प्रमुख बंदरगाहों का निजीकरण राष्ट्रीय हित में नहीं है

श्री वी.वी.सत्यनारायण, संयुक्त सचिव, विशाखापट्टनम बंदरगाह कर्मचारी संघ (एचएमएस) का एआईएफएपी को पत्र

अब तक सरकार का कदम अधिक से अधिक सरकारी बंदरगाहों का निजीकरण करना है जो केवल अदानी जैसे अधिक निजी खिलाड़ियों को उनका मालिक बनने में मदद करेगा। (विशाखापट्टनम में गंगावरम बंदरगाह पहले से ही अदानी की मालिकी का होगया है) देश में प्रमुख बंदरगाहों का निजीकरण समग्र रूप से राष्ट्र के समग्र विकास और विकास के लिए हानिकारक है। यदि निजीकरण के कदम पर फिर से विचार नहीं किया जाता है, तो निस्संदेह यह देश की सुरक्षा की कीमत पर होगा, जिससे किसी भी स्तर पर समझौता नहीं किया जा सकता है।

(पत्र का हिंदी अनुवाद)

दिनांक 28.09.2021

प्रति

सर्व हिंद निजीकरण विरोधी फ़ोरम (एआईएफएपी)

आदरणीय महोदय,

विषय: देश में प्रमुख बंदरगाहों का निजीकरण — के संबंध में

यह ज्ञात तथ्य है कि भारत में 13 प्रमुख बंदरगाह हैं, और 12 सरकारी मलिकी के हैं और एक मून्द्रा, गुजरात में एक निजी बंदरगाह है जो अदानी की मलिकी का है। यह गंभीर चिंता का विषय है कि हाल ही में अदानी के उस एकल निजी बंदरगाह में दो कंटेनरों में 21,000 करोड़ मूल्य की 3,000 किलोग्राम हेरोइन मिली थी। असल में इतनी बड़ी मात्रा में नशीले पदार्थ का मामला निजी बंदरगाह में हुआ और सरकारी बंदरगाहों में कभी नहीं। और अब तक सरकार का कदम अधिक से अधिक सरकारी बंदरगाहों का निजीकरण करना है जो केवल अदानी जैसे अधिक निजी खिलाड़ियों को उनके मालिक बनने में मदद करेगा और जाहिर है कि वे बंदरगाह नशीले पदार्थ की तस्करी के लिए अड्डा बन जाएंगे जो एक खतरनाक प्रवृत्ति है।

निस्संदेह देश में प्रमुख बंदरगाहों का निजीकरण समग्र रूप से राष्ट्र के समग्र विकास और विकास के लिए हानिकारक है। यथार्थवादी परिदृश्य पर जोर देना उचित है कि सरकार के स्वामित्व वाले बंदरगाहों ने समय-समय पर कदम उठाये हैं और महत्वपूर्ण परिस्थितियों में सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है, जब भी और जहां कहीं भी विभाजनकारी ताकतों द्वारा देश में शांति और सद्भाव को भंग करने का खतरा होता है।

मुझे एक विशेष घटना याद आती है जब तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के कार्यकाल में जब देश के प्रमुख बंदरगाहों के निजीकरण का प्रस्ताव आया तो विभिन्न ट्रेड यूनियन फेडरेशनों के सभी नेताओं के साथ बैठक की गई और व्यक्त विचारों को सुनने पर प्रधानमंत्री ने मामले की समीक्षा और पुन: जांच की। राष्ट्र के हित और सुरक्षा में प्रस्ताव को छोड़ दिया। इसी तरह फिर वही स्थिति हुई जब श्री अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधान मंत्री थे, और उन्होंने भी फेडरेशन के नेताओं द्वारा व्यक्त विचारों और विचारों को उचित महत्व दिया और तदनुसार प्रस्ताव को स्थगित कर दिया गया।

इसलिए, पिछले अनुभव को ध्यान में रखते हुए और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी राजनीतिक दल के हितों के बावजूद किसी भी सरकार के लिए राष्ट्र की सुरक्षा सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण है, सरकार को अपने गर्व और अहंकार को सख्ती से दूर रखना चाहिए और सभी प्रमुख बंदरगाहों की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने का विवेकपूर्ण निर्णय कि इसे निजी उद्यमियों के हाथों में नहीं रखा जाए लेना चाहिए।

इसके अलावा, अनुभव और वास्तविकता ने हमें सिखाया कि सार्वजनिक निजी भागीदारी की अवधारणा न केवल वांछित परिणाम सुनिश्चित करने में विफल रही, बल्कि सरकार और निजी पार्टियों के बीच मुकदमेबाजी और मध्यस्थता के मुद्दों में भी फंसी रही है, जिससे दोनों पक्ष अपने अधिकारों और हितों की सुरक्षा कर सकें।

निजीकरण को चुनने के कदम के बजाय इस मुद्दे का बेहतर समाधान खोजने का हमेशा एक तरीका होता है और यदि इस कदम पर फिर से विचार नहीं किया जाता है तो निस्संदेह यह देश की सुरक्षा के दांव पर होगा जिससे समझौता नहीं किया जा सकता है।

इसलिए, सरकार के लिए समय और अंतिम आह्वान की जरूरत है कि  प्रमुख बंदरगाहों का निजीकरण बंद करो और देश बचाओ।

                                            आपका विश्वासी,

                                     (वी.वी.सत्यनारायण)

संयुक्त सचिव वी.पी.ई. यूनियन (एच.एम.एस.)

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