लोकसभा चुनाव 2024: मज़दूरों और किसानों की भूमिका

मजदूर एकता कमेटी (एमईसी) के संवाददाता की रिपोर्ट

मजदूर एकता कमेटी (एमईसी) ने 21 अप्रैल, 2024 को इस विषय पर एक बैठक आयोजित की। देश के विभिन्न हिस्सों में व्यस्त चुनाव प्रचार के बीच आयोजित इस बैठक में देश के विभिन्न क्षेत्रों से और विदेश से भी बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। प्रतिभागियों में कई राजनीतिक दलों और संगठनों, ट्रेड यूनियनों, किसान संगठनों, महिला और युवा संगठनों आदि के कार्यकर्ता शामिल थे। इनमें ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में मज़दूरों के अधिकारों के लिए संगठित करने वाले कार्यकर्ता भी शामिल थे।

एमईसी के बिरजू नायक ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्होंने मुख्य वक्ताओं का स्वागत किया – श्री संतोष कुमार, एमईसी; श्री हन्नन मोल्लाह, महासचिव, अखिल भारतीय किसान सभा; श्री शैलेन्द्र दुबे, अध्यक्ष, ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ); श्री कंवरजीत सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, भारतीय किसान यूनियन एकता (उगराहां), हरियाणा; श्री कृष्णा भोयर, उप महासचिव, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लॉइज; श्री बूटा सिंह बुर्जगिल, अध्यक्ष, भारतीय किसान यूनियन (दकौंदा); श्री एस.पी. सिंह, महासचिव, दक्षिण-पूर्व क्षेत्र, ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (एआईएलआरएसए); डॉ ए मैथ्यू, सचिव, कामगार एकता कमिटी (केईसी)। उन्होंने वक्ताओं से इस मुद्दे पर एक-एक करके अपने विचार रखने का आह्वान किया।

श्री हन्नन मोल्लाह ने किसानों से किए गए वादों को धोखा देने के लिए सरकार की आलोचना की। ये वादे सरकार ने किये थे जब किसानों ने अक्टूबर 2021 में दिल्ली की सीमाओं पर अपने साल भर के आंदोलन को बंद कर दिया था। किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी और अन्य मांगें पूरी होने तक संघर्ष जारी रखने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) काम करता आ रहा है। उन्होंने 14 मार्च को दिल्ली के राम लीला मैदान में विशाल किसान-मजदूर महापंचायत में देखी गई मज़दूरों और किसानों की एकता को अधोरेखित किया। वर्तमान सरकार को बेनकाब करने के लिए और उसके अपराधों के लिए दंडित करने के लिए आम चुनाव 2024 में उसे वोट देकर सत्ता से बाहर करने के लिए एसकेएम किसानों को उद्युक्त करने का काम कर रहा है, ऐसा उन्होंने कहा।

श्री शैलेन्द्र दुबे ने बिजली संशोधन विधेयक को संसद में पारित करने के सरकार के बार-बार के प्रयासों के बारे में बताया। इस से बिजली आपूर्ति के निजीकरण का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। उन्होंने देश के हर हिस्से में बिजली कर्मचारियों के दृढ़ विरोध और एसकेएम द्वारा दिए गए संघर्ष को समर्थन पर प्रकाश डाला, जिन्होंने इन सभी प्रयासों को सफलतापूर्वक विफल कर दिया है। श्री दुबे ने उदाहरण देकर बताया कि सरकार लगातार बिजली वितरण नेटवर्क को निजी इज़ारेदारी वाली बिजली वितरण कंपनियों को सौंप रही है, जिससे देश के विभिन्न हिस्सों में बिजली दरों में भारी वृद्धि हो रही है। इससे शहरों में काम करने वाले लोगों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में किसानों के लिए भी विनाशकारी परिणाम होंगे; यह भाजपा के चुनाव घोषणापत्र को झुठलाता है जो ‘हर घर में कम लागत वाली बिजली’ का वादा करता है। उन्होंने प्री-पेड स्मार्ट मीटर लागू करने की योजना को भी उजागर किया, जो उपभोक्ताओं को लूटने और बिजली वितरण के निजीकरण का मार्ग प्रशस्त करने की एक और योजना है। बिजली आपूर्ति प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार होना चाहिए और इसे इजारेदार पूंजीपतियों के लिए लाभ का स्रोत नहीं बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा, हमें राजनीतिक शक्ति और निर्णय लेने में मज़दूरों और किसानों की अधिक भागीदारी के लिए लड़ना चाहिए। उन्होंने मजदूरों और किसानों से 2024 के लोकसभा चुनावों में वर्तमान मजदूर विरोधी, किसान विरोधी सरकार को हराने के लिए एकजुट होकर संघर्ष करने का आह्वान किया।

श्री बूटा सिंह बुर्जगिल ने ईडी और अन्य राज्य एजेंसियों के उपयोग के माध्यम से सभी विपक्षी दलों को डराने और सभी असहमति की आवाजों को कुचलने के सरकार के प्रयासों की निंदा की। उन्होंने कहा कि ईवीएम के जरिए चुनावों में हेरफेर भी लोकतंत्र पर एक और हमला है। एसकेएम ने किसानों से पंजाब में सभी भाजपा उम्मीदवारों का विरोध करने का आह्वान किया है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि भाजपा को हराने के लिए मज़दूरों और किसानों को एक साथ आना चाहिए।

श्री कंवरजीत सिंह ने इस “लोकतंत्र” पर सवाल उठाया, जिसमें विशाल बहुसंख्या, यानि मेहनतकश लोग, चुनावों में प्रभावी रूप से हाशिए पर हैं। धनबल और बाहुबल का खुल्लम-खुल्ला इस्तेमाल, वोटों में हेराफेरी, सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा प्रचार के साधनों पर एकाधिकार, साथ ही राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ ईडी जैसी राज्य एजेंसियों का इस्तेमाल – यह सब मज़दूरों और किसानों के प्रतिनिधियों के लिए जीतना तो दूर की बात है, उन्हें चुनावों में खड़ा रहना भी नामुमकिन बना देता है। बेहद कम मतदान प्रमाण इस तथ्य का प्रतिबिंब है कि मेहनतकश जनता का इस संसदीय प्रणाली पर से विश्वास उठ गया है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार कॉरपोरेट घरानों के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। कोई भी राजनीतिक पार्टी मजदूरों-किसानों के वास्तविक मुद्दों को नहीं उठा रही है। वे चुनाव जीतने के लिए लोगों को धर्म और जाति के आधार पर बांटने की कोशिश करते हैं। श्री कंवरजीत सिंह ने बताया कि इस प्रणाली में चुनाव लोगों को केवल लुटेरों के एक समूह या दूसरे समूह के बीच चयन करने का अवसर प्रदान करते हैं। राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए मजदूरों और किसानों को संगठित होना होगा; केवल तभी हम इस शोषण और अन्याय को समाप्त करने की उम्मीद कर सकते हैं, ऐसा उन्हों ने अंत में कहा।

श्री कृष्णा भोयर ने वर्तमान व्यवस्था में मजदूरों और किसानों को हाशिए पर रखने की बात कही। हमें उन राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों से पूछना चाहिए जो अपने घोषणापत्रों में मजदूरों और किसानों के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं – क्या आप संसद में हमारे मुद्दे उठाएंगे, क्या आप एमएसपी के लिए लड़ेंगे, 4 श्रम कोड वापस लेने के लिए लड़ेंगे, आदि ऐसा उन्हों ने कहा। श्री भोयर ने उदाहरण देकर दिखाया कि जब ये पार्टियाँ सत्ता से बाहर होती हैं, तो हर तरह के वादे करती हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद वे अपने वादे भूल जाती हैं। उन्होंने विपक्षी दलों को कमजोर करने और विभाजित करने की मोदी सरकार की कोशिशों की भी निंदा की। मीडिया हमारे संघर्षों की ख़बरों को पूरी तरह से ब्लैक आउट कर देता है। सरकार के इस दावे को खारिज करते हुए कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने जा रहा है, उन्होंने कहा कि मजदूरों और किसानों का जीवन स्तर नहीं बढ़ रहा है, बल्कि केवल बड़े कॉरपोरेट्स की संपत्ति बढ़ रही है। उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार को हराने के लिए संयुक्त संघर्ष का आह्वान किया।

श्री एसपी सिंह ने एआईएलआरएसए के जुझारू इतिहास के बारे में बात की, जिसमें 1974 की ऐतिहासिक रेलवे हड़ताल में इसकी भूमिका और रेलवे मजदूरों के अधिकारों की रक्षा में इसके लगातार संघर्ष शामिल थे। उन्होंने कहा कि मजदूरों और किसानों के साथ-साथ लाखों बेरोजगार युवाओं की हमारे समाज की भविष्य की दिशा तय करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होगी। उन्होंने रेलवे में हजारों रिक्तियों का उदाहरण दिया, जिन्हें अगर भरा जाए तो बेरोजगार युवाओं की संख्या में काफी कमी आ सकती है। उन्होंने उन ट्रेड यूनियन नेताओं की आलोचना की, जो मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का समर्थन कर रहे हैं और इसे रेलवे कर्मचारियों के हितों के साथ विश्वासघात बताया। उन्होंने मज़दूरों, किसानों और युवाओं से उन उम्मीदवारों को वोट देने का आह्वान किया जो संसद में उनकी मांगों को उठाएंगे।

श्री संतोष कुमार ने बताया कि पिछले 75 वर्षों के दौरान हुए लोकसभा चुनावों में कई बार पार्टी में बदलाव हुआ है। परन्तु, इनसे अर्थव्यवस्था के पूंजीवादी रुझान और राजनीतिक सत्ता के वर्ग चरित्र में कभी कोई बदलाव नहीं आया। साल-दर-साल, अति-अमीर इजारेदार पूंजीपति अत्यधिक अमीर होते गए हैं। मजदूरों और किसानों को लगातार बढ़ते शोषण, बढ़ती कर्जदारी और दुख का सामना करना पड़ रहा है। महिलाओं का यौन उत्पीड़न, जाति-आधारित भेदभाव और उत्पीड़न जारी है। जहां शासक वर्ग के प्रवक्ता हिन्दोस्तान की आर्थिक वृद्धि का दावा करते हैं, वहीं अमीर और गरीब के बीच की खाई अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गई है। युवाओं में बेरोजगारी पहले से कहीं ज्यादा है।

उन्होंने बताया कि सत्ता में बैठे लोग बार-बार एक विशेष धर्म, जाति या आदिवासी समुदाय के लोगों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा का आयोजन करते हैं, ताकि उनके उत्पीड़कों के खिलाफ लोगों की एकता को नष्ट किया जा सके। लेकिन सांप्रदायिक हिंसा और आतंक के आयोजकों को दंडित नहीं किया जाता है, जबकि पीड़ितों को सताया जाता है। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वालों को अनिश्चित काल के लिए जेल में बंद कर दिया जाता है। यूएपीए और एएफएसपीए जैसे कठोर कानून इस ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र’ में लोगों के अधिकारों के क्रूर उल्लंघन की अनुमति देते हैं।

श्री संतोष ने स्पष्ट किया कि मौजूदा प्रणाली में चुनाव का नतीजा वोट देने वाले जन समुदाय द्वारा तय नहीं किया जाता है। इसका निर्णय पूंजीपति वर्ग द्वारा किया जाता है। पूंजीपति अपनी धन शक्ति, मीडिया पर नियंत्रण, अदालतों पर प्रभाव और मतदाता सूचियों, ईवीएम और वोटों की गिनती में विभिन्न प्रकार के हेरफेर का उपयोग करते हैं। वे उस पार्टी की जीत का आयोजन करते हैं जो उनके स्वार्थी कार्यक्रम को लागू करते समय लोगों को सबसे प्रभावी ढंग से बेवकूफ बना सकती है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि 2004 में शासक वर्ग ने भाजपा के स्थान पर कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। 2014 में कांग्रेस पार्टी की जगह भाजपा ने ले ली। इस पूरी अवधि में, उदारीकरण और निजीकरण के माध्यम से वैश्वीकरण का कार्यक्रम अपरिवर्तित रहा है।

इस तथ्य का जिक्र करते हुए कि अधिकांश टीवी समाचार चैनल भाजपा के लिए एक और शानदार जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं, श्री संतोष ने कहा कि पूंजीपति वर्ग का एक प्रभावशाली घटक है जो प्रधान मंत्री मोदी के नेतृत्व में वर्तमान व्यवस्था को जारी रखना चाहता है। दूसरी ओर, चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पता चलता है कि पूंजीपति वर्ग का एक प्रभावशाली घटक भी है जो भारतीय लोकतंत्र को और अधिक बदनाम होने से रोकने के लिए भाजपा के स्थान पर वैकल्पिक व्यवस्था लाना चाहता है।

हालाँकि, चाहे एनडीए या इंडिया गठबंधन अगली सरकार बनाए, पूंजीपति वर्ग का शासन बरकरार रहेगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि अति-अमीर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक कामकाजी लोगों के बीच की खाई बढ़ती रहेगी।

हमारे इतिहास में जाते हुए, श्री संतोष ने कहा कि 1947 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन समाप्त होने पर शोषण और उत्पीड़न के अंत की हमारे लोगों की उम्मीदें धराशायी हो गईं, क्योंकि राजनीतिक शक्ति भारतीय पूंजीपति वर्ग के हाथों में स्थानांतरित हो गई थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि 1950 में अपनाया गया संविधान ब्रिटिश शासकों द्वारा छोड़ी गई शोषण और उत्पीड़न की व्यवस्था को कायम रखने के लिए बनाया गया है। इसे भारतीय पूंजीपति वर्ग को सत्ता में बनाए रखने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जबकि मेहनतकश बहुसंख्यक लोग लगातार बढ़ते शोषण और उत्पीड़न के सामने शक्तिहीन बने हुए हैं।

उन्होंने घोषणा की, समय मौजूदा व्यवस्था से पूरी तरह नाता तोड़ने का आह्वान कर रहा है। भारत की संपत्ति का उत्पादन करने वाले मजदूर और किसान उसके मालिक बन सकते हैं और उन्हें बनना भी चाहिए। हमें मजदूरों और किसानों के शासन की एक नई प्रणालि विकसित करनी चाहिए, जिसमें बिना किसी अपवाद के सभी मनुष्यों के अधिकार सुरक्षित हों। हमें एक नया संविधान स्थापित करना होगा जो लोगों को संप्रभुता प्रदान करेगा। मंत्रियों को निर्वाचित विधायी निकाय के प्रति जवाबदेह होना चाहिए और सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों को मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।

चुनाव अभियानों के लिए सभी प्रकार की पूंजीवादी फंडिंग को ख़त्म करना ज़रूरी है। नई प्रणालि में, प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव के लिए खड़े उम्मीदवारों की सूची का चयन करने में मतदाताओं को निर्णायक भूमिका निभानी होगी। राज्य को उम्मीदवारों के चयन की पूरी प्रक्रिया और चयनित उम्मीदवारों के चुनाव अभियान का पूरा वित्तपोषण करना चाहिए। लोगों को निर्वाचित प्रतिनिधियों को जिम्मेदार ठहराने और यदि वे हमारे हितों की पूर्ति नहीं करते हैं तो उन्हें किसी भी समय वापस बुलाने का अधिकार होना चाहिए। हमें कानूनों और नीतियों को प्रस्तावित करने या अस्वीकार करने का अधिकार होना चाहिए।

चल रहे चुनावों के नतीजे चाहे जो भी हों, हमें अपने अधिकारों के लिए अपना संघर्ष तेज़ करना होगा। हमें भारत का शासक बनने का लक्ष्य लेकर संघर्ष करना चाहिए।

हमारे हाथों में राजनीतिक शक्ति होने से, मजदूर और किसान उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण करने में सक्षम होंगे और सभी के लिए सुरक्षित आजीविका और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए अर्थव्यवस्था को नयी दिशा देंगे। केवल तभी भारतीय लोगों की सभी प्रकार के शोषण और उत्पीड़न से पूर्ण मुक्ति की दीर्घकालिक आकांक्षाएं पूरी होंगी, ऐसा उन्होंने अंत में कहा।

डॉ. ए मैथ्यू ने बताया कि सरकार शासकों, यानि कि बड़े कॉर्पोरेट घरानों द्वारा अपनी ओर से देश पर शासन करने के लिए चुनी गई प्रबंधक है। बड़े कॉर्पोरेट घराने यह तय करते हैं कि कौन सी पार्टी या गठबंधन लोगों को बेवकूफ बनाते हुए उनके एजेंडे को सबसे अच्छे से आगे बढ़ाएगा। यदि पूंजीपति वर्ग का यह एजेंडा जारी रहता है, तो हम अच्छी तरह से कल्पना कर सकते हैं कि भविष्य में हमारे लिए क्या होगा – कम हाथों में धन का अधिक से अधिक संकेंद्रण, गरीबी और बेरोजगारी में वृद्धि, मज़दूरों और किसानों की आजीविका और अधिकारों पर अधिक हमले, अधिक गरीबी, शोषण और भुखमरी, विरोध करने के हमारे अधिकार पर अधिक हमले, आदि। हमारे शासक दावा करते हैं कि हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। हमारे देश के 1% सबसे अमीर लोग, जिनके पास देश की 40% से अधिक संपत्ति है, दुनिया के सबसे अमीर लोगों में गिने जाते हैं, जबकि मेहनतकश लोगों का बड़ा बहुसंख्यक हिस्सा दुनिया के सबसे गरीबों में गिना जाता है। सार्वजनिक संपत्तियों और सेवाओं को सबसे बड़े इजारेदार पूंजीपतियों को सौंपा जा रहा है ताकि उन्हें अपने मुनाफे को अधिकतम करने में मदद मिल सके। अंग्रेजों के जाने के बाद जो पूंजीपति देश के शासक बने, उन्होंने वही राज्य संरचना और शासन का वही तरीका अपनाया, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने हमारे लोगों को लूटने और शोषण करने के लिए किया था। पूंजीवादी शोषकों के हितों की पूर्ति करने वाली इस व्यवस्था का उपयोग मजदूरों और किसानों के हितों की पूर्ति के लिए नहीं किया जा सकता। हम मजदूरों और किसानों को इसके स्थान पर एक नई व्यवस्था लानी होगी जिसमें अर्थव्यवस्था लोगों की जरूरतों को पूरा करने की ओर उन्मुख हो और लोग ही निर्णय लेने वाले हों। हमें इसी उद्देश्य के साथ अपने संघर्ष को आगे बढ़ाना है और उन सभी लोगों को अपने कार्यक्रम के तहत एकजुट करना है जो इस व्यवस्था के तहत उत्पीड़ित हैं।

इसके बाद, कई प्रतिभागियों ने अपनी अपनी बात रखी। उनमें इन्डियन रेलवे लोको रनिंगमेन संगठन (आईआरएलआरओ) के केंद्रीय कार्यकारी अध्यक्ष श्री संजय पांधी, गदर इंटरनेशनल से श्री सलविंदर ढिल्लों, इंडियन वर्कर्स असोसिएशन (ग्रेट ब्रिटेन) से श्री दलविंदर अटवाल, लोक राज संगठन के उपाध्यक्ष श्री हनुमान प्रसाद शर्मा, पंजाब से प्रोफेसर मनभंजन; सुश्री सुजाता मधोक, पत्रकार; श्री सुभाष भटनागर, सचिव, निर्माण मजदूर पंचायत संगम; और महिला अधिकार कार्यकर्ता रीना त्रिपाठी, ये सब शामिल थे। चुनावों और मजदूरों, किसानों, महिलाओं और युवाओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए कई युवा साहसपूर्वक आगे आए।

चर्चा को समाप्त करते हुए श्री बिरजू नायक ने वक्ताओं और सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया। उन्होंने मौजूदा “लोकतंत्र” को बेनकाब करने का आह्वान किया जिसमें सबसे अमीर कॉर्पोरेट घराने एजेंडा तय करते हैं और उस सरकार को सत्ता में लाने के लिए संगठित होते हैं जो उनके एजेंडे को सबसे अच्छे से लागू करेगा। मज़दूरों और किसानों को यह भ्रम दिया जाता है कि वे अपनी सरकार चुन रहे हैं, इस वास्तविकता को छिपाते हुए कि हमारे पास हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले कोई भी निर्णय लेने की शक्ति नहीं है। हमें देश का मालिक बनने के लिए संगठित होना होगा और एक नई प्रणालि का निर्माण करना होगा जो विशाल मेहनतकश बहुसंख्यकों के हितों की सेवा करेगी, ऐसा उन्होंने आखिर में कहा।

 

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