निजीकरण किसी एक पार्टी का एजेंडा नहीं है। यह बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के नेतृत्व वाले शासक पूंजीपति वर्ग का एजेंडा है। इसीलिए हमारा संघर्ष केवल निजीकरण के खिलाफ नहीं, बल्कि शासक वर्ग के खिलाफ है।

कामगार एकता कमेटी के संयुक्त सचिव डॉ. दास द्वारा इंडियन रेलवे एम्प्लोयीज फेडरेशन के वाराणसी में 21 व 22 सितंबर 2025 को हुए 4वें राष्ट्रीय सम्मेलन में दिया गया भाषण

प्रिय साथियों,

मुझे अत्यंत हर्ष हो रहा है कि मैं, डॉ. दास, कामगार एकता कमेटी का संयुक्त सचिव, आप सभी को कामगार एकता कमेटी और इसके सचिव डॉ. मैथ्यू की ओर से क्रांतिकारी शुभकामनाएं देता हूँ। डॉ. मैथ्यू इस सम्मेलन में पहले से तय कुछ आवश्यक कार्यों के कारण शामिल नहीं हो पा रहे हैं।

हम आपकी चौथी कन्वेंशन की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं। NER, ECR तथा RCF Kapurthala में मान्यताप्राप्त यूनियन चुने जाने के लिए हम आपको बधाई देते है।

प्रिय साथियों,

कामगार एकता कमेटी, जो उत्तर भारत में मज़दूर एकता कमेटी और दक्षिण भारत में थोलिलार ओत्त्रमई इयक्कम या वर्कर्स यूनिटी मूवमेंट के नाम से जानी जाती है, ने 4 जुलाई 2021 को सर्व हिंद निजीकरण विरोधी फ़ोरम (AIFAP) के गठन की पहल की थी। यह आज से थोड़ा अधिक 4 वर्ष पहले की बात है। इन चार वर्षों में AIFAP की सदस्यता 127 संगठनों तक पहुँच चुकी है।

रेलवे, बैंक, बीमा, बिजली, कोयला, बंदरगाह और डॉक, एयरलाइंस, रक्षा, खनन, पेट्रोलियम, राज्य सरकार, सड़क परिवहन, रिफाइनरी, शिक्षा, टेलीकॉम आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों के राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय यूनियन/संघ/संगठन इसके सदस्य हैं। इसके अलावा पुरोगामी महिला संगठन, सूरत ट्रेड यूनियन काउंसिल, लोक राज संगठन जैसे जन और मजदूर संगठनों की भी भागीदारी है।

हमने अब तक दर्जनों अत्यधिक सफल ज़ूम मीटिंगों का आयोजन किया है, जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के निजीकरण के खिलाफ संघर्षों और उनके अधिकारों की रक्षा के मुद्दों को उठाया गया। इन ज़ूम मीटिंगों में कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय संगठनों के नेता शामिल हुए हैं। हाल ही में आयोजित एक ज़ूम मीटिंग में आपके कॉमरेड अखिलेश पांडे मुख्य वक्ताओं में से एक थे।

हमने पूरे भारत में विभिन्न स्थानों पर निजीकरण के खिलाफ चल रहे संघर्षों में प्रत्यक्ष रूप से भी भाग लिया है। हाल ही में, 15 अप्रैल को हमने संविधान क्लब, नई दिल्ली में एक बहुत ही सफल सम्मेलन का आयोजन किया, जिसका शीर्षक था “बिजली व अन्य क्षेत्रों के निजीकरण पर सर्व हिंद सम्मेलन”।

मुझे यह बताते हुए भी बहुत प्रसन्नता हो रही है कि हमारी पहल सफल रही और हाल ही में भारतीय रेल में सक्रिय नौ फेडरेशनों और यूनियनों — जिनमें आपकी IREF और कामगार एकता कमेटी भी शामिल हैं — द्वारा हस्ताक्षरित एक संयुक्त ज्ञापन रेलवे बोर्ड के चेयरमैन और सीईओ को सौंपा गया है। इस ज्ञापन में उस रेलवे बोर्ड सर्कुलर को वापस लेने की माँग की गई है, जिसमें चार रेलवे ज़ोन के महाप्रबंधकों को सिग्नल एवं टेलीकम्युनिकेशन (S&T) विभाग में इंजीनियरों और तकनीशियनों को अनुबंध के आधार पर नियुक्त करने की अनुमति दी गई थी।

इस संयुक्त ज्ञापन में भारतीय रेल के सेफ्टी विभागों में लगभग 2 लाख रिक्तियों को तुरंत भरने की भी माँग की गई है। रेलवे संगठनों ने बढ़ते कार्यभार को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त पदों का आकलन करने की प्रक्रिया भी अपनाई है। उन्होंने माँग की है कि स्वीकृत पदों के अनुसार सभी रिक्तियाँ, साथ ही आवश्यक अतिरिक्त पद, तुरंत भरे जाएँ।

यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है और इसे भारतीय रेल के सभी श्रेणियों के कर्मचारियों के लिए किया जाना चाहिए। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपका फेडरेशन इस कार्य के लिए सक्षम है।

मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि आप इस विस्तृत ज्ञापन को अवश्य पढ़ें, जिसकी प्रतियाँ आप सभी को वितरित की जा रही हैं

AIFAP की पहल ने विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्रों के कर्मियों को एकजुट करने का कार्य सुनिश्चित किया है। ये कर्मी न केवल अपने-अपने क्षेत्रों के कर्मचारी हैं, बल्कि एक-दूसरे के क्षेत्रों के उपभोक्ता भी हैं। इस प्रकार, यह एकता निजीकरण के खिलाफ साझा संघर्ष को मज़बूत करने में सहायक रही है।

AIFAP के माध्यम से इस प्रकार के संयुक्त विरोध के कारण चेन्नई स्थित ICF Chennai और BLW Varanasi के निजीकरण के प्रयासों को लंबे समय से विफल किया गया है।

AIFAP की वेबसाइट (अंग्रेज़ी और हिंदी में), जिसे अब तक पाँच लाख से अधिक लोग देख चुके हैं, हमारे देश के मज़दूर वर्ग की सबसे सक्रिय वेबसाइट्स में से एक है। मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि आप इस वेबसाइट पर अवश्य जाएँ और उसमें अपनी भागीदारी दें।

हम इस एकता को एक सरल सिद्धांत का पालन करके कायम रख पाए हैं — आइए हम सब अपने साझा दुश्मन और उनके निजीकरण के षड्यंत्र के खिलाफ एक हों, और ऐसे एकजुट संघर्षों के दौरान अपने संगठनात्मक या राजनीतिक मतभेदों को एक ओर रखें।

आइए हम एक-दूसरे के प्रति सम्मान बनाए रखें और एकता स्थापित करने के सभी संभावित रास्तों की तलाश करें।

आइए हम इस दृढ़ विश्वास से कम करें कि “एक पर हमला, सब पर हमला है!”

प्रिय साथियों,

हमें यह जानकर खुशी हुई कि इस कन्वेंशन के लिए आपका आमंत्रण स्पष्ट रूप से यह बताता है कि आप भी भारतीय रेलवे में निजीकरण के खिलाफ एकजुट संघर्ष को मज़बूत करना चाहते हैं। अतः हमारा लक्ष्य साझा है।

प्रिय साथियों,

जैसा कि हमारे संगठन का नाम कामगार एकता कमेटी है, हमारा उद्देश्य कामगारों की एकता को मजबूत करना है। जब हम सभी इस एकता को बनाने का प्रयास कर रहे हैं, उसी समय शासक पूंजीपति वर्ग — अपने द्वारा वित्तपोषित राजनीतिक दलों और अन्य संगठनों के माध्यम से — विभिन्न बहानों का सहारा लेकर हमारी एकता को तोड़ने की कोशिश करता है।

धर्म, जाति, क्षेत्र, राष्ट्रीयता और भाषा जैसे बहाने आम तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं। लेकिन इसके अलावा और भी कई तरीके अपनाए जाते हैं।

  • लिंग के आधार पर ये लोग पुरुष श्रमिकों को महिला श्रमिकों के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश करते हैं।
  • इंजीनियर, मैनेजर, अफसर, सुपरवाइज़र और वर्कर जैसी पदवियों का उपयोग भी एक-दूसरे के बीच भेदभाव पैदा करने के लिए किया जाता है।
  • स्थायी श्रमिकों और ठेका श्रमिकों के बीच भी वे विभाजन पैदा करने की कोशिश करते हैं।
  • वे यह धारणा फैलाते हैं कि विभिन्न यूनियनों के सदस्य एक-दूसरे के मुख्य दुश्मन हैं।
  • राजनीतिक पार्टियों की सदस्यता के आधार पर भी मजदूरों को बाँटने का प्रयास किया जाता है।

इन सभी फूट डालने वाली रणनीतियों के सामने, हम श्रमिकों से यह अपील करते हैं कि वे इस या उस यूनियन, पार्टी या संगठन के खिलाफ नहीं, बल्कि शोषक शासक वर्ग के खिलाफ एक वर्ग के रूप में एकजुट हों।

हमारा अनुभव है कि जब धैर्यपूर्वक इस वर्ग चेतना को मज़दूरों के बीच पहुँचाया जाता है, तो वे सकारात्मक रूप से प्रतिक्रिया देते हैं।

अब प्रश्न है – एकता किसलिए बनाई जाए?

हम, कामगार एकता कमेटी के रूप में, यह मानते हैं कि जब तक पूंजीपति वर्ग का शासन समाप्त नहीं होता और उसकी जगह सभी मेहनतकश लोगों — जिनमें किसान, आदिवासी, शारीरिक श्रम करने वाले और मानसिक श्रम करने वाले शामिल हैं — का शासन स्थापित नहीं होता, तब तक इस शोषणकारी पूंजीवादी व्यवस्था की बुराइयों को समाप्त नहीं किया जा सकता।

यह बात निजीकरण की कोशिशों को स्थायी रूप से रोकने के लिए भी उतनी ही सत्य है।

जैसा कि आप जानते हैं, नई आर्थिक नीति, जिसमें उदारीकरण और निजीकरण के ज़रिए वैश्वीकरण को अपनाया गया, 1991 में नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा लागू की गई थी।

इसके बाद से, केंद्र और राज्यों में हर राजनीतिक पार्टी की हर सरकार ने इस नीति को लागू किया है।

कुछ सरकारों ने तेज़ी से और कुछ ने धीरे-धीरे निजीकरण को आगे बढ़ाया, यह इस बात पर निर्भर करता है कि मज़दूर वर्ग ने कितना प्रतिरोध किया।

सामान्य अनुभव यह है कि मज़दूर वर्ग की कोशिशें तब ज़्यादा सफल रहीं, जब उन्होंने निजीकरण के हानिकारक प्रभावों को आम जनता को समझाया और उन्हें संगठित किया — अपने परिवार के सदस्यों से शुरू करते हुए।

निजीकरण किसी एक पार्टी का एजेंडा नहीं है। यह बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के नेतृत्व वाले शासक पूंजीपति वर्ग का एजेंडा है। ये इजारेदार पूंजीपति समय-समय पर अलग-अलग पार्टियों को इस आधार पर फंड देते हैं कि कौन उनके एजेंडे को उस समय बेहतर ढंग से लागू कर सकता है।

इसीलिए हमारा संघर्ष केवल निजीकरण के खिलाफ नहीं, बल्कि शासक वर्ग के खिलाफ है।

यह केवल एक पार्टी को हटाकर दूसरी पार्टी को सत्ता में लाने का प्रश्न नहीं है। हमें पूंजीपति वर्ग के शासन को समाप्त करके मज़दूर वर्ग के शासन को स्थापित करना होगा।

यही हमारा रणनीतिक लक्ष्य होना चाहिए। हम जिस भी समय जो रणनीति अपनाएँ, वह इसी लक्ष्य के अनुरूप होनी चाहिए।

हम मानते हैं कि पूंजीपतियों की किसी एक पार्टी को दूसरी से बेहतर बताकर भ्रम फैलाना नहीं चाहिए।

हमें मज़दूरों और आम लोगों को इस सच्चाई के प्रति जागरूक करना होगा कि देश में शासन किसी एक पार्टी का नहीं, बल्कि इजारेदार पूंजीपतियों के नेतृत्व वाला पूंजीपति वर्ग कर रहा है। हमारा कार्य है मज़दूर वर्ग को वर्गचेतना से लैस करना और उसे संगठित करना, ताकि हम अपने रणनीतिक लक्ष्य की ओर बढ़ सकें।

हम आपसे आग्रह करते हैं कि इस कन्वेंशन की विचार-विमर्श प्रक्रिया में इन बातों पर भी विचार करें।

हमें भविष्य में भी आपसे इन मुद्दों पर चर्चा करने में ख़ुशी होगी।

प्रिय साथियों, और विशेष रूप से कॉमरेड सर्वजीत सिंह,

हम ईमानदारी से आपका धन्यवाद करते हैं कि आपने हमें IREF के इस कन्वेंशन में भाग लेने का अवसर दिया।

मज़दूर एकता ज़िंदाबाद!

इंकलाब ज़िंदाबाद!

 

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