी के ऑर्डर को वापस लेना चाहिए और इसे टीसीएल के तहत 4 आयुध कारखानों को सौंप देना चाहिए।

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