क्यों खतरनाक है अंधाधुंध निजीकरण ??

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मंजीत सिंह पटेल, राष्ट्रीय मिडिया सचिव, नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (NMOPS) एवं अध्यक्ष, ऑल इंडिया एनपीएस एम्प्लोयीज फेडरेशन

अंधाधुंध निजीकरण से हम अपने देश के लिए कुछ टैक्स भले ही ज्यादा जुटा लें, लेकिन हम एक नया बड़ा  मजदूर वर्ग अपने ही घर में जरूर पैदा कर लेंगे जिसके पास नौकरी तो हो सकती है लेकिन उसके पास जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए आर्थिक सुरक्षा नहीं होगी और भारत मे एक नई गरीबी रेखा तैयार हो जायेगी जिसके नीचे 70% हिंदुस्तान पिस रहा होगा।

 

ज्यादा से ज्यादा रिवेन्यू जनरेट करने के लिए आज सरकार निजीकरण की तरफ रुख कर रही है जिसके पीछे सरकार के 2 तर्क हैं——-

पहला कि अधिकांश कर्मचारी अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी से नही करते हैं और तरह तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं, इसलिए सरकार को लग रहा है कि निजीकरण इस भ्रष्टाचार को ख़त्म कर देगा और इन्ही उद्यमों से सरकार को टैक्स के रूप में ज्यादा आमदनी होगी। यही नहीं कर्मचारी भी ज्यादा स्किलफुल होंगे।

दूसरा कि सरकार को इन उपक्रमों में लगे हुए मैनपावर की जिम्मेदारियों पर बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है जिसके कारण वंचित समाज तक सरकारी नीतियों के फंड में कटौती करनी पड़ती है और तमाम योजनाएं फंड की कमी के कारण दम तोड़ देती हैं। जिससे विकास की गति कमजोर हो रही है और आजादी के इतने वर्षो के बाद भी देश का अधिकांश समाज अविकसित है। उनके हिसाब से निजीकरण इस समस्या को चुटकियों में हल कर देगा और पूरा देश दो चार साल में सिंगापुर बन जायेगा।

चलो यह मान भी लेते हैं कि कुछ कर्मचारी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते होंगे, फिर भी यह सत्य है कि किसी सिस्टम के फेल्योर का कारण हाईकमान होती है न कि निचले स्तर के कर्मचारी। जब विभाग का मुखिया बेईमान होता है तो बेईमानी निचले स्तर तक आसानी से पहुंच जाती है। सीधी सी बात है यदि जिलाधिकारी ईमानदार और सशक्त हो तो दूर किसी गांव में पोस्टेड चपरासी भी बेईमानी नहीं कर सकता। यदि प्रिंसिपल ईमानदार हो तो सभी टीचर अपने आप ठीक काम करने लगते हैं। यदि कप्तान ईमानदार हो तो सभी पुलिस वाले ईमानदारी से काम करते हैं। उन्हें अपनी नौकरी का खौफ ईमानदारी पर स्वयं ले आता है।

और सच सभी जानते हैं कि माल कमाने के लिए इन्हीं सरकारों ने 90% हाईकमान वाले अपने अपने अधिकारियों की पोस्टिंग इन कमाई वाले विभागों/जगहों पर करते रहे हैं।

और आज उस नाकामी का ठीकरा छोटे छोटे कर्मचारियों के सर पर फोड़ा जा रहा है, यह कहकर कि इनकी आये दिन डिमांडो के कारण हड़तालें और बेईमानी देश को विकास नहीं करने देती हैं।

सच तो यह है कि निजीकरण स्वयं में एक असाध्य समस्या है। सोचने वाली बात है कि हिंदुस्तान में पहले से ही दोनों तरह के  सरकारी और निजी संस्थान पचासों वर्षो से काम कर रहे हैं चाहे स्कूल हों, या अस्पताल या बिजली के विभाग हों। अब अगर हम अस्पतालों के उदाहरण से ही समझते हैं तो पाएंगे कि सरकारी अस्पताल में काम करने वाला चाहे डॉक्टर हो, नर्स हो, या टेक्नीशियन हो या सफाई कर्मचारी- सभी के लिए एक पेस्केल की व्यवस्था होती है, जिसके हिसाब से उसे सेलरी मिलती है चाहे वह कर्मचारी देश के किसी कोने में हो। युनिफार्मिटी के लिए और मंहगाई के अनुसार कर्मचारियों के परिवार को ध्यान में रखकर इस पेस्केल की व्यवस्था की जाती है। लेकिन आप पाएंगे कि एक ही शहर में आस पास के भी दो निजी अस्पतालों में भी किसी कर्मचारी को कोई पेस्केल की सुविधा नही दी जाती है। एक निजी अस्पताल  में नर्स को 8000₹  पर रखा जाता है तो दूसरा उसे 12000₹ पर रखता है। किसी निजी अस्पताल में सफाई वाले को 5000₹ मिलते हैं तो दूसरे में 4000₹ ही मिलते हैं। कहने का मतलब है कि निजी संस्थान कभी किसी कर्मचारी को एक समान वेतन सुविधा नहीं देंगे, और काम के घंटे भी असामान्य ही रहेंगे। आने वाले समय में सरकारी नौकरियों में जो लाखों लोग काम कर रहे हैं उनकी संख्या प्राइवेट में शिफ्ट हो जायेगी। जब उन्ही पोस्टों पर काम करने वाले कर्मचारियों को जीवन जीने के उपयुक्त सेलरी नही मिलेगी तो निश्चित रूप से भ्रष्टाचार और शोषण भी बढ़ेगा जो लाखों परिवारों में तरह तरह की समस्याएं पैदा करेगा। हिंदुस्तान का HDI इंडेक्स यानी मानवविकास सूचकांक में वैसे ही रैंकिंग अच्छी नही है, निजीकरण इस रैंकिंग को और नीचे धकेल देगा। तब आज से भी ज्यादा लोग उस रेखा के नीचे दिखेंगे जो नौकरी तो कर रहे होंगे लेकिन उस आमदनी से उनके घरों में फिर भी आर्थिक अंधेरा ही होगा।

जहां हमारे 135 करोड़ की जनसँख्या को अभी रोजगार की जरूरत है, निजीकरण से मानव श्रम की संख्या में भी कटौती की जायेगी इससे रोजगार बढ़ने की बजाय एक बड़ी संख्या बेरोजगार और हो जायेगी। सरकारी संस्थानों में आरक्षण ब्यवस्था के तहत सामाजिक आर्थिक रूप से वंचित वर्गों के लिए रोजगार की व्यवस्था की गई है, निजीकरण इस व्यवस्था को भी खत्म कर देगा। इससे वंचित समाजों का विकास भी रुक जायगा और मजदूर वर्ग की संख्या में बेतहाशा बढ़ोत्तरी होगी।

संभव है अंधाधुंध निजीकरण से हम अपने देश के लिए कुछ टैक्स भले ही ज्यादा जुटा लें, लेकिन हम एक नया बड़ा  मजदूर वर्ग अपने ही घर में जरूर पैदा कर लेंगे जिसके पास नौकरी तो हो सकती है लेकिन उसके पास जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए आर्थिक सुरक्षा नहीं होगी और भारत मे एक नई गरीबी रेखा तैयार हो जायेगी जिसके नीचे 70% हिंदुस्तान पिस रहा होगा। तो क्या हम वास्तव में ऐसे विकसित राष्ट्र का सपना सच कर रहे हैं जो बाहर से समृद्ध और अंदर से खोखला हो???

 

Manjeet Singh Patel
National Media secretary
NMOPS

&

President
All India NPS Employees Federation
9899353538

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