मज़दूर एकता कमेटी का आह्वान, 26 अप्रैल 2025
दुनिया के सभी देशों में मज़दूर हर साल, 1 मई के दिन को जुलूस, रैलियों, गेट मीटिंगों और अन्य प्रकार के कार्यक्रमों के साथ मनाते हैं। हम इस दिन पर मज़दूर होने के नाते अपने अधिकारों का दावा करते हैं। हम सभी प्रकार के शोषण और उत्पीड़न से अपनी मुक्ति के लिए संघर्ष करने का संकल्प लेते हैं। जब यूरोप और उत्तरी अमरीका के मजदूरों ने 1890 में पहला मई दिवस मनाया था, तब से यह मज़दूर वर्ग की परंपरा बनी हुयी है।
मई दिवस 2025 पर मज़दूर एकता कमेटी अपने देश के और दुनिया के सभी देशों के मजदूरों को सलाम करती है, जो पूंजीवादी शोषण के ख़िलाफ़ और अपने अधिकारों की हिफ़ाज़त में बहादुरी से संघर्ष कर रहे हैं।
मज़दूर साथियों,
जब हम दुनिया की वर्तमान स्थिति को देखते हैं, तो हम देखते हैं कि सभी पूंजीवादी देशों की सरकारें समाज के सभी सदस्यों के हितों के लिए काम करने का दावा कर रही हैं। लेकिन वास्तव में वे पूंजीपति वर्ग के हितों के लिए ही काम करती हैं। वे पूंजीवादी मुनाफ़े को अधिकतम करने के उद्देश्य से, मज़दूरों के शोषण को बढ़ाने के लिए क़ानून बनाती हैं और नीतियां अपनाती हैं।
हमारे देश में पिछले 34 वर्षों से केंद्र और राज्यों में एक के बाद एक, जो भी सरकारें आई हैं, वे वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण के कार्यक्रम को लागू करती रही हैं। सरकारी प्रवक्ताओं और सरमायदारी विचारकों ने दावा किया था कि इस कार्यक्रम से “समावेशी संवर्धन” और “सबका विकास” होगा। वास्तविक परिणाम अति-अमीर पूंजीपतियों की संपत्ति में भारी वृद्धि हुई है। इससे मज़दूरों का और अधिक शोषण, किसानों की और अधिक लूट और अन्य छोटे उत्पादकों की पूरी बर्बादी हुई है।
वैश्वीकरण और उदारीकरण के नाम पर, ऑटोमोबाइल और बीमा से लेकर खुदरा व्यापार तक, अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों पर विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हावी होने के लिए दरवाज़े खोल दिए गए हैं। हिन्दोस्तानी इजारेदार पूंजीवादी कंपनियों ने विदेशों में अपने निवेश को बहुत बढ़ा दिया है, और दूसरे देशों में मज़दूरों के शोषण से भारी मुनाफ़े कमा रहे हैं। हिन्दोस्तानी और विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों ने कृषि व्यापार और खाद्य फ़सलों की ख़रीद के क्षेत्र पर हावी होना शुरू कर दिया है, जिससे किसानों की आमदनी में गिरावट और क़र्ज़ में वृद्धि हुई है।
निजीकरण सार्वजनिक संपत्तियों और सेवाओं को निजी कंपनियों को सौंपने का एक कार्यक्रम है। इसे अलग-अलग रूपों में और अलग-अलग नामों से लागू किया गया है, जिनमें विनिवेश, मुद्रीकरण और सार्वजनिक-निजी सांझेदारी (पीपीपी) शामिल हैं। इसका उद्देश्य आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं को अधिकतम पूंजीवादी मुनाफ़े के स्रोतों में बदलना है। इसके चलते, कई आवश्यक वस्तुएं व सेवाएं बहुत महंगी हो गयी हैं, तथा मेहनतकशों की पहुंच से बाहर हो गयी हैं। इसके चलते, रेलवे, कोयला खदानों, बिजली, दूरसंचार, बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य और कई अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले मज़दूरों की हालतें और ज़्यादा ख़राब हो गयी हैं।
केंद्र और राज्य सरकारों ने “ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस“ के नाम पर कई क़दम उठाए हैं, जिनसे मज़दूरों के सालों-सालों के संघर्ष के ज़रिए हासिल किए गए अधिकारों को छीना जा रहा है। सार्वजनिक और निजी कंपनियों में व्यापक तौर पर आउटसोर्सिंग व ठेका मज़दूरों द्वारा काम करवाया जा रहा है, जहां मज़दूरों के किसी भी अधिकार का कोई क़ानूनी संरक्षण नहीं है। इससे मज़दूरों की पूंजीपतियों से अपने अधिकारों के लिए लड़ने की शक्ति को कमज़ोर किया गया है।
कई वर्षों से पूंजीपति वर्ग मज़दूरों को उनके अधिकारों से वंचित करने और उनके अति-शोषण को आसान बनाने के लिए, श्रम क़ानूनों में बदलाव की मांग कर रहा था। विभिन्न राज्य सरकारों ने अपने श्रम क़ानूनों में ऐसे सुधार किए। भाजपा सरकार ने 2019 और 2020 में अपने संसदीय बहुमत का इस्तेमाल करके, चार सर्व हिन्द श्रम संहिताएं (लेबर कोड) लागू करवा दी थीं। इन श्रम संहिताओं का उद्देश्य मज़दूरों को 8 घंटे काम का दिन जैसे उन सभी अधिकारों से वंचित करना है, जिन्हें हमने कई दशकों के संघर्ष के ज़रिए जीता है।
ये श्रम संहिताएं हमें संगठित होने, अपनी पसंद की यूनियन बनाने और हड़ताल करने के अधिकार से वंचित करती हैं। करोड़ों मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। पूंजीपतियों को अपनी मर्ज़ी से मज़दूरों को काम पर रखने और निकालने की इजाज़त दी जा रही है। उन्हें अधिकांश मज़दूरों से अस्थायी ठेकों पर काम करवाने और कार्यस्थल पर सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करने की पूरी छूट दी जा रही है। उन्हें प्रतिदिन 8 घंटे से ज़्यादा और प्रति सप्ताह 48 घंटे से ज्यादा काम करवाने की छूट दी जा रही है।
जीवन के अनुभव ने इस झूठ का पर्दाफ़ाश कर दिया है कि हमारे देश में राजनीतिक व्यवस्था एक लोकतंत्र है, जिसमें कथित तौर पर लोगों के पास फ़ैसले लेने की शक्ति होती है। मज़दूर और किसान, जो आबादी का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा हैं, इस व्यवस्था में उनके पास कोई शक्ति नहीं है। क़ानून और नीतियों को तय करने में हमारी कोई भूमिका नहीं है। देश का असली हुक्मरान पूंजीपति वर्ग है। पूंजीपति अपनी किसी भरोसेमंद पार्टी को सरकार चलाने का काम सौंपने के लिए चुनावों का इस्तेमाल करते हैं। वे उस पार्टी को चुनाव में जिताते हैं, जो पूंजीवादी कार्यक्रम को सबसे प्रभावी ढंग से लागू कर सकती है, और साथ ही साथ, लोगों को यह कहकर मूर्ख बना सकती है कि यह उनके सर्वोत्तम हित में है।
मज़दूर साथियों,
दिहाड़ी मज़दूरों और मासिक वेतन पर काम करने वाले मज़दूरों, सबको मिलाकर, हम मज़दूर देश में सबसे अधिक संख्या वाला वर्ग हैं। आज यह समय की मांग है कि हम एक प्रबल शक्ति के रूप में एकजुट होकर पूंजीवादी शोषकों और उनकी सेवा करने वाली सरकार के खि़लाफ़ संघर्ष को आगे बढ़ाएं।
हमें उन सभी विभाजनों से ऊपर उठने की ज़रूरत है जो पूंजीपति वर्ग और उसकी पार्टियां हमारे बीच में पैदा करती हैं। क़ानून और सरकारी नियम हमें औपचारिक और अनौपचारिक मज़दूरों, नियमित और अस्थायी मज़दूरों, संगठित और असंगठित मज़दूरों में बांटते हैं। पूंजीपति वर्ग की राजनीतिक पार्टियां हमें धर्म और जाति के आधार पर बांटने की कोशिश करती हैं।
हमें हुक्मरान पूंजीपति वर्ग के कार्यक्रम के विरोध में, अपने कार्यक्रम के इर्द-गिर्द अपनी एकता को मजबूत करना होगा। मज़दूर यूनियन और किसान यूनियन पहले से ही अपनी फ़ौरी मांगों के एक घोषणापत्र के इर्द-गिर्द एकजुट हैं। हमें इन मांगों पर दृढ़ता से अड़े रहना होगा और इन्हें हासिल करने के लिए संघर्ष को तेज़ करना होगा।
कौन सुनिश्चित करेगा कि हमारी मांगें पूरी होंगी? वर्तमान व्यवस्था के अन्दर, हुक्मरान वर्ग की पार्टियां इस व्यवस्था को संभालने के लिए आपस में होड़ लगाती हैं। हम ऐसी पार्टियों की सरकारों से हमारी मांगों को पूरा करने की उम्मीद नहीं कर सकते। हमें पूंजीपति वर्ग की हुकूमत की जगह पर मज़दूरों और किसानों की हुकूमत स्थापित करने के राजनीतिक उद्देश्य से संघर्ष करना होगा। ऐसा करके ही हम सभी प्रकार के शोषण को समाप्त कर सकते हैं और सभी मेहनतकश लोगों के अधिकारों की गारंटी दे सकते हैं।
मज़दूर साथियों,
इस साल मई दिवस ऐसे समय पर आ रहा है जब पूंजीवादी व्यवस्था विश्व स्तर पर अत्यंत गंभीर संकट में फंसी हुई है। अमरीका द्वारा शुरू किया गया व्यापार युद्ध दर्शाता है कि सबसे उन्नत पूंजीवादी देश में हुक्मरान वर्ग हताश स्थिति में है। विभिन्न देशों के पूंजीपतियों के बीच तीखी लड़ाई उनकी ताक़त की निशानी नहीं बल्कि पूरी पूंजीवादी व्यवस्था की कमज़ोरी की निशानी है।
विश्व स्तर पर हो रही गतिविधियां यह दर्शाती हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था सभी की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकती है और पूंजीपति वर्ग शासन करने के अयोग्य है। अगर यह वर्ग सत्ता में रहा तो यह एक के बाद एक आपदाएं लाएगा, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर मौत और विनाश होंगे।
केवल मज़दूर वर्ग ही मानव-समाज को उस ख़तरनाक रास्ते से बचा सकता है जिस पर पूंजीपति उसे घसीट कर ले जा रहे हैं। हम राजनीतिक सत्ता को अपने हाथों में लेने और पूंजीवाद से समाजवाद की ओर परिवर्तन को अंजाम देने के लिए संगठित होकर व तैयारी करके ऐसा कर सकते हैं, जैसा कि 1917 में रूसी मज़दूर वर्ग ने किया था।
आज के हालात सभी देशों के मज़दूरों से पूंजीवादी शोषण को हमेशा के लिए समाप्त करने के उद्देश्य से एकजुट होने का आह्वान कर रहे हैं। इसमें एक फ़ौरी क़दम इस मई दिवस समारोह को बड़े से बड़े पैमाने पर आयोजित करना है।
मज़दूर एकता कमेटी सभी क्षेत्रों के मज़दूरों से, देश के सभी भागों में, मई दिवस मनाने के कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में शामिल होने का आह्वान करती है। आइए, हम मज़दूरों और किसानों की हुकूमत स्थापित करने के प्रेरणादायक लक्ष्य के साथ, अपने अधिकारों के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लें।
“श्रमजीवी वर्ग के पास खोने के लिए, अपनी जंजीरों के अलावा और कुछ नहीं है। उनके पास जीतने के लिए पूरी दुनिया है।”*
* मार्क्स और एंगेल्स, कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र