कामगार एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट

कामगार एकता कमेटी (KEC) मुंबई उपनगरीय ट्रेन नेटवर्क के लिए रेलवे सुरक्षा अभियान का सक्रिय रूप से नेतृत्व करती आयी है। अन्य संगठनों की तरह, KEC ने भी जन अभियानों के माध्यम से, मुंबई के उपनगरीय स्टेशन बदलापुर में प्लेटफार्मों की ऊंचाई बढ़ाने, फुटओवर ब्रिजों (पटरियों को पार करने वाले पैदल पुलों) को मजबूत करने और नए फुटओवर ब्रिज स्वीकृत करवाने जैसी कुछ स्टेशन-विशिष्ट मांगों को सफलतापूर्वक पूरा करवाया है।
हाल के महीनों में, KEC ने ठाणे जिले के विभिन्न क़स्बों की सड़कों पर उतरकर लोगों और संगठनों को सुरक्षित रेल यात्रा की मांग के लिए संगठित किया है। KEC के सदस्यों ने लोगों के घर-घर जाकर हस्ताक्षर एकत्र किए और नागरिकों को अभियान में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। इसका लोगों से जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। चर्चाओं के दौरान असुरक्षित यात्रा स्थितियों को लेकर निवासियों में गहरी चिंता और गुस्सा साफ़ दिखाई दिया है। अपने प्रियजनों की सुरक्षा से चिंतित बुजुर्गों से लेकर बच्चों तक ने समर्थन व्यक्त किया। इस अभियान को उनसे तहे-दिल से समर्थन मिला।
लोगों के उत्साहपूर्ण समर्थन ने अभियान को आगे बढ़ाने के इच्छुक कार्यकर्ताओं की एक सक्रिय समिति बनाने की तत्काल आवश्यकता को दर्शाया। इस उद्देश्य से KEC ने 7 सितंबर 2025 को ठाणे जिले के डोंबिवली में एक उत्साहपूर्ण बैठक आयोजित की। इसमें डोंबिवली और उसके उपनगरों कोपर और ठाकुरली, ठाणे और उसके उपनगरों मुंब्रा और कलवा इलाकों के साथ-साथ मुंबई से भी जागरुक नागरिक शामिल हुए। वे दैनिक यात्रा के अपने सांझे अनुभव, बदलाव की सामूहिक इच्छा और समाधान की दिशा में काम करने की अपनी ऊर्जा लगाने की इच्छा से एकजुट थे।
KEC के एक वक्ता ने बताया कि आज हमारे देश में प्रचलित पूंजीवादी व्यवस्था में, अर्थव्यवस्था शासक पूंजीपति वर्ग के मुनाफ़े को अधिकतम करने के लिए बनाई गई है। लोगों ने जो कुछ भी हासिल किया है, न केवल हमारे देश में, बल्कि जहां भी पूंजीवाद का बोलबाला है, वहां एकजुट संघर्षों के माध्यम से जीता जा सका है। पूंजीवादी सरकारें लोगों को तब तक कुछ नहीं देतीं जब तक उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं किया जाता। अन्य देशों में यात्रियों ने सुरक्षित और बेहतर सुविधाओं के लिए संघर्ष किया है और उन्हें हासिल किया है, इसीलिए उनकी दुर्दशा इतनी भयानक नहीं है।
पूरे भारत में यात्रियों के लिये दी जाने वाली यातायात की वार्षिक सब्सिडी लगभग 30,000 करोड़ रुपये है – यह आंकड़ा मुट्ठी भर उद्योगपतियों को दी जाने वाली 6,00,000 करोड़ रुपये की वार्षिक टैक्स रियायतों की तुलना में बहुत ही कम है। इसके अलावा, पिछले चार वर्षों में ही बड़े पूंजीपतियों के 4,50,000 करोड़ रुपये के न चुकाये गये कर्ज़ माफ़ किए गए हैं। लोग मांग कर रहे हैं कि उनका पैसा – जिसे सरकार वेतन पर प्रत्यक्ष टैक्सों और वस्तुओं तथा सेवाओं पर अप्रत्यक्ष टैक्सों के ज़रिये वसूलती है – इसको यात्रियों को सब्सिडी देने के लिए और रेलगाड़ियों व स्टेशनों पर बेहतर सेवाएं प्रदान करने के लिये किया जाये, न कि क़र्ज़ न चुकाने वाले पूंजीपतियों को बचाने के लिये।
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में यात्रियों की संख्या कई गुना बढ़ी है, लेकिन इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सेवाओं का उस अनुपात में विस्तार नहीं हुआ है। तो ट्रेनों की संख्या बढ़ाने का सीधा-सीधा समाधान लागू क्यों नहीं होता? यह स्पष्टता से बताया गया कि असली मुद्दा यह है कि जनता के पैसे का इस्तेमाल बहुसंख्यक लोगों के हितों की पूर्ति के लिए नहीं किया जाता है। वर्तमान आर्थिक व्यवस्था बहुसंख्यक लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए नहीं, बल्कि पूंजीपति शासक वर्ग की लालच को पूरा करने के लिए बनाई गई है! सबसे बड़े इजारेदारों के नेतृत्व में पूंजीपति वर्ग एजेंडा तय करता है, और सरकारें उसे लागू करने की पूरी कोशिश करती हैं! अर्थव्यवस्था की दिशा पूंजीपति वर्ग के मुनाफ़े को अधिकतम करने की ओर है। लोग सिर्फ़ पूंजीपतियों द्वारा अतिशोषित होने और अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष करों की अत्यधिक राशि चुकाने के लिए हैं!
”विकास का क्या अर्थ है? पूंजीपति वर्ग का विकास: उनकी संपत्ति हर दिन बढ़ रही है। लेकिन मेहनतकश लोगों के लिए, एकमात्र विकास हमारी समस्याओं में वृद्धि है, जो संख्या के साथ-साथ तीव्रता में भी बढ़ रही हैं!“ एक युवा महिला कार्यकर्ता की आक्रोशपूर्ण टिप्पणियां पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के संचालन का सटीक सार प्रस्तुत करती हैं!
लोगों को झूठे विवरणों से गुमराह किया जा रहा है या वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए उन्हें आपस में बांटा जा रहा है। इसे पहचानना और इसका सामना करने के लिए एकजुटता बनाना ज़रूरी है। प्रतिभागियों ने इस बात पर सहमति जताई कि यात्रियों का बिखराव उनकी सामूहिक आवाज़ को कमज़ोर करता है। इसलिए, इस बैठक का मुख्य उद्देश्य स्थानीय निवासियों को शामिल करते हुए, कार्यसमितियों का गठन करना था, जो इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए बेहद ज़रूरी होगा। बहुत से यात्री और जन संगठन वर्षों से इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं। इन सभी को एकजुट होकर एक संयुक्त संघर्ष छेड़ना समय की मांग है। इस बात पर ज़ोर दिया गया कि इस लड़ाई को, स्पष्ट उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए लगातार लड़ा जाना चाहिए। इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि अभियान में अल्पकालिक और दीर्घकालिक, दोनों तरह की मांगों को शामिल किया जाना चाहिए। दीर्घकालिक लक्ष्यों में वे मांगें शामिल हैं जिनके लिए हज़ारों लोगों की सामूहिक भागीदारी और निरंतर एकजुट संघर्ष की आवश्यकता होगी ताकि निम्नलिखित सुनिश्चित हों:
- सभी के लिए सुरक्षित और आरामदायक यात्रा सुनिश्चित करने के लिए ट्रेनों के बीच के अंतराल को घटाना।
- प्रत्येक ट्रेन में सवारी ढोने की क्षमता को बढ़ाने के लिए ट्रेनों में डिब्बों की संख्या बढ़ाना।
इसके साथ ही, कुछ स्टेशन-विशिष्ट मांगें भी उठाने की ज़रूरत है। ऐसी मांगों में शामिल हैं:
- हर स्टेशन पर मुफ्त पेयजल और शौचालय की सुविधा की उपलब्धता और नियमित रखरखाव।
- हर स्टेशन पर पर्याप्त कर्मचारियों (जैसे स्ट्रेचर वाहक, चिकित्सा कर्मचारी) के साथ प्राथमिक चिकित्सा और
- एम्बुलेंस सेवाएं।
हर स्टेशन पर पर्याप्त संख्या में स्टेशन मास्टर और टिकट विक्रेता जैसे अन्य आवश्यक कर्मचारी। अन्य बुनियादी सुविधाएं जैसे एस्केलेटर, सीढ़ियां, बेंच, पंखे, शौचालय, पेयजल फव्वारे और रैंप का निर्माण और रखरखाव।
प्रतिभागियों ने खुलकर अपनी चिंताओं और विचारों को सांझा किया, जिसके परिणामस्वरूप एक जीवंत चर्चा हुई। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि किसी उद्धारकर्ता की प्रतीक्षा करना व्यर्थ है – परिवर्तन तब आता है जब लोग एकजुट होते हैं और संघर्ष करते हैं। अपनी मांगों को अधिकारियों से पूरा करवाने के लिए बाध्य करने का एकमात्र तरीक़ा एकजुट शक्ति प्रदर्शन है। कई प्रतिभागियों ने पूरे शहर में अभियान का विस्तार करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और KEC के साथ काम करने के लिए स्वेच्छा से आगे आए। प्रतिभागियों ने जागरुकता बढ़ाने के लिए रचनात्मक विचार प्रस्तुत किए, जिनमें गीतों की रचना, रैप छंद, सोशल मीडिया रील, अभियान बैज पहनना और रिहायशी इलाकों में हस्ताक्षर अभियान चलाना शामिल थे।
मीटिंग का समापन एक कार्यसमिति के गठन के साथ हुआ, जिसमें एक संयोजक, सह-संयोजक और कोषाध्यक्ष का चुनाव किया गया। अभियान ने सभी की भागीदारी सुनिश्चित करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। समापन संदेश स्पष्ट था: अगर लोग लड़ेंगे, तो वे कुछ जीतेंगे; अगर वे नहीं लड़ेंगे, तो उनके पास जो कुछ भी है उसे भी खोने का ख़तरा है। मीटिंग एक सशक्त कार्रवाई के इस आह्वान के साथ समाप्त हुई कि – संदेश को फैलाएं, दोस्तों को शामिल करें और इस आंदोलन की गति को बनाए रखें!
