सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की रक्षा करना राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना है – सौम्य दत्त, महासचिव, AIBOC

यह हम सभी के अस्तित्व की लड़ाई है। हर क्षेत्र में हम लड़ रहे हैं। आइए हाथ मिलाएं, और अपनी लड़ाई को लोगों तक ले जाएं। हमें आम लोगों को जोड़ने की जरूरत है। और बैंकिंग एक ऐसा क्षेत्र है जिससे हर नागरिक जुड़ा है।

19 दिसंबर 2021 को AIFAP द्वारा आयोजित बैठक “निजीकरण के खिलाफ एकजुट हों – बैंकों, बीमा और कोयला खानों के निजीकरण का विरोध करने के लिए वर्तमान चल रहे राष्ट्रीय संघर्ष”, में अखिल भारतीय बैंक अधिकारी कॉन्फेडरेशन (AIBOC) के महासचिव श्री सौम्य दत्त के भाषण की प्रतिलिपि

सभी को एक बहुत ही शुभ संध्या। सबसे पहले, मैं कॉमरेड मैथ्यू और AIFAP को इतने सारे क्षेत्रों और इतने सारे लोगों को एक ऐसे साझा मंच पर लाने के लिए बधाई देना चाहता हूं, जहां हम निजीकरण, सार्वजनिक क्षेत्र पर हमले का विरोध कर रहे हैं।

अब मुझे जो कुछ भी कहना है, शुरू करने से पहले, मैं चाहता हूं कि हर कोई उस आंदोलन से अवगत हो जिसे हमने All India Bank Officers Confederation से संकल्पित किया है: यह बैंक बचाओ, देश बचाओ आंदोलन है। अब यह जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए आंदोलन है। कॉमरेड सी एच वेंकटचलम ने जैसे कहा, मैं किसानों के संघर्ष का उल्लेख करूंगा। अब किसान आंदोलन ने, ट्रेड यूनियन आंदोलन या एक संगठित लोकतांत्रिक आंदोलन के इतिहास में एक नया अध्याय बनाया है। इसने दुनिया को दिखाया है कि जनता का समर्थन प्राप्त जन आंदोलन क्या कर सकता है। इसने पुरानी कहावत की पुष्टि की: संसद जो कर सकती है उसे सड़कें पलटा सकती हैं।

अब, उनके उदाहरण से एक संकेत लेते हुए, जब हम सभी क्षेत्रों को अपनी लड़ाई लड़ते हुए पाते हैं, तो शायद ही किसी क्षेत्र में लोगों का प्रतिनिधित्व या लोगों का समर्थन होता है, क्योंकि लोग वास्तव में जागरूक नहीं हैं। बीमा विधेयक पारित होने पर कर्मचारी सड़कों पर हैं और शायद अन्य सार्वजनिक क्षेत्र भी इसमें शामिल हो रहे हैं। लेकिन आम लोगों को पता नहीं है कि इससे क्या नुकसान होगा। BSNL, MTNL, तेल, कोयला, रक्षा, किसी भी क्षेत्र के साथ यही होता है। आम लोगों को कोई सरोकार नहीं है। यानी हम आम लोगों को राजी नहीं कर पाए हैं। लेकिन किसानों के पास जो कुछ था, उसमें लोगों का समर्थन था।

अब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के पूरे मुद्दे पर हमने एक आंदोलन के बारे में सोचा, क्योंकि बैंकिंग एक ऐसा क्षेत्र है जिससे आम लोग जुड़े हुए हैं। सभी लोग बैंकों से जुड़े हुए हैं। यह समझ या भावना बढ़ रही है कि अगर कल बैंकों का निजीकरण किया गया, तो बैंक विफल हो सकते हैं, और हम अपना पैसा खो देंगे। कठोर FRDI बिल के खिलाफ आंदोलन की सफलता वास्तव में यही थी: आखिरकार, सरकार को इसे टालना पड़ा। अब यह एक ऐसा आंदोलन है जिसमें हमने महसूस किया कि अगर हम अपनी लड़ाई को लोगों तक ले जा सकते हैं और आम लोगों को शामिल कर सकते हैं, तो यह एक बहुत ही कड़ा संदेश देगा। आपने प्रेजेंटेशन की शुरुआत में जो भी सुर्खिया दिखाई थी, उनमें कुछ कोलकता की थी।

हमारा एक फेसबुक पेज है, www.facebook.com/BankBachaoDeshBachao, जिस पर हमारे कई साथी पोस्ट कर रहे हैं। इसके 65,000 से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। संख्या हर दिन बढ़ रही है, जहां अधिकांश फॉलोअर्स गैर-बैंकर हैं। हम प्रत्येक व्यक्ति, अपने ग्राहकों से संपर्क कर रहे हैं, ताकि वे पेज से जुड़ सकें और अपडेट हो सकें। उस विशेष पृष्ठ में, हमने दिखाया है कि कोलकता में स्टेट बैंक के प्रधान कार्यालय के सामने, सैकड़ों स्वयं सहायता समूह के कार्यकर्ता दोनों दिन हड़ताल में शामिल हुए थे। करीब सौ छात्र शामिल हुए थे। IT क्षेत्र के पेशेवर, डॉक्टर, अधिवक्ता, अन्य पेशेवर, सेवानिवृत्त, और सभी राजनीतिक दल और उनके प्रतिनिधी हम से जुड़े थे। बंगाल में एक राजनीतिक दल, इंडियन सेक्युलर फ्रंट, एक नवजात राजनीतिक दल है जिसका राज्य विधानसभा में एक विधायक है। वे दोनों दिन बड़ी संख्या में आए क्योंकि उन्हें लगा कि गरीब लोगों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए।

माननीय प्रधान मंत्रीजी बैंक जमा बचत के लिए 5 लाख बीमा के बारे में जो कुछ भी कहते हैं, हमारे यहां महाराष्ट्र के कामरेड हैं। PMC बैंक में क्या हो गया है, जमाकर्ताओं का पैसा चुकाने में 10 साल लगेंगे। तो कल अगर कोई बैंक विफल हो जाता है, भले ही माननीय प्रधान मंत्री द्वारा घोषित एक खिड़की हो, कि 90 दिनों में हम आपको 5 लाख मिलेंगे, और 90% लोगों की जमा राशि 5 लाख से कम है। परन्तु, मेरे पास सिर्फ रु. 5000 हैं। अगर मेरा बैंक फेल हो गया तो कल मैं अपने परिवार का पेट नहीं भर पाऊंगा। यदि बैंक विफल हो जाते हैं तो मैं अपने परिवार को एक दिन में दो वक्त का भोजन नहीं दे पाऊंगा। इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए, हमने एक मिशन शुरू किया था: भारत यात्रा।

दो भाग थे, एक कोलकाता से शुरू हुआ, एक बंबई से शुरू हुआ। हम दो बसों में थे। और केवल बैंकर ही नहीं, शिक्षाविद जैसे अन्य क्षेत्र से भी थे। हमने कोलकता से कमर तोड़ यात्रा की, हमने झारखंड, बिहार और पूरे उत्तर प्रदेश में व्यापक रूप से यात्रा की। हम जहां भी गए, हमें सड़क के किनारे रोक दिया गया, जहां जनसभाएं होती थीं, जहां स्वयं सहायता समूह के कार्यकर्ता, किसान, सेवानिवृत्त और अन्य क्षेत्र के लोग शामिल होते थे। 2 घंटे की यात्रा 5 घंटे की हो जाती थी। हम हर मीटिंग में लेट हो जाते थे। हम जहां भी गए, हमने जनसभा की। मुझे याद है, आगरा में रात के 9.30 बजे सभा हुई थी। हॉल में 400 से अधिक लोग हमारा स्वागत करने के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे, यह सुनने के लिए कि हमें क्या कहना है। पहली बार इसे राष्ट्रीय मीडिया पर भी कवर किया गया था। NDTV ने हमें दिखाया, देश को दिखाया कि यह भारत यात्रा किस बारे में है। 30 नवंबर को जंतर-मंतर पर हमारा एक विशाल रैली था, जिसमें सभी राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया था। यहां तक कि अन्य प्रतिरोध समूह जैसे युवा हल्ला बोल, जनजातीय सेना। उस रैली में छात्रों के साथ-साथ अन्य सभी क्षेत्रों ने भाग लिया।

बैंकिंग 120-130 करोड़ लोगों से जुड़ी है। लेकिन मैं महसूस करता हूं कि किसी तरह, हमारे जबरदस्त लोगों के जुड़ाव के बावजूद, हम आम लोगों को अपने समर्थन में नहीं ला पा रहे हैं। बैंक कार्यालयों के सामने जो धरना प्रदर्शन हो रहे हैं, वे मुख्य रूप से बैंक कर्मियों द्वारा किए जा रहे हैं। यह ऐसी चीज है जिस पर हमें काम करना है। हमें अपनी पहुंच का लाभ उठाना होगा और अपनी पहुंच का लाभ उठाने के लिए हमें आम लोगों तक पहुंचना होगा।

बैंकिंग एक ऐसी सेवा है जहां अगर वे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सेवा से संतुष्ट नहीं होते हैं, तो हमें शिकायतें प्राप्त होती हैं। हां, हम बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। परन्तु, हम जनता के लिए काम कर रहे हैं। स्टाफ की कमी और अन्य समस्याओं के कारण, कभी-कभी हम अपेक्षित स्तर की सेवा देने में सक्षम नहीं होते हैं। लेकिन फिर भी , लोग पूरी तरह से हमारे साथ हैं जब उनकी गाढ़ी कमाई का सवाल दांव पर है, जब सस्ती बैंकिंग का सवाल है, जहां हम स्वयं सहायता समूहों को ऋण देते हैं। देश भर में 1 करोड़ से अधिक स्वयं सहायता समूह हैं। उन स्वयं सहायता समूहों में से 80% को या तो PSB या RRB द्वारा बहुत मामूली ब्याज दर पर वित्तपोषित किया जाता है, जो कि 3% से 4% प्रति वर्ष के बीच होता है, जबकि निजी खिलाड़ी प्रति माह 3% चार्ज कर रहे हैं, और वे इन विशेष समूहों का शोषण कर रहे हैं। हम जहां भी गए हैं, स्व-सहायता समूहों के साथ बहुत सारी बैठकें की हैं। वे समझ गए हैं कि जब तक वे सड़कों पर नहीं उतरेंगे, जब तक वे बैंकरों के साथ खड़े नहीं होंगे, भविष्य अंधकारमय है। एक साथ, लोग विरोध कर सकते हैं। व्यक्तिगत रूप से, भले ही साढ़े सात लाख बैंक कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाते हैं, जब तक हम लोगों को संगठित नहीं करते और सरकार को लगता है कि यह लोगों का प्रतिरोध है, हम इच्छित प्रभाव नहीं डाल पाएंगे।

यह निजीकरण बिल क्या है जिसका हम विरोध करते रहे हैं? यद्यपि समाचार पत्र, मीडिया, Y बैंक या Z बैंक के नाम दे रहे हैं, मूल तथ्य यह है कि सरकार किसी विशेष बैंक के नामों की घोषणा तब तक नहीं कर सकती जब तक वे मूल अधिनियम में संशोधन नहीं करते। अब मूल अधिनियम है 1970 के बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम की धारा 2बी, उपधारा सी, जो विशेष रूप से यह कहता है कि सरकार के पास किसी भी समय, किसी विशेष बैंक में 51% हिस्सेदारी होनी चाहिए। जब तक वे मूल अधिनियम में संशोधन नहीं करते, इसे पारित नहीं किया जाएगा। बेशक, बिल पेश किया जा चुका है, इसलिए हमने हड़ताल का आह्वान किया है और इसने जबरदस्त सफलता हासिल की है, जैसा कि कामरेड सी एच वेंकटचलम ने कहा था। मैं वास्तव में बैंक अधिकारियों की भूमिका को स्वीकार करने की उनकी सराहना करता हूं लेकिन यह एक संयुक्त संघर्ष है। बेशक हम अपना काम कर रहे हैं। विश्वास की गंभीर कमी है। हम वास्तव में नहीं जानते हैं, एक और मंत्रिमंडल की बैठक मंगलवार को निर्धारित है; क्या होगा हम वास्तव में तब तक नहीं जानते जब तक कि संसद का आखिरी दिन खत्म नहीं हो जाता है या कम से कम अंतिम दिन के एक दिन पहले जब हम बिलों की सूची को पेश करने के लिए देखेंगे। लड़ाई जारी है।

मूल रूप से, हम जो कहना चाहते हैं, संख्या में जाए बिना, मैं यह नहीं बताऊंगा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने क्या भूमिका निभाई है, मैं उसमें नहीं जाऊंगा। सवाल यह है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को क्यों बेचना चाहती है? क्या वे अब सार्वजनिक उद्देश्य की सेवा नहीं कर रहे हैं? क्या निजी स्वामित्व में उनकी लाभप्रदता बढ़ेगी? मुनाफा कौन कमाएगा? क्या जमाकर्ताओं का पैसा प्राइवेट बैंकों में सुरक्षित रहेगा? हम जानते हैं कि YES बैंक के साथ क्या हुआ है, यह वस्तुतः तब तक एक NO बैंक बन गया जब तक SBI ने इसे आवश्यक ऑक्सीजन प्रदान नहीं किया; SBI के समर्थन के कारण इसे अभी भी जीवित रखा गया है। IndusInd बैंक को गंभीर समस्या हो रही है। रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि उन्होंने अपनी बैलेंस शीट में हेराफेरी की है। IndusInd बैंक के कर्मचारियों ने व्हिसलब्लोअर पॉलिसी के तहत RBI से शिकायत की थी। उनका कहना है कि हमारी बैलेंस शीट सच्ची नहीं है। उनके पास एक पूर्ण स्वामित्व वाली माइक्रोफाइनेंस फर्म है और उनके पूरे खाते को प्रबंधन द्वारा “तकनीकी गड़बड़ी” के रूप में दिखाया गया है। LIC को अधिक पूंजी लगाकर IndusInd बैंक को बढ़ावा देने के लिए कहा गया है। इतने सारे कंकाल सारी निजी बैंकों की अलमारी के अंदर हैं। बाहर की चमक वास्तव में जो भीतर है उसे उजागर नहीं करेगी। वे केंद्रीय सतर्कता आयोग के दायरे में नहीं हैं, वे RTI के दायरे में नहीं हैं।

मूल रूप से, यदि बैंकों का निजीकरण होता है, तो यह निश्चित रूप से बैंक की विफलता का कारण बनेगा, क्योंकि जैसे सीएच वेंकटचलम ने कहा, इतने सारे क्रोनी (घनिष्ठ मित्र) कॉरपोरेट सिस्टम के लिए हजारों करोड़ का कर्जदार हैं; कॉमरेड नंदकुमार ने भी कहा। यह बकायेदारों से भरा हुआ है। 6.7 लाख करोड़ मूल्य के NPA में से 75% उधारकर्ता 5 करोड़ और उससे अधिक के हैं। बड़े पैमाने पर बैंक धोखाधड़ी हुई है। हम केवल विजय माल्या, मेहुल चौकसी, नीरव मोदी के बारे में जानते हैं। व्यवस्था को लूटने वाले ऐसे धोखेबाजों की सूची सरकार प्रकाशित नहीं कर रही है। हमने CAG जांच की मांग की है।
14 नवंबर को, हमने कॉन्स्टिट्यूशन क्लब, नई दिल्ली में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण का विरोध हम क्यों कर रहे हैं, इस पर एक श्वेत पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें AITUC जैसे कई प्रमुख सांसदों ने भाग लिया। दरअसल, पश्चिम बंगाल की माननीय मुख्यमंत्री मैडम ममता बनर्जी ने उनके समर्थन का वादा किया है। उन्होंने मुझे एक पत्र लिखा था कि न केवल उनकी पार्टी इस निजीकरण आंदोलन का विरोध करेगी; उन्होंने हमारे कार्यक्रम में भाग लेने के लिए अपने वरिष्ठ संसद सदस्यों को भी प्रतिनियुक्त किया। मैं पहले ही कॉमरेड मैथ्यू के साथ दस्तावेज़ साझा कर चुका हूँ।

सवाल यह है कि जैसा कि मैंने कहा, सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को क्यों बेचना चाहती है? मैं व्यक्तिगत तौर पर इसे सीधे रूप से एक राजनीतिक निर्णय के रूप में देखता हूं। यह किसी आर्थिक तथ्य पर आधारित नहीं है। हमने अपने माननीय वित्त मंत्री को सड़कों पर सार्वजनिक बहस के लिए चुनौती दी है। संसद के अंदर कोई बहस नहीं होती है। हम जानते हैं कि क्या हो रहा है, 12 सांसदों को सस्पेंड कर दिया गया है, फ्लोर मैनेजमेंट और नंबर कैसे मैनेज किए जाते हैं। हाँ, 303 एक बहुत ही महत्वपूर्ण संख्या है। लेकिन अपने ऊपरी सदन में, उन्हें विधेयकों को पारित कराने के लिए 12 सांसदों को निलंबित करना पड़ा। यही इस सरकार का रवैया है जो विरोध को बर्दाश्त नहीं करती है, इसलिए उन्होंने 2015 से बैंक बोर्डों में कर्मचारियों या अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक भी निदेशक को नियुक्त नहीं किया है क्योंकि वे नहीं चाहते कि हमें पता चले कि बोर्ड के अंदर क्या चल रहा है, किनका कर्ज माफ किया जा रहा है, किन्हें ये कर्ज दिया जा रहा है। वे नहीं चाहते कि हम जानें, यह बहुत ही सरल है। मैंने जो बताया, उस पर वापस आते हैं, यह सीधे रूप से एक राजनीतिक निर्णय है। 1969 में, जिस पार्टी ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण का विरोध किया था, वह थी भारतीय जनसंघ, और वही राजनीतिक व्यवस्था अब दिल्ली में देश पर शासन कर रही है।

यह वही राजनीतिक विचारधारा है – एक बार फिर, यह मेरा व्यक्तिगत विचार है – जिसके कारण बैंक विलय हुए हैं। सरकार का कहना था कि हमें इतने सारे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की जरूरत नहीं है। अब जब उन्होंने विलय करना शुरू किया, तो उन्होंने कहा कि हम पूर्व, उत्तर और दक्षिण एकीकरण चाहते हैं, हम राष्ट्रीय एकीकरण चाहते हैं। इलाहाबाद बैंक, जो पहली संयुक्त स्टॉक बैंक थी, उसका उससे छोटी बैंक, यानि इंडियन बैंक के साथ विलय कर दिया गया था। यह एक और राजनीतिक फैसला है। हम सभी जानते हैं कि इलाहाबाद का नाम प्रयागराज रखा गया है। मैं इसमें नहीं जा रहा हूं कि यह ऐतिहासिक रूप से सही तथ्य है या नहीं, मैं इस तरह की बहस में प्रवेश नहीं करने जा रहा हूं। लेकिन सच तो यह है कि देश के इतिहास से “इलाहाबाद” शब्द को मिटाना ही होगा। अगर बैंक को प्रयागराज बैंक कहा जाता तो शायद उसका विलय नहीं होता, किसी और बैंक का अधिग्रहण वह कर लेता। ये कुछ ऐसे फैसले हैं जो हमें लगता है कि राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। यह कुछ है जिसका हम विरोध कर रहे हैं। कोई आर्थिक आधार नहीं है। हम उनके तर्कों को टुकड़े-टुकड़े कर सकते हैं।

हमने खुला पत्र भेजा है। हमने माननीय वित्त मंत्री जी से खुले प्रश्न पूछे हैं। आप हमारे साथ बहस कीजीये: या तो आप हमें समझाएं कि निजीकरण अच्छा है, या हम आपको समझाते हैं कि यह देश के लिए अच्छा नहीं है, आम लोगों के लिए अच्छा नहीं है। चालीस करोड़ जन धन खाते हैं, जीरो बैलेंस खाते। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा चालीस करोड़ खाते खोले गए हैं। अगर बैंकों का निजीकरण हो गया तो ये खाताधारक कहां जाएंगे? एक निजी बैंक को? क्या उन्हें प्रवेश की अनुमति होगी? दरअसल कन्हैया कुमार ने हमारी जंतर मंतर रैली को संबोधित किया था; उन्होंने कहा, कि अब आपके सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक में एक सुरक्षा गार्ड आपका अभिवादन कर रहा है, लेकिन बैंकों का निजीकरण होने पर वही सुरक्षा गार्ड आपको बाहर निकाल देगा। यह वास्तविकता है। आम लोगों का पैसा सुरक्षित नहीं होगा। सामाजिक सुरक्षा पहलू भी सुरक्षित नहीं है। जैसा कि कामरेड नंदकुमार ने कहा, सामाजिक न्याय सुनिश्चित नहीं होगा। SC, ST, OBC को आरक्षण नहीं मिलेगा। यह कुछ ऐसा है जो हमारे संविधान में अंतर्निहित है, यह एक मौलिक अधिकार है।

हम एक राजनीतिक इच्छाशक्ति के खिलाफ हैं जो देश के सार्वजनिक क्षेत्र को नष्ट करना चाहती है। यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे हम अकेले नहीं लड़ सकते। हमें एक होना है, हम सब को। हम जानते हैं कि वे किसके लिए काम कर रहे हैं। एक के बाद एक सरकारों ने राष्ट्रीय संपत्तियों की इस बिक्री को अंजाम दिया है। 1991 के बाद से 5 लाख करोड़ से अधिक राष्ट्रीय संपत्ति बेची गई है। लेकिन 2014 से, 4 लाख करोड़ मूल्य की राष्ट्रीय संपत्ति बेची गई है। हम जानते हैं कि डेटा के साथ क्या हुआ है। रातोंरात, निजी ऑपरेटरों द्वारा दी जाने वाली प्रीपेड मोबाइल डेटा दरें 599 से बढ़कर 719 हो गईं। ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि कुछ दिन पहले सरकार ने एक अधिसूचना जारी की थी कि वे BSNL, MTNL की संपत्ति का मुद्रीकरण करेंगे। इन कंपनियों के लिए यह एक स्पष्ट संकेत था कि आप अपनी कीमतें बढ़ा सकते हैं, आप जनता का शोषण कर सकते हैं और आप अपना खजाना भर सकते हैं। अंतत: आम लोगों को ही नुकसान होगा। तथाकथित चुने हुए कुछ लोगों के खजाने कई गुना बढ़ेंगे, और आम लोगों को नाक में दम आने तक भुगतान करना होगा।

यह हम सभी की लड़ाई है। हम किसी भी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े हैं, हम किसी केंद्रीय ट्रेड यूनियन से संबद्ध नहीं हैं। हमारे अपने स्वतंत्र विचार हैं। जब बैंक विलय हुआ था, मैं व्यक्तिगत रूप से नागपुर में RSS मुख्यालय गया और मोहन भागवत जी से मिला और उनसे इस विलय के लिए नहीं जाने का आग्रह किया। हमने हर राजनीतिक दल से संपर्क किया है, हमने हर दरवाजे पर दस्तक दी है। लेकिन यह लड़ाई है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने जैसा स्पष्ट संकेत दिया है। उन्होंने सरकार को चुनौती दी है: यदि आप कानून वापस नहीं लेते हैं, तो हम उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गुजरात में आगामी चुनावों में सड़कों पर लड़ेंगे। इसी तरह हम भी साफ-साफ कह रहे हैं कि अगर यह बिल पेश हो गया और पास हो गया तो हम चुप नहीं बैठेंगे। हम 120 करोड़ जनता से जुड़े हुए हैं। हम एक-एक मतदाता के पास जायेंगे और इस सरकार की मंशा का पर्दाफाश करेंगे। बंगाल में हुए चुनावों में इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, क्योंकि पश्चिम बंगाल की AIBOC राज्य इकाई ने कई नुक्कड़ सभाएं की थीं। यह माननीय वित्त मंत्री द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों का निजीकरण करने की घोषणा के तुरंत बाद आया, और चुनावों में इसका प्रतिबिंब था।

इसी के साथ, मैं आप सभी से आग्रह करता हूं- मुझे लगता है कि मैंने अभी-अभी अपना आवंटित समय पूरा किया है- यह हम सभी के अस्तित्व की लड़ाई है। हर क्षेत्र में हम लड़ रहे हैं। आइए हाथ मिलाएं, और अपनी लड़ाई को लोगों तक ले जाएं। हमें आम लोगों को जोड़ने की जरूरत है। और बैंकिंग एक ऐसा क्षेत्र है जिससे हर नागरिक जुड़ा है। आइए हम अपने फेसबुक पेज, बैंक बचाओ देश बचाओ से जुड़ें। IT सेल द्वारा बहुत सारे पेज बनाए गए हैं। मुझे नहीं पता लेकिन यह मेरा निजी विचार है कि अगर आप हमारा पेज देखेंगे तो यह टॉप पर नहीं आएगा। लेकिन हमारे पेज के अभी 65,000 फॉलोअर्स हैं। हम न केवल बैंकों के लिए बल्कि सभी के लिए निजीकरण के खिलाफ सामग्री अपलोड कर रहे हैं। हम अपने आंदोलन के लिए जनमत तैयार कर रहे हैं। क्योंकि जैसा कि मैंने कहा, हम तभी सफल हो सकते हैं जब यह लोगों द्वारा, लोगों का, लोगों के लिए एक आंदोलन हो।

कॉमरेड मैथ्यू, एक बार फिर धन्यवाद। मैं वास्तव में इस बात की सराहना करता हूं कि हमें इस बैठक में अपने विचार व्यक्त करने और अपने विचार साझा करने का सौभाग्य मिला है। सभी वक्ताओं से मैंने बहुत सी चीजें उठाई हैं। हम राज्य सड़क परिवहन कर्मचारियों के साथ महाराष्ट्र में जो हो रहा है उसका समर्थन और सराहना करते हैं। और जब भी कोई संगठन निजीकरण से लड़ रहा है, हम वहां हैं। हम कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेंगे और आपके लिए अतिरिक्त मील चलेंगे क्योंकि यह हम सभी की लड़ाई है। हम देश के लिए लड़ रहे हैं। जैसा कि हमारा फेसबुक पेज कहता है, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की रक्षा करना राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना है। हम जहां भी गए हैं, हमने तिरंगा ऊंचा रखा है। हमने राष्ट्रीय तिरंगा अपने हाथों में लिया है क्योंकि यह सार्वजनिक क्षेत्र को बचाने की लड़ाई है, यह देश के सार्वजनिक क्षेत्र को नष्ट करने पर तुले हुए छद्म राष्ट्रवादियों के खिलाफ राष्ट्रवादियों की लड़ाई है। शुक्रिया।

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