नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन (एनएफआईआर) अनुरोध करता है कि बिना पूर्व परामर्श और प्रत्येक प्रस्ताव पर आम सहमति के बिना रेल मंत्रालय के तहत सरकारी निकायों के युक्तिकरण के बारे में प्रधान आर्थिक सलाहकार के प्रस्तावों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाए । फेडरेशन चाहता है कि रेलवे बोर्ड सभी “तर्कसंगत” प्रस्तावों, लंबित चर्चाओं पर कार्रवाई रोक दे।
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- »राष्ट्रीय महिला बैंक कर्मचारी सम्मेलन ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण, नौकरियों की आउटसोर्सिंग के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया और यौन उत्पीड़न के दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।
- »यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस ने भर्ती, 5 दिवसीय बैंकिंग और अन्य मांगों को लेकर 24 और 25 मार्च को आंदोलन और अखिल भारतीय हड़ताल का आह्वान किया है।
- »उत्तर प्रदेश के जनपद आगरा में किसानों ने बिजली निजीकरण का विरोध किया
- »उपभोक्ताओं के विशाल प्रदर्शन ने बिजली वितरण कंपनी प्रबंधन को स्मार्ट मीटर की स्थापना रोकने का निर्देश देने के लिए मजबूर किया
- »निजीकरण के खिलाफ उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों का प्रदर्शन 75वें दिन भी जारी रहा
मै मध्य प्रदेश में एक बिजली कर्मचारी हूँ, और ठेके पर काम करता हूँ । आपके AIFAP से मैं इसलिए प्रभावित हुआ और जुड़ गया, क्योंकि “निजीकरण करने से देश की समूची जनता पर क्या बुरा असर होगा” यह आपके मंच से उजागर करते है, और यह भी स्पष्ट करते है कि ” देश के संपत्ति से बना सार्वजनिक क्षेत्र बेचने की अनुमति किसी भी शासन को नही हो सकती” ।
इसीलिए,
एन एफ आई आर के महासचिव का खत देखकर मैं नाराज हूँ । वे शायद बड़े नेता है, और मै एक आम मजदूर । मगर मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि रेल संबंधी किसी भी निर्णय लेने के पहले क्या सिर्फ रेल मजदूरों से वार्तालाप होना चाहिये ? नहीं ! उनसे तो जरूर वार्तालाप होना चाहिये, मगर सबसे पहले तो आम जनता से वार्तालाप होना चाहिये ! भारतीय रेल तो आम जनता की संपत्ति है, और उसे बेचने का हक़ किसी को नही है, रेल मजदूरों को भी नही ! रेल मजदूर संगठनों ने तो निजीकरण का इसलिए विरोध करना चाहिए क्योंकि वह आम जनता के हित में नहीं है । दुख की बात है कि महासचिव के खत में इसका जिक्र ही नही है ।