AITUC ने सरकारी कर्मचारियों को अपनी मांगों के लिए प्रदर्शन और हड़ताल करने से रोकने वाले जम्मू-कश्मीर सरकार के आदेश को वापस लेने की मांग की

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) द्वारा जम्मू और कश्मीर सरकार और श्रम और रोजगार मंत्रालय, भारत सरकार को पत्र

(अंग्रेजी पत्र का अनुवाद)

अध्यक्ष: रामेंद्र कुमार                                                       महासचिव: अमरजीत कौर

11.11.2023

सेवा में
1. श्रम एवं रोजगार मंत्री भारतीय सरकार, नई दिल्ली

2. अतिरिक्त सचिव,
जम्मू-कश्मीर सरकार
सामान्य प्रशासन विभाग.

संदर्भ: ओएम संख्या GAD-ADMOIII/158/2023-09-GAD, दिनांक 3 नवंबर 2023।

महोदय,
हम आपके ध्यान में उपरोक्त ओएम लाना चाहते हैं जिसमें ILO से पहले के दिनों की कर्मचारी विरोधी मानसिकता की बू आती है।

जम्मू-कश्मीर सरकार एक निर्वाचित सरकार नहीं है, बल्कि सीधे केंद्रीय शासन के अधीन है। इसलिए, यह ओएम आपकी मंजूरी से जारी किया गया है।

जिन हड़तालों और प्रदर्शनों पर आप प्रतिबंध लगाना चाहते हैं, उन्हें हमारे संविधान द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है, आप अपने सीएमएस द्वारा संविधान के प्रावधानों को खारिज नहीं कर सकते।

हम आपका ध्यान कामेश्वर प्रसाद बनाम बिहार राज्य मामले में 1962 में दिए गए सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के आदेश की ओर भी आकर्षित करना चाहते हैं।

कामेश्वर प्रसाद ने बिहार सरकारी सेवक नियमावली के नियम 4ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि “कोई भी सरकारी सेवक अपनी सेवा शर्तों से संबंधित किसी भी मामले के संबंध में किसी भी प्रदर्शन में भाग नहीं लेगा या किसी भी प्रकार की हड़ताल का सहारा नहीं लेगा।” चुनौती थी केवल प्रदर्शनों पर रोक लगाने के विषय में, न कि हड़तालों पर रोक लगाने के विषय में।

परन्तु, न्यायालय ने बिल्कुल अलग दृष्टिकोण अपनाया और नियम को असंवैधानिक करार दिया। इसकी शुरुआत इस बात से हुई कि केवल इस तथ्य से कि कोई व्यक्ति सरकारी सेवा में प्रवेश करता है, वह भारत का नागरिक नहीं रह जाता है, और न ही यह उसे प्रत्येक नागरिक को दी गई स्वतंत्रता का दावा करने के अधिकार से वंचित करता है।

हम संदर्भित ओएम की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं और आपसे इसे तुरंत वापस लेने का आग्रह करते हैं।

सादर
(अमरजीत कौर)
महासचिव
AITUC सचिवालय के लिए और उसकी ओर से

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