पूर्व मध्य रेलवे के लोको पायलटों ने लोको केबिन में सीवीवीआरएस लगाने का विरोध किया

कामगार एकता कमिटी (केईसी) संवाददाता की रिपोर्ट


भारतीय रेलवे ने देशभर के 5,000 रेल इंजनों में क्रू वोईस एंड वीडियो रिकोर्डिंग सिस्टम (सीवीवीआरएस) लगाने का निर्देश दिया है। सीवीवीआरएस ऐसी व्यवस्था है जो रेल इंजन के खड़े या गतिमान रहने के दौरान लोको पायलट व सहायक लोको पायलट की आवाज समेत सभी गतिविधियों की वीडियो रिकोर्डिंग करती रहेगी।

रेलवे के मुताबिक इसका मकसद हादसों को कम करने के लिए लोको पायलटों पर नजर रखना है।

परन्तु, लोको पायलटों के संगठन ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसिओसेशन (एआईएलआरएसए) ने इसका विरोध किया है। एआईएलआरएसए, पूर्व मध्य रेलवे के महासचिव, ए के राऊत ने रेलवे बोर्ड के कार्यकारी निदेशक को लिखे पत्र में इसे चालक दल की निजता और गोपनीयता को भंग करने वाला निर्णय करार दिया है। सिस्टम के कारण चालक व सह-चालक हमेशा तनाव में रहेंगे। इससे हादसे कम करने में मदद नहीं मिलेगी।

भारतीय रेलवे की यह सोच कि हादसे और दुर्घटनाएं मुख्यतः लोको पायलट की लापरवाही की वजह से होती हैं, गलत है। उसकी नीतियाँ ही दुर्घटनायों के लिए जिम्मेदार हैं, वह यह छिपाकर रेल कर्मियों को दोषी ठहराना चाहती है। अन्यथा, किसी भी कर्मी की काम करते समय हर मिनट वीडयो रिकोर्डिंग करने का क्या मकसद है? किसी भी दुर्घटना में सबसे ज्यादा खतरा लोको पायलट की जान को होता है। क्या वह जान बूझ कर दुर्घटना करेगा?

लोकोपायलट वर्षों से से रिक्त पदों को भरने की मांग कर रहे हैं जिससे उनके काम करने के घंटे नियमानुसार सीमित रखे जा सके। आज कल 12 से 14 घंटों की लोको पायलटों की ड्यूटी आम बात हो गयी है। पटरियों के रख रखाव को संविदा कर्मियों से कराया जा रहा है। पटरियों के समय पर नवीनीकरण की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हर महिने सैंकड़ों सिग्नल फेल होने की रिपोर्ट आती है। इन सब की तरफ ध्यान देने के बजाय वह हर दुर्घटना के बाद रेल कर्मियों पर दोष डाल देती है। यह साफ़ नजर आता है कि रेल सुरक्षा भारतीय रेलवे के प्राशासन की प्राथमिकता नहीं है।

भारतीय रेलवे को लाभ बनाने के व्यवसाय के नजरिये से देखने को बदलने की जरुरत है। वह देश के लोगों के लिए एक आवश्यक मूलभूत सेवा है जिसे सुरक्षित और आरामदायक रूप से वहन करने लायक मूल्य पर प्रदान करना सरकार की जिम्मेदारी है।

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