रेलवे कर्मचारियों का एक बड़ा तबका मूलभूत सुविधाओं तथा मानवाधिकारों से वंचित – ट्रैक की देखभाल करते 400 से अधिक कर्मचारियों की प्रतिवर्ष मृत्यू

राकेश चंद्र वर्मा, चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी, पूर्वोत्तर रेलवे, लखनऊ से प्राप्त

वर्तमान समय में जहां एक ओर बड़े-बड़े संगठन और यूनियन भारत सरकार की कर्मचारी विरोधी और आउटसोर्सिंग प्राइवेटाइजेशन आदि सामाजिक मुद्दों पर एकत्रित होकर लड़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो कहने को तो सरकारी कर्मचारी है, किंतु आज भी मूल भूत सुविधाओं तथा मानवाधिकारों से बहुत दूर है।

जी हां, मैं बात कर रहा हूं रेलवे में कार्यरत चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों, खासकर इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत ट्रैक मेंटेनर कैडर के बारे में। जैसे-जैसे देश को आर्थिक आधार प्रदान करने वाली देश का सबसे कमाऊ उद्यम, रेलवे अपने आप में विकसित होता जा रहा है, ट्रेनों की संख्या बढ़ती जा रही है, ट्रेनों की गतियां बढ़ती जा रही है, वैसे वैसे यह कैडर, विशेषतः जिसमें 3,00,000 से ज्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं मूलभूत सुविधाओं को तो छोड़िए, अपनी जीवन जीने का जो अधिकार ईश्वर द्वारा प्रदत्त है उससे भी वंचित नजर आ रहे हैं। प्रतिवर्ष 300 से 400 कर्मचारी रेलवे ट्रैक पर कार्य करते हुए दुर्घटना का शिकार होते हैं और शहादत पाते हैं।

जैसे-जैसे जाड़े का मौसम उफान पर होगा वैसे वैसे लाइन के संरक्षण में गए कर्मचारियों के ऊपर मौत का खतरा मंडराना शुरू होगा। कोई भी सरकार हो, कोई भी रेल मंत्री हो, कोई भी रेलवे का संगठन हो, इनके बारे में कभी भी कोई नहीं सोचता। हालांकि कुछ साल पहले एक ‘रक्षक यंत्र’ नाम की डिवाइस ईजाद की गई थी, जिसके साथ होने पर रेलवे ट्रैक संरक्षण में गए कर्मचारी को ट्रेन के आने का पूर्वानुमान मिल जाएगा, जिससे वह रेलवे ट्रैक से उतरकर किनारे हो जाएगा। बमुश्किल उसकी कीमत  25 से 30,000 होगी, किंतु रेल प्रशासन कर्मचारी के रनओवर हो जाने पर ग्रेच्यूटी के 25-30 लाख रुपए तो दे सकता है, मगर इन कर्मचारियों को एक छोटा सा डिवाइस नहीं देते सकता, जिससे इनकी जिंदगी को सुरक्षित बनाया जा सके।

मैं एआईएफएपी के इस मंच पर तमाम संगठनों, तमाम बुद्धिजीवियों से आग्रह करता हूं कि इन तीन लाख कर्मचारियों के मानव अधिकारों के बारे में भी आप सभी एक नजर डालें, क्योंकि इनके परिवार वालों को मृत्यु के बाद अपने पुत्र, अपने भाई, अपने पिता का चेहरा तक देखना नसीब नहीं होता है। बोरी में लिपट के मांस के लोथोड़े के रूप में उनका पार्थिव शरीर उनके घर को पहुँचता है।

मैं इस मंच के माध्यम से आप सभी से आग्रह करूंगा कि यदि इन चतुर्थ  वर्गीय कर्मचारियों को उनके जीवन में सुधार लाने के लिए आप सबका साथ और सहयोग बड़े मंच पर मिलेगा, तब जाकर 150 सालों से पीड़ित इन कर्मचारियों के जीवन में खुशियां लौटेंगे।

 

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राकेश चंद्र वर्मा
राकेश चंद्र वर्मा
2 years ago

मंच पर हमें स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

रिया
रिया
2 years ago

क्या मज़दूरों की सुरक्षा करना सरकार का फ़र्ज़ नहीं है?
हमारे ट्रैक मेंटेनर भाईयों के काम की हालात देख कर बोहोत गुस्सा आता है| क्यों 21 वीं सदी में भी इतना महत्वपूर्ण काम मज़दूरों के लिए इतना खतरनाक है? हम हर पांच साल वोट करते है और सरकार चुनते है, लेकिन जो भी सरकार आती है वो सिर्फ पूंजीपतियों के लिए काम करती है| क्या आज तक किसी भी सरकार ने मज़दूरों के हित में कोई कदम उठाएं है? सरकार के पास इतने पैसे है, तो वो पैसे ट्रैक मेंटेनर की सुरक्षा के लिए क्यों नहीं इस्तेमाल होते? ये कैसी आज़ादी है जहा आज भी ट्रैक मेंटेनर इतने बुरे हालातों में काम कर रहे है?

राकेश चंद्र वर्मा
राकेश चंद्र वर्मा
2 years ago
Reply to  रिया

महोदया छोटे कर्मचारियों के लिए इनके पास समय ही नही है कोई भी सरकार हो बस अपने और सम्बंधित लोगों के हितों को देखती है बस