ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) का बयान
उत्तर प्रदेश में बिजली निजीकरण संघर्ष
उत्तर प्रदेश में दो बड़ी बिजली वितरण निगमों वाराणसी डिस्कॉम और आगरा डिस्कॉम के निजीकरण की घोषणा की गई है। इन दोनों डिस्कॉम के निजीकरण से 70,000 से अधिक नियमित और आउटसोर्स कर्मचारियों पर छंटनी का खतरा मंडरा रहा है। डर इस बात का है कि उत्तर प्रदेश को बिजली के निजीकरण की प्रयोगशाला बना दिया गया है। पहले चरण में दो डिस्कॉम के निजीकरण की घोषणा की गई है, लेकिन फैसला पूरे वितरण क्षेत्र के निजीकरण का है।
आप सभी इस बात से सहमत होंगे कि उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों ने निजीकरण को रोकने के लिए हमेशा बहादुरी से संघर्ष किया है और अपने संघर्ष में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
आज परिस्थितियां बहुत प्रतिकूल हैं। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के 18 शीर्ष पदाधिकारियों को माननीय उच्च न्यायालय में तलब किया गया था। अंतरिम आदेश में माननीय उच्च न्यायालय ने हड़ताल और बिजली व्यवधान के खिलाफ सख्त चेतावनी दी है। उच्च न्यायालय ने बिजली क्षेत्र में हड़ताल पर रोक लगा दी है। इस जनहित याचिका का अभी तक उच्च न्यायालय में निस्तारण नहीं हुआ है। इसके अलावा संघर्ष समिति के शीर्ष पदाधिकारियों के खिलाफ एस्मा और अन्य कई आपराधिक धाराओं के उल्लंघन में एफआईआर दर्ज कराई गई है। समझौते के बावजूद मुकदमा वापस नहीं लिया गया है और उत्पीड़नात्मक कार्रवाई वापस नहीं ली गई है। उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी इन बातों से डरने वाले नहीं हैं। लेकिन वे माननीय उच्च न्यायालय के आदेश से बंधे हुए हैं क्योंकि अंतरिम आदेश में शीर्ष पदाधिकारियों के नाम का उल्लेख है।
ऐसी परिस्थितियों में हम निजीकरण के जनविरोधी फैसले के खिलाफ व्यापक संघर्ष और जनांदोलन खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं।
आज उत्तर प्रदेश में जो कुछ हो रहा है, वह पूरे देश के लिए झांकी है। यदि सरकार उत्तर प्रदेश में निजीकरण करने में सफल हो जाती है तो पूरे देश में निजीकरण का काम करने में सरकार को कोई परेशानी नहीं होगी।
इसलिए यह समय है जब पूरे देश के बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों को उत्तर प्रदेश के साथ मजबूती से खड़ा होना चाहिए और इसकी ठोस रणनीति तुरंत बनानी चाहिए।
इंकलाब जिंदाबाद!
AIPEF