केईसी संवाददाता की रिपोर्ट
41 आयुध कारखानों के निगमीकरण के 27 दिनों के भीतर सरकार द्वारा आयुध निर्माणी बोर्ड को भंग करने और 7 निगम बनाने से पहले कर्मचारियों से किए गए वादे झूठे साबित हुए हैं।
सरकार ने वादा किया था कि “जब तक कर्मचारी नए निगमों में प्रतिनियुक्ति पर रहेंगे, तब तक वे सभी नियमों और विनियमों के अधीन रहेंगे जो केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर लागू होते हैं। उनके वेतनमान, भत्ते, छुट्टी, चिकित्सा सुविधाएं, कैरियर की प्रगति और अन्य सेवा शर्तें भी मौजूदा नियमों, विनियमों और आदेशों द्वारा शाषित होती रहेंगी, जैसा कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर लागू होता है”।
परन्तु, निगमीकरण के पहले दिन से, कर्मचारियों को उनके सेवा मामलों और शर्तों में असंख्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। तीनों फेडरेशनों – के अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी फेडरेशन (एआईडीईएफ), भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ (बीपीएमएस), रक्षा मान्यता प्राप्त संघों के कॉन्फेडरेशन (सीडीआरए) द्वारा रक्षा मंत्रालय के सचिव (रक्षा उत्पादन) को लिखित संयुक्त पत्र – दर्शाता है कि रक्षाकर्मी अपने अधिकारों पर उत्पीड़न और हमले का सामना कर रहे हैं।
रक्षा कर्मचारियों के अनुभव ने फिर से पुष्टि की है कि सरकार या सार्वजनिक क्षेत्रों के निगमीकरण या रणनीतिक विनिवेश के दौरान श्रमिकों से किए गए वादे केवल निजीकरण के खिलाफ उनके संघर्ष को कमजोर करने के लिए हैं और श्रमिकों को उन पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
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यह बेहद महत्वपूर्ण खबर है, सार्वजनिक क्षेत्र के सभी मजदूरों के लिए । हमारे कई मजदूर साथी अक्सर इस भ्रम में रहते है कि “हमारे मंत्रिमहोदय अथवा केंद्र सरकार के उच्च अधिकारी ने बताया है कि हमारे क्षेत्र को कुछ नहीं होगा या अगर होगा भी तो मजदूरों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे, और इसलिए हमें कुछ संघर्ष करना जरूरी नहीं”। यह भ्रम बेहद खतरनाक है। रेल तथा आयुध निर्माणी कर्मचारियों के अनुभव से यही साबित होता है कि ” किसी भी सरकारी अधिकारियों या मंत्रियों के आश्वासन पर भरोसा करना याने अपने हाथ से अपने पांव पर कुल्हाड़ी मरवाना”