कामगार एकता कमिटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट
भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय ने 9 अक्टूबर को एक पत्र भेजकर विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2025 के मसौदे पर 30 दिनों के भीतर टिप्पणियाँ मांगी हैं। पत्र में दावा किया गया है कि इस मसौदे का उद्देश्य “उद्योग की उभरती आवश्यकताओं के अनुरूप विद्युत क्षेत्र को मज़बूत और सुधारना” है।
जिन संगठनों को पत्र लिखा गया है उनकी सूची हमारे देश में वर्तमान लोकतंत्र की प्रकृति को उजागर करती है।
इस सूची में बड़े पूंजीपतियों के सभी संगठन शामिल हैं – फेडरेशन ऑफ चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (FICCI), कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्रीज (CII), एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (ASSOCHAM), PHD चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (PDCCI)।
इसमें बिजली उत्पादकों और पारेषण और वितरण कंपनियों के एसोसिएशनों को भी शामिल किया गया है, जिनका नेतृत्व टाटा, अडानी, जिंदल, टोरेंट, अनिल अंबानी आदि जैसे बड़े पूंजीपतियों द्वारा किया जाता है – एसोसिएशन ऑफ़ पॉवर प्रोडूसर्स, इंडियन विंड पॉवर एसोसिएशन, नेशनल सोलर एनर्जी फेडरेशन ऑफ़ इंडिया, सोलर पॉवर प्रोडूसर्स एसोसिएशन, इलेक्ट्रिक पॉवर ट्रांसमिशन एसोसिएशन, आल इंडिया डिस्कॉम एसोसिएशन।
इसके अलावा, सूची में विद्युत क्षेत्र के उपकरण निर्माताओं और लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) के एसोसिएशन भी शामिल हैं – इंडियन इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन, इंडियन विंड टरबाइन मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन एंड फेडरेशन ऑफ़ इंडियन SME एसोसिएशन।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों के किसी संगठन या उपभोक्ताओं या लोगों के किसी संगठन से टिप्पणियां नहीं मांगी गई हैं।
यह स्पष्ट है कि नई बिजली क्षेत्र नीति का निर्धारण बिजली क्षेत्र में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले पूंजीपतियों द्वारा किया जाएगा।
आज देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में, मज़दूरों और आम लोगों की देश की नीतियों और कानूनों को तय करने में कोई भूमिका नहीं है। उनके पास सिर्फ़ वोट देने का अधिकार है, जिसके बाद उन्हें अगले चुनाव तक भुला दिया जाता है। नीतियाँ बड़े पूंजीपति तय करते हैं और ज़ाहिर है उनके फ़ायदे के लिए होती हैं। वे ही देश के शासक हैं।
विद्युत (संशोधन) विधेयक के पिछले सभी संस्करणों की तरह, इस विधेयक का उद्देश्य भी विद्युत वितरण क्षेत्र का निजीकरण करना है। इन जनविरोधी विधेयकों को पारित कराने के सभी पिछले प्रयास मज़दूरों, किसानों और अन्य लोगों के एकजुट संघर्ष के आगे विफल हो चुके हैं। शासक वर्ग फिर से कोशिश कर रहा है और इस बार भी मज़दूर वर्ग का उतना ही कड़ा प्रतिरोध होगा।
शासक वर्ग के इन बार-बार के प्रयासों को समाप्त करने के लिए, मज़दूरों और किसानों को देश के शासक बनने के दृष्टिकोण से अपना संघर्ष जारी रखना होगा। तभी यह सुनिश्चित होगा कि नीतियाँ और कानून देश के मेहनतकशों के हित में बनें, न कि पूँजीपतियों के हित में।