नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन (एनएफआईआर) अनुरोध करता है कि बिना पूर्व परामर्श और प्रत्येक प्रस्ताव पर आम सहमति के बिना रेल मंत्रालय के तहत सरकारी निकायों के युक्तिकरण के बारे में प्रधान आर्थिक सलाहकार के प्रस्तावों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाए । फेडरेशन चाहता है कि रेलवे बोर्ड सभी “तर्कसंगत” प्रस्तावों, लंबित चर्चाओं पर कार्रवाई रोक दे।
ताज़ा खबर
- »उत्तर प्रदेश के उत्तरांचल और दक्षिणांचल बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण के खिलाफ 29 मई को महाराष्ट्र में जोरदार विरोध प्रदर्शन हुआ
- »SCRMU ने भारतीय रेलवे के S&T कर्मचारियों की लंबे समय से लंबित मांगों की ओर ध्यान आकर्षित किया
- »यात्रियों और कर्मचारियों के विरोध के कारण ब्रिटिश सरकार को ब्रिटिश रेल का पुनः राष्ट्रीयकरण करने का निर्णय लेना पड़ा
- »बरेली ट्रेड यूनियन फेडरेशन के नेताओं ने 9 जुलाई को होने वाली अखिल भारतीय हड़ताल की मांगों को समझाया
- »IDBI का निजीकरण मुनाफे के निजीकरण का एक उदाहरण है! सरकार को व्यापक राष्ट्रीय हित में IDBI को बेचने के फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए! | वीडियो सौजन्य: महाराष्ट्र स्टेट बैंक एम्प्लाइज फेडरेशन
मै मध्य प्रदेश में एक बिजली कर्मचारी हूँ, और ठेके पर काम करता हूँ । आपके AIFAP से मैं इसलिए प्रभावित हुआ और जुड़ गया, क्योंकि “निजीकरण करने से देश की समूची जनता पर क्या बुरा असर होगा” यह आपके मंच से उजागर करते है, और यह भी स्पष्ट करते है कि ” देश के संपत्ति से बना सार्वजनिक क्षेत्र बेचने की अनुमति किसी भी शासन को नही हो सकती” ।
इसीलिए,
एन एफ आई आर के महासचिव का खत देखकर मैं नाराज हूँ । वे शायद बड़े नेता है, और मै एक आम मजदूर । मगर मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि रेल संबंधी किसी भी निर्णय लेने के पहले क्या सिर्फ रेल मजदूरों से वार्तालाप होना चाहिये ? नहीं ! उनसे तो जरूर वार्तालाप होना चाहिये, मगर सबसे पहले तो आम जनता से वार्तालाप होना चाहिये ! भारतीय रेल तो आम जनता की संपत्ति है, और उसे बेचने का हक़ किसी को नही है, रेल मजदूरों को भी नही ! रेल मजदूर संगठनों ने तो निजीकरण का इसलिए विरोध करना चाहिए क्योंकि वह आम जनता के हित में नहीं है । दुख की बात है कि महासचिव के खत में इसका जिक्र ही नही है ।