निजीकरण के खिलाफ संयुक्त कार्य योजना विकसित करने के लिए बैंकिंग, बिजली और रेलवे क्षेत्रों तथा जन संगठनों के कार्यकर्ताओं ने पुणे में एक बैठक की।

निजीकरण की मजदूर-विरोधी, जन-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी नीति के खिलाफ एक संयुक्त कार्य योजना विकसित करने के लिए, बि बैंकिंग,जली और रेलवे क्षेत्रों के विभिन्न संगठनों के साथ-साथ जन संगठनों ने 12 जून 2022 को पुणे के पत्रकार भवन में एक बैठक का आयोजन किया। आयोजकों में ऑल इंडिया पंजाब नेशनल बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन (AIPNBOA), ऑल इंडिया स्टेशन मास्टर्स एसोसिएशन (AISMA), सेंट्रल रेलवे ट्रैकमेनटेनर्स यूनियन (CRTU), कामगार एकता कमिटी (KEC), महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फेडरेशन (MSEWF), पुणे जिला बैंक एम्प्लोईज असोसिएशन (PDBEA), और सबोर्डिनेट इंजीनीयर्स असोसिअशन (MSEB) शामिल थे।

इस ऐतिहासिक बैठक में रक्षा क्षेत्र के नेताओं, प्रोफेसरों के यूनियन और जन संगठनों सहित सौ से अधिक लोगों ने भाग लिया।

कामगार एकता कमिटी (पुणे) के सचिव श्री प्रदीप ने आयोजकों की ओर से सभा का स्वागत किया और KEC संयुक्त सचिव श्री गिरीश भावे को बैठक संचालन करने के लिए आमंत्रित किया। श्री शैलेश टिलेकर (जनरल सेक्रेटरी, PDBEA), श्री दशरथ नागराले (अध्यक्ष, CRTU, पुणे डिवीजन), कॉम. कृष्णा भोयर (महासचिव, MSEWF, और राष्ट्रीय सचिव, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लॉइज, AIFEE), श्री विट्ठल माने (अध्यक्ष, ऑल इंडिया पंजाब नेशनल बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन, AIPNBOA और आयोजन सचिव, ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कॉन्फेडरेशन, AIBOC, महाराष्ट्र और गोवा) और श्री सुनील जगताप (वरिष्ठ उपाध्यक्ष, ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन, AIPEF), ये सब विभिन्न यूनियनों के नेता आयोजन समिति के सदस्य थे और उन्होंने बैठक को संबोधित किया।

इन सभी नेताओं ने सभी को एक साथ लाने की पहल करने के लिए कामगार एकता कमिटी (KEC) को धन्यवाद दिया और उनमें से कई ने निजीकरण के खिलाफ लड़ाई में सर्व हिन्द निजीकरण विरोधी फोरम (AIFAP) द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला और उसकी सराहना की। कृपया उनकी प्रस्तुतियों के मुख्य बिंदुओं के लिए बॉक्स देखें।

KEC की ओर से श्री अशोक कुमार ने निजीकरण का एक सिंहावलोकन प्रस्तुत किया और इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि जहां कहीं भी श्रमिक आम लोगों को इसके हानिकारक प्रभावों के बारे में वाकिफ कराने और इसके खिलाफ लड़ाई में शामिल होने के लिए उन्हें संगठित करने में सक्षम हुए, वहां निजीकरण को रोक दिया गया है।

उनकी प्रस्तुति के लिए लिंक पर क्लिक करें। वह हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में है।.

आयोजकों के भाषणों के बाद, कॉमरेड सुनील बजारे (अध्यक्ष, नेशनल रेल्वे मझदूर यूनियन (NRMU) के पुणे मंडल), डॉ गीता शिंदे ((पुणे विश्वविद्यालय के सावित्रीबाई फुले टीचर्स एसिओसेशन, SPTA की अध्यक्षा), कॉमरेड मोहन होल (ऑल इंडिया डीफेन्स एम्प्लोईज फेडरेशन, AIDEF) और सुश्री शीना (राष्ट्रीय प्रवक्ता, पुरोगामी महिला संगठन, PMS और सदस्या, KEC, पुणे) को अपने विचार व्यक्त करने के लिए बुलाया गया।

विचार-विमर्श में भाग लेने वाले अन्य प्रतिष्ठित कार्यकर्ताओं और नेताओं में डॉ. संजीवनी जैन, उपाध्यक्षा, लोक राज संगठन (LRS), सुश्री भारती भोयर, नेता, महिला मोर्चा, महाराष्ट्र स्टेट एलेक्ट्रीसिती वर्कर्स फेडरेशन (MSEWF), सुश्री नीता घाग, संयुक्त सचिव, ऑल इंडिया बँक एम्प्लोईस असोसिअशन (AIBEA), पुणे इकाई, श्री शिरीष राणे, पुणे डिस्ट्रिक्ट बैंक एम्प्लोईस असोसिएशन (PDBEA), श्री नितिन पवार, हमाल पंचायत, तथा युक्रांद, मासूम, श्रमिक एवं लोकायत और नेशनल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स का सहेली संघ (पुणे) के कार्यकर्ता। ऑल इंडिया स्टेशन मास्टर्स एसोसिएशन (AISMA) के नेताओं और कई अन्य जो इसमें शामिल नहीं हो सके, ने इन विचार-विमर्श की सफलता के लिए अपनी शुभकामनाएं भेजीं।

बैठक के अंत में आयोजकों की ओर से श्री गिरीश भावे ने विचार-विमर्श के आधार पर एक प्रस्ताव पेश किया जिसे इस अवसर पर उपस्थित सभी प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से पारित किया। प्रस्ताव संलग्न है।

हमारी जानकारी के अनुसार यह बैठक महाराष्ट्र में पहली ऐसी जनसभा है जहां विभिन्न क्षेत्रों और जन संगठनों के कार्यकर्ता एक साथ आए हैं और यह बैठक निश्चित रूप से कई और लोगों को निजीकरण के खिलाफ अभियान में शामिल होने के लिए प्रेरित करेगी।

श्री शैलेश टिलेकर (महासचिव, PDBEA) के भाषण के मुख्य बिंदु

1991 के उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की स्थिति को विशेष रूप से बट्टे खाते में डालने, गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) और विलय के माध्यम से जानबूझकर कमजोर किया गया है।

अकेले पिछले 10 वर्षों में, कुल कॉर्पोरेट ऋणों में से 82% को NPA (यानि कि ऐसे ऋण जिसे बड़े कॉर्पोरेट वापस नहीं देंगे) घोषित किये गये थे!

नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) ने वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज जैसे कॉरपोरेट्स को लाखों करोड़ का राइट ऑफ दिया है।

बैंकों के विलय के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 6000 बैंक शाखाएँ बंद हो गई हैं।

ये नीतियां कॉरपोरेट्स के लाभ को बढ़ाने के लिए हैं।

विलफुल डिफॉल्टर्स (यानि जो मनमानी से ऋण वापस नहीं करनेवालों) को अपराधी घोषित करके और उन्हें चुकाने के लिए मजबूर करके, बचत ब्याज दरों को बढ़ाया जा सकता है और आम लोगों को अधिक ऋण दिया जा सकता है।

कॉरपोरेट ऋणों के बट्टे खाते में डालने से बैंकों को पहले ही नुकसान हुआ है। अब वही कॉरपोरेट्स बैंक खरीदना चाहते हैं!

जनकल्याण के लिए बैंकिंग को बचाने के उद्देश्य से हमें एकजुट होकर लड़ना होगा।

 

श्री दशरथ नागराले (अध्यक्ष, CRTU, पुणे मंडल) के भाषण के मुख्य बिंदु

मैं पिछले 20 वर्षों से पुणे में ट्रैक मेंटेनर के रूप में काम कर रहा हूं।

यात्रियों की सुरक्षा के लिए ट्रैक मेंटेनर कई कुर्बानियां देते हैं। भारतीय रेलवे में हर दिन एक ट्रैक मेंटेनर की ड्यूटी पर मौत हो जाती है, क्योंकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है।
छुट्टी की अनुपलब्धता और काम करने की असहनीय परिस्थितियों के कारण आत्महत्या के कई मामले सामने आ रहे हैं।

बच्चों सहित श्रमिकों को अनुबंध के आधार पर ट्रैकमैन के रूप में काम पर रखा जाता है। ये श्रमिक प्रशिक्षित नहीं हैं और उन्हें कम से कम संभव मजदूरी मिलती है।

रेलवे में संविदाकरण और निजीकरण से अप्रशिक्षित श्रमिकों द्वारा महत्वपूर्ण कार्य किए जा रहे हैं, और इस प्रकार यात्रियों की सुरक्षा से समझौता किया जाता है, और इसलिए निजीकरण के खिलाफ लड़ाई यात्रियों की भी लड़ाई है।

 

श्री अशोक कुमार (संयुक्त सचिव, KEC) द्वारा प्रस्तुति के मुख्य बिंदु

निजीकरण का कॉर्पोरेट एजेंडा वही रहा है, हालांकि केंद्र में पार्टियां और उनकी रणनीतियां बदल गई हैं।

सरकार झूठे वादे और भ्रामक बयान देकर श्रमिकों के संघर्ष को कमजोर करने की कोशिश कर रही है, लेकिन उदाहरण के लिए पुडुचेरी और महाराष्ट्र में बिजली श्रमिकों के अनुभव ने दिखाया है कि हम उन पर निर्भर नहीं रह सकते हैं।

सफल संघर्षों के कई उदाहरण हैं; उनमें समान विशेषता यह रही है कि बड़े पैमाने पर लोगों को सचेत बनाया गया है और उनकी भागीदारी रही है।

एक पर हमला सभी पर हमला है और हमें निजीकरण के खिलाफ एकजुट होकर उपभोक्ताओं को शामिल करना होगा।

 

कॉम कृष्णा भोयर (महासचिव, MSEWF, और राष्ट्रीय सचिव, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लोईस) के भाषण के मुख्य बिंदु

सत्ता में चाहे कोई भी पार्टी क्यों न हो, AITUC सहित हमारे देश के कार्यकर्ता और दस केंद्रीय ट्रेड यूनियन दशकों से सरकार की नीतियों के खिलाफ लड़ रहे हैं।

हालांकि, श्रमिक अलग-अलग अपने क्षेत्रों के लिए लड़ते रहे हैं परन्तु जानते नहीं हैं कि दूसरे सेक्टरों में क्या हो रहा है।

सरकार मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दों से हमारा ध्यान भटकाकर हमारी एकता को तोड़ने की कोशिश कर रही है।

लॉकडाउन के दौरान सभी क्षेत्रों के नेताओं को एकजुट करने के लिए AIFAP को धन्यवाद देने की जरूरत है।

AIFAP की बैठकों में भाग लेने से श्रमिकों को यह समझने का अवसर मिलता है किकोयला,  रक्षा, इस्पात, रेलवे, बैंक, बीमा और अन्य क्षेत्रों में क्या हो रहा है।

सार्वजनिक संपत्ति को निजी हाथों में सौंपना लोगों पर एक खतरनाक हमला है।

देश का निर्माण करने वाले उद्योगों को बेचा जा रहा है।

बिजली वितरण को घाटे में डालने के लिए सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। बिजली वितरण के निजीकरण से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में शुल्क उच्च होगा और बिजली की आपूर्ति नहीं होगी, भले ही वर्तमान में महाराष्ट्र में 1000 मेगावाट का उत्पादन अधिशेष है।

मैं सभी क्षेत्रों से एकजुट होने और निजीकरण के खिलाफ लड़ाई को महाराष्ट्र के करोड़ों लोगों तक ले जाने का आग्रह करता हूं।

 

श्री विट्ठल माने (अध्यक्ष, AIPNBOA, और आयोजन सचिव, ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कॉन्फेडरेशन, AIBOC महाराष्ट्र और गोवा) के भाषण के मुख्य बिंदु

मैं उन नेताओं के साथ मंच साझा करने के अवसर की सराहना करता हूं जिन्हें मैं पहले नहीं जानता था: मुझे अन्य वक्ताओं से बिजली और रेलवे के बारे में बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक शून्य-शेष खातों की अनुमति देते हैं, शिक्षा ऋण और मुद्रा ऋण प्रदान करते हैं, और यहां तक कि कुछ हज़ार रुपयों की छोटी राशि के ऋण भी प्रदान करते हैं, जबकि निजी बैंक ऐसा नहीं करते हैं।

कृषि से जुड़ी देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा छोटे ऋणों पर निर्भर है। बैंकों का निजीकरण उन्हें बैंकिंग सेवाओं से वंचित करेगा और किसानों की आत्महत्याएं बढ़ेंगी।

मैं रेलवे, बिजली, कोयला, इस्पात और अन्य नेताओं से अनुरोध करता हूं कि वे अपने क्षेत्र में चल रहे निजीकरण के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करें, ताकि इस जानकारी को सामूहिक रूप से जनता तक पहुंचाया जा सके।

फरवरी में, AIBOC ने निजीकरण का विरोध करने के लिए एक रथ यात्रा निकाली; मजदूरों के विरोध के कारण बैंक के निजीकरण बिल को वापस लेना पड़ा। अगर हम इस तरह से जनता के बीच जाएंगे तो हम जरूर जीतेंगे क्योंकि एकता ही हमारी ताकत है।

मैं विश्वास दिलाता हूं कि AIPNBOA भविष्य की ऐसी सभी बैठकों में भाग लेगा।

 

श्री सुनील जगताप (वरिष्ठ उपाध्यक्ष, AIPEF) के भाषण के मुख्य बिंदु

बिजली क्षेत्र में नुकसान के लिए सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं; वह बिजली में सब्सिडी प्रदान करता है, लेकिन उसने MSEB को सब्सिडी राशि का भुगतान नहीं किया है। बिजली कर्मियों की मांग है कि उनके बकाया का भुगतान किया जाए।

टाटा, बिड़ला और अन्य पूंजीपतियों ने नेहरू सरकार को सड़क, बिजली और पानी जैसे क्षेत्रों का राष्ट्रीयकरण करने की सलाह दी थी क्योंकि इन क्षेत्रों में बहुत अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है।

अब, इन बड़े पूंजीपतियों ने अपनी संपत्ति बढ़ा ली है और सार्वजनिक क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए तैयार हैं।

यह प्रचार कि निजीकरण उपभोक्ताओं को अपनी बिजली वितरण कंपनी चुनने में सक्षम बनाएगा, पूरी तरह गलत है। वास्तव में, यह निजी खिलाड़ी है जो उपभोक्ता को चुनता है, और पुणे जैसे शहरी क्षेत्रों का सबसे पहले निजीकरण किया जाएगा।

संघर्ष के लिए उपभोक्ताओं का समर्थन आवश्यक है।

 

कॉम सुनील बाजारे (अध्यक्ष, नैशनल रेलवे मजदूर यूनियन, NRMU पुणे मंडल) के भाषण के मुख्य बिंदु

निजी तेजस एक्सप्रेस दिल्ली और लखनऊ के बीच की दूरी सरकार की राजधानी से सिर्फ 10 मिनट कम में तय करती है, लेकिन उसका टिकट किराया राजधानी से दोगुना है!

भारतीय रेलवे लगभग 106 प्रकार की रियायतें प्रदान करता है, जिन्हें निजीकरण के बाद बंद कर दिया जाएगा। इस प्रकार, सभी श्रमिकों और दिहाड़ी मजदूरों को नुकसान होगा।

निजीकरण को आगे बढ़ाया जा रहा है, हालांकि सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी महामारी के दौरान भी आवश्यक सेवाएं प्रदान करते रहे हैं। लोकडाउन के दौरान खाद्य और दवा पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य रेलकर्मियों ने किया।

आपातकाल के मामलों में गोला-बारूद के परिवहन के लिए रेलवे का रणनीतिक महत्व भी है, इसलिए रेलवे की बिक्री राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है।

सरकार सांप्रदायिक मुद्दों पर हमारा ध्यान भटकाने और बांटने की कोशिश कर रही है। हालांकि, हमें निजीकरण को रोकने के लिए पार्टी या संघ की संबद्धता के बावजूद एकजुट होना चाहिए।

 

डॉ. गीता शिंदे (अध्यक्ष, सावित्रीबाई फुले टीचर्स असोसिअशन) के भाषण के मुख्य बिंदु

शिक्षक भी श्रमिक या मज़दूर हैं और शिक्षा क्षेत्र अन्य सभी क्षेत्रों से संबंधित है।

सरकारी शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों का वेतन कम है और निजी संस्थानों को बढ़ावा देने के लिए इन संस्थानों की गुणवत्ता को जानबूझकर कमजोर किया गया है।

शिक्षा के क्षेत्र में मौजूदा मुद्दों और मूलभूत जरूरतों को संबोधित करने के लिए नीति तैयार करने के बजाय, सरकार नई शिक्षा नीति के माध्यम से निजीकरण को और आगे बढ़ाने के लिए तैयार है!

सरकारी शिक्षा एक मूलभूत आवश्यकता है जो सभी के लिए सस्ती होनी चाहिए।

 

कॉम. मोहन होल (कोषाध्यक्ष, ऑल इंडिया डिफेंस एम्प्लोईस फेडरेशन) के भाषण के मुख्य बिंदु

सरकार ने सबसे पहले विनिवेश और FDI की शुरुआत आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) में की, जो बंदूकें, गोलियां, गोला-बारूद, पैराशूट, वर्दी और अन्य उपकरण बनाती है।

जब OFB के निगमीकरण की घोषणा की गई, तो रक्षा कर्मचारियों ने अक्टूबर 2020 में अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी थी। परन्तु, सरकार ने श्रमिकों की हड़तालों पर रोक लगाने के लिए आवश्यक रक्षा सेवा अधिनियम लागू किया और 2021 में OFB का निगमीकरण किया।

रक्षा उद्योग लाभ के लिए नहीं है, लेकिन निजी खिलाड़ी इसका उपयोग केवल अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए करेंगे, जिससे देश की सुरक्षा से समझौता होगा।

रक्षा कर्मचारी निजीकरण के खिलाफ लड़ना जारी रखेंगे, AIFAP का समर्थन करना जारी रखेंगे और हम मिलकर सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों को रोक सकते हैं।

 

सुश्री शीना (राष्ट्रीय प्रवक्ता, पुरोगामी महिला संगठन, और सदस्य, KEC, पुणे) के भाषण के मुख्य बिंदु

सरकार का बिजली और रेलवे का बकाया और लाखों करोड़ों के NPA यह बताते हैं कि देश की संपत्ति का इस्तेमाल पूंजीवादी एजेंडे को पूरा करने के लिए किया जा रहा है, न कि लोगों के लिए।

नीतियां एक पार्टी या दूसरे द्वारा नहीं बल्कि मज़दूरों मेहनतकशों द्वारा बनाई जानी चाहिए।

एक क्षेत्र के मजदूर दूसरे सभी के उपभोक्ता हैं, इसलिए उपभोक्ताओं को हमारी लड़ाई में शामिल करना चाहिए।

हालांकि मुख्यधारा का मीडिया कर्मचारियों का नहीं है, लेकिन युवाओं की भागीदारी हमें सोशल मीडिया का उपयोग करने और श्रमिकों के लिए वैकल्पिक मीडिया बनाने में मदद कर सकती है।

बिजली और रेलकर्मियों की हड़ताल से 48 घंटे के भीतर उनकी मांगों को पूरा करने से स्पष्ट है कि मजदूरों में ताकत है; हमें अपनी शक्ति का एहसास तथा उपयोग करना होगा।

हमें अब आक्रामक पैंतरा अपनाना चाहिए। सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों से लड़ने तक खुद को सीमित करने के बजाय, हमें सवाल पूछना शुरू करना चाहिए और सरकार को जवाबदेह ठहराना चाहिए।

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