कोयला खनन के निजीकरण में तेजी लाने के लिए एक और विधेयक

श्री नाथूलाल पांडे, महासचिव, कोयला मजदूर सभा और अध्यक्ष, हिंद खदान मजदूर फेडरेशन

भारत सरकार, कोयला क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) संशोधन विधेयक 2021 के प्रस्ताव के द्वारा, कोयला क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम 1957 में संशोधन करने की जोर-दार कोशिश कर रही है। प्रस्तावित विधेयक का एकमात्र उद्देश्य, कोयला पाए जाने वाले क्षेत्रों में, भूमि अधिग्रहण की सुविधा प्रदान करना है जिसके द्वारा उन्हें जल्दी से जल्दी निजी कंपनियों को सौंप दिया जाये। प्रस्तावित विधेयक से कोयला-खनन क्षेत्र के निजीकरण में और तेजी आएगी।


भारत सरकार, कोयला क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) संशोधन विधेयक 2021 के प्रस्ताव के द्वारा, कोयला क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम 1957 में संशोधन करने की जोर-दार कोशिश कर रही है। प्रस्तावित विधेयक का एकमात्र उद्देश्य, कोयला पाए जाने वाले क्षेत्रों में, भूमि अधिग्रहण की सुविधा प्रदान करना है जिसके द्वारा उन्हें जल्दी से जल्दी निजी कंपनियों को सौंप दिया जाये। प्रस्तावित विधेयक से कोयला-खनन क्षेत्र के निजीकरण में और तेजी आएगी।

नया संशोधन बिल इस क्षेत्र में तीन अहम बदलाव लाएगा। सबसे पहले, केंद्र सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए जिम्मेदार होगी और फिर भूमि- अधिग्रहण करने के बाद, भूमि और खनन अधिकार राज्यों को दे दिए जाएंगे। राज्य सरकारें, तब अधिग्रहित भूमि या जिन क्षेत्रों में कोयला पाया गया है, उन क्षेत्रों को किसी भी निजी कंपनी को पट्टे पर दे सकती हैं। दूसरा बड़ा बदलाव, अधिग्रहित भूमि के उपयोग से संबंधित है। निजी कंपनी किसी भी तरह से भूमि का उपयोग करके मुनाफा बनाने के लिए स्वतंत्र होंगे और यह जरूरी नहीं कि वे कोयला उत्पादन ही करें। 1957 का अधिनियम इसकी अनुमति नहीं देता और यह अधिनियम, इस भूमि का केवल कोयले के खनन और निष्कर्षण के लिए ही उपयोग करने के लिए बाध्य करता है। संशोधन में अधिग्रहित भूमि के पट्टे पर सीमा बढ़ाने के प्रावधान भी शामिल हैं।

यह विधेयक इस तरह हजारों हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण की अनुमति देगा जो इस समय कोल इंडिया, एनटीपीसी, रेलवे और रक्षा प्रतिष्ठानों जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के पास है। यह निजी कंपनियों को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड के विशाल भूमि भंडार का अधिग्रहण करने की अनुमति देगा, जो इस समय भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक उर्जा- स्त्रोतों का 72% से अधिक हिस्सा मुहैया कराता है।

निजी कंपनियां, कुछ पुरानी कोयला खदानों को बंद करना चाहती हैं और अक्षय-ऊर्जा (renewable energy) संयंत्र लगाने के लिए, इन खदानों की भूमि और बुनियादी ढांचे का उपयोग करना चाहती हैं। यह कानून इस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की सभी कोयला- आरक्षित होल्डिंग्स (भूमि) के निजीकरण की सुविधा प्रदान करेगा और निजी कंपनियों को इन मूल्यवान भूमि-संसाधनों को हासिल करने और लूटने की इजाजत देगा।

बड़ी निजी कंपनियां (जैसे के रिनेऊ पॉवर, ग्रीनको, अदानी ग्रीन, टाटा पॉवर, ऐसीएम्ई, एस बी एनर्जी, अजुर पॉवर सेमब कोर्प ग्रीन इन्फ्रा और हीरो फ्यूचर इनर्जी) जो अक्षय-ऊर्जा क्षेत्र निवेश में सबसे आगे हैं, कोल इंडिया लिमिटेड के स्वामित्व वाले विशाल भूमि भंडार पर काफी लंबे समय से नजर गड़ाए हुए हैं।

प्रस्तावित संशोधन, कोयला खनन क्षेत्र के निजीकरण के लिए उठाए गए निम्नलिखित, अनेक कदमों की श्रृंखला का ही एक हिस्सा है।

(i) जनवरी 2018 में, कोकिंग-कोल माइन्स (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972 और कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 को, संशोधन (द्वितीय) अधिनियम, 2017 द्वारा निरस्त कर दिया गया था।
(ii) 20 फरवरी 2018 में, आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीईए) ने निजी कंपनियों को भारत में कमर्शियल (वाणिज्यिक) कोयला खनन उद्योग में प्रवेश करने की अनुमति दी।
(iii) 28 अगस्त 2019 में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कोयला खनन में 100% प्रत्यक्ष-विदेशी निवेश (FDI) को मंजूरी दी।
(iv) 18 जून 2020 में, प्रधान मंत्री ने निजी पूंजीपतियों को कमर्शियल खनन के लिए 41 कोयला खनन ब्लॉकों की नीलामी की घोषणा की।
(v) नवंबर 2020 में, सरकार ने कोयला-ब्लॉकों की नीलामी के माध्यम से, कोयला खदानों में कमर्शियल खनन के लिए खुली छूट दी।

कोयला खदानों की सफल नीलामी और निजी कंपनियों के मुनाफे सुनिश्चित करने के लिए, जनवरी 2020 में खान और खनिज (विकास और विनियमन) – एमएमडीआर अधिनियम 1957 और कोयला खान (विशेष प्रावधान) – सीएमएसपी अधिनियम 2015 में संशोधन किए गए।

1957 के MMDR अधिनियम के तहत एक शर्त थी कि खनन कंपनियों को खनन पूरा होने के बाद भूमि को उसकी पूर्व स्थिति में, अनिवार्य रूप से, बहाल करना होगा। इस शर्त को अब हटा दिया गया है। अब कोयला भंडार प्राप्त करने वाली निजी कंपनियां, अपनी इच्छा के अनुसार कोयला खदानों का इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र होंगी।

1957 के कोयला क्षेत्र अधिनियम में संशोधन करके, सरकार ने अब निजी कोयला खनन कंपनियों को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम 2013 (एलएआरआर अधिनियम 2013) के तहत, उचित मुआवजे और पारदर्शिता के बंधन से भी आज़ाद कर दिया। एलएआरआर अधिनियम 2013 के अनुसार, व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए सार्वजनिक भूमि का अधिग्रहण करने वाली कंपनियों को उस भूमि पर बसे लोगों को, अधिग्रहण की जा रही भूमि के बाजार मूल्य के कम से कम चार गुना की दर से मुआवजा देना अनिवार्य था। यह स्पष्ट है कि यह संशोधन, आम लोगों के जन-संसाधनों की ज़बरदस्त लूट को बढ़ावा देता है, और जिसे इस संशोधन के द्वारा सरकार ने निजी कंपनियों को अपने अधिकतम मुनाफे सुनिश्चित करने के लिए सुविधाएं प्रदान की हैं। यह संशोधन, इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के हितों के खिलाफ और उनकी आजीविका को उजाड़ कर, उनको तबाह करके लागू किया जा रहा है।

पहले, एलएआरआर 2013 नियम से यह छूट, केवल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों, उदाहरण के लिए, कोल इंडिया के लिए ही उपलब्ध थी, क्योंकि खनन के उत्पाद, सार्वजनिक उपयोग के लिए ही प्रतिबंधित थे। दरअसल, कोल बियरिंग-एरिया एक्ट 1957 (औपनिवेशिक-काल के दौरान पारित किया हुआ कानून) के द्वारा, सरकार को, सार्वजनिक उपयोग के लिए, निजी मालिकों से जबरन जमीन अधिग्रहण का अधिकार दिया गया था।

इसके अलावा, यह संशोधन केंद्र सरकार को लोगों की इच्छा और ग्राम पंचायतों और ग्राम सभाओं की निर्णय लेने की शक्ति को भी नाकाम करने में सक्षम बनाता है। सरकार लोगों या उनकी ग्राम सभाओं से किसी भी प्रकार की सहमति लिए बिना, लोगों की जमीन जबरन हड़प सकती है और उन्हें विस्थापित कर सकती है। इन संशोधनों में, (PESA) पेसा-अधिनियम (अनुसूचित क्षेत्र अधिनियम, 1996 के लिए पंचायत विस्तार) और वन-अधिकार अधिनियम, 2006 का भी कोई उल्लेख नहीं है। एलएआरआर अधिनियम 2013 की शर्तों से छूट के साथ-साथ, इन संशोधनों का नतीजा यह होगा कि इन सभी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की जिन्दगी पूरी तरह से तबाह कर दी जायेगी।

प्रस्तावित संशोधन, कोयले के साथ, लिग्नाइट (निम्न श्रेणी के कोयला खनिज) के खनन की भी अनुमति देते हैं। इसका मतलब है कि आदिवासी और वन भूमि का एक बहुत बड़ा हिस्सा, खनन के लिए निजी मालिकों को सौंप दिया जाएगा। लोगों को उनकी आजीविका, पुनर्वास और उचित मुआवजे से वंचित करने के लिए, न तो सरकार और न ही निजी कंपनी उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के प्रति जवाबदेह होगी।

प्रस्तावित संशोधन, कोयला खनन या किसी अन्य खनिज के खनन में किसी भी पूर्व अनुभव न होने के बावजूद, निजी हिन्दुस्तानी और विदेशी कंपनियों को अपने निजी मुनाफे सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक कोयला भंडार को लूटने के लिए खुली छूट देते हैं। जो कंपनियाँ, कोयले का उत्पादन नहीं भी करती हैं, वे भी कोयला/लिग्नाइट ब्लॉक की नीलामी में भाग ले सकती हैं।

देश में ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम 1973 द्वारा, कोयला खनन का राष्ट्रीयकरण किया गया था। इसके विपरीत, अब कोयला खनन क्षेत्र के निजीकरण और अभी तक पारित किए गए और अन्य प्रस्तावित संशोधनों के द्वारा, इन क्षेत्रों में भूमि से कोयला खनन के लिए बोली जीतने वाली निजी कंपनियों को अपने अधिकतम मुनाफे बनाने के लिए खुली छूट होगी। उनको खुली छूट होगी कि इस भूमि का उपयोग करके कोयले का उत्पादन करें और बेंचें या इस भूमि का इस्तेमाल स्टील, सीमेंट और बिजली उत्पादन जैसे विभिन्न उद्योगों के लिए करें, यदि उससे उनको ज्यादा मुनाफा हासिल हो सकता है – उन्हें पूरी छूट होगी कि इस जमीन का इस्तेमाल और किसी धंधे के लिए करें चाहे उसका कोयला खनन / उत्पादन से कोई सम्बन्ध है या नहीं। हम सबको गौर करने के जरूरत है कि इस का मतलब है कि यह विधेयक, इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आजीविका दांव पर लगा कर, उनकी जिन्दगी तबाह कर कुछ निजी कंपनियों के लिए ज्यादा से ज्यादा मुनाफे बनाने के साधन सुनिश्चित करेगा।

कोयला मजदूर, सरकार के कोयला खनन के निजीकरण के मसौदे के खिलाफ, बहुत बहादुरी से लड़ रहे हैं। जुलाई 2020 में, कोयला मजदूरों द्वारा तीन दिवसीय हड़ताल का आयोजन किया गया जिसमें सैकड़ों मजदूरों ने भाग लिया। बड़े पैमाने पर आयोजित यह हड़ताल कोयला उत्पादन को ठप करने में सफल रही। अगस्त 2020 में, कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (SCCL) के मजदूरों ने फिर से काम-बंद की घोषणा की और पांच लाख से अधिक मजदूरों ने इन विरोध-प्रदर्शनों में भाग लिया।

सरकार के कोयला खनन के निजीकरण के एजेंडे के खिलाफ कोयला मजदूर अथक संघर्ष करते आये हैं। उनकी मांग है कि कोयले का कमर्शियल-खनन शुरू करने के फैसले को तत्काल वापस लिया जाए और कोल इंडिया के शेयरों की बिक्री के जरिए, कोयला खनन के निजीकरण पर तत्काल रोक लगाई जाए।

कोयला और भूमि दोनो लोगों की बहुत ही मूल्यवान नैसर्गिक सम्पदा का हिस्सा हैं वे हमारे देश के सब लोगों की सामूहिक पूंजी हैं। निजी मुनाफों के लिए उन्हें लूटने की इजाजत कतई नहीं दी जानी चाहिए। वक्त की मांग है कि कोयला मजदूर और उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के साथ-साथ, सभी क्षेत्रों के मजदूर एक साथ आकर एकजुट हों और कोयला खनन या किसी भी प्रकार के निजीकरण के खिलाफ के संघर्ष में एक दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिला कर शामिल हों। क्योंकि, “एक पर हमला सब पर हमला है”।

 

 

Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments