राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन परियोजना के खिलाफ सेंट्रल ट्रेड यूनियनों का राष्ट्रव्यापी विरोध ट्रेड यूनियन इसे भारत परियोजना की बिक्री कहते हैं

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, स्वतंत्र फेडरेशनों/ एसिओसेशनों के संयुक्त मंच ने 23 अगस्त 2021 को केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा घोषित तथाकथित ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ (एनएमपी) परियोजना के खिलाफ राष्ट्रव्यापी विरोध दिवस -07 अक्टूबर 2021 का आयोजन किया। इस परियोजना में अगले 4 वर्षों में 6 लाख करोड़ रुपये जुटाने का प्लान किया गया है। योजना में विभिन्न सरकारी संपत्तियों को पट्टे की विभिन्न अवधियों के लिए पट्टे पर देने की परिकल्पना की गई है। यह दावा किया गया है कि इस तरह से उत्पन्न धन को बुनियादी ढांचे के विस्तार में निवेश किया जाएगा। हमारा आरोप यह है कि यह और कुछ नहीं बल्कि सभी ढांचागत संपत्तियों को निजी हाथों में सौंपने के लिए एक नापाक डिजाइन है, जो उनके लिए पूंजीगत लागत के किसी भी दायित्व के बिना राजस्व सृजन के लिए लगभग मुफ्त है और उस विशाल राजस्व का एक छोटा हिस्सा सरकार के साथ साझा किया जायेगा।

सरकार के इस नवीनतम कदम का तत्काल प्रभाव आम आदमी के लिए निजी कंपनियों को लीज पर दी जा रही सभी ढांचागत सेवाओं में मूल्य वृद्धि होगा क्योंकि निजी ऑपरेटरों को, आधिकारिक एनएमपी दस्तावेज़ के अनुसार, उन सभी बुनियादी ढांचे के उपयोगकर्ता/सेवा शुल्क बढ़ाने और आम लोगों की कीमत पर अप्रत्याशित लाभ कमाने का अधिकार दिया गया है।

सरकार के इस तर्क के विपरीत कि रोजगार सृजित होंगे, पहले से ही खतरनाक बेरोजगारी की स्थिति को और भी बदतर करते हुए हजारों श्रमिक अपनी नौकरी खो देंगे। नौकरियों की गुणवत्ता और खराब होगी। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग सबसे बुरी तरह प्रभावित होंगे क्योंकि निजी क्षेत्र में नौकरियों में कोई आरक्षण नहीं है।

इसमें लाभ कमाने वाले 100 सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने की सरकार की घोषणा को भी जोड़ दें। इसका मतलब है कि सरकारी खजाने में आने वाला लाभ बंद हो जाएगा और निजी कॉरपोरेट के खजाने में बहने लगेगा। फिर, यह जानने के लिए गहन आर्थिक ज्ञान की आवश्यकता नहीं है कि इन कदमों के कारण लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की सरकार की क्षमता कम हो जाएगी।

सरकार भारत में अमीरों और अति-अमीरों पर कर लगाकर अपना खजाना भर सकती है। लेकिन सरकार उनके दोस्तों पर कर लगाने से इंकार करती है, यानी – अमीर और अति-अमीरों पर जो उनके मालिक हैं। यह असमानताओं को और गहरा करेगा जिससे आम आदमी के लिए और अधिक कष्ट होंगे।
राष्ट्रीय हित में इस नीति को वापस लेने के लिए ट्रेड यूनियनें आने वाले दिनों में अपना संघर्ष तेज करेंगी।

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