रेल का सिपाही

ऑल इंडिया रेलवे ट्रैकमेंटेनर्स यूनियन (AIRTU) के ऑल इंडिया मीडिया से प्राप्त कविता


रेल का सिपाही

देता हूं रफ्तार रेल को
पटरी पर तैनात हूं मैं।
पहन के वर्दी केसरिया
ड्यूटी पर दिन – रात हूं मैं।।

धर कंधे पर बीस किलो
औजार उठाकर चलता हूं।
चलता हूं जब पटरी पर
फ़ौलाद उठाकर चलता हूं।।

हो गर्मी या सर्दी दिनभर
लथपथ रहता पसीने में।
वीरान रात को पहरा देता
डर को छिपाकर सीने में।।

खाता हूं दो रोटी लेकिन
साथ बैठकर खाता हूं।
होता हूं जब फुरसत में
दो गीत गांव का गाता हूं।।

हाथ हिलाकर कह देता हूं
गांव को जाने वालों से।
मिली नहीं है छुट्टी मुझको
कह देना घरवालों से।।

घर पे पड़े हैं काम अधूरे
बेटी की परवरिश करनी है।
घर की मरम्मत से पहले
किश्त कर्ज की भरनी है।।

छोटी सी तनख्वाह है मेरी
लिस्ट बड़ी है सपनों की।
खाली बटुए में रखता हूं
लगा के फोटो अपनो की।।

फटे पुराने जूतों से दिन रात
चलता हूं मैं कोस कई।
इस पटरी की सेवा करते
गुज़र गए निर्दोष कई।।

धड़क रही है रेल दिलो में
रेल का सेवादार हूं मैं।
रेल से पहचान है हमारी
रेल का पहरेदार हूं मैं।।

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