जब बिजली की कमी नहीं है तो बिजली उत्पादन के लिए कोयले का आयात क्यों किया जा रहा है? उपभोक्ता किसके लाभ के लिए आयातित कोयले के लिए अतिरिक्त शुल्क अदा कर रहे हैं?

कामगार एकता कमेटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट

 

25 जुलाई 2022 को राज्य सभा में दिए गए उत्तर में कोयला और खान मंत्री ने कहा:

“देश में कोयले की कोई कमी नहीं है। वर्ष 2020-21 में 716.083 मिलियन टन अखिल भारतीय कोयला उत्पादन की तुलना में वर्ष 2021-22 में उत्पादन 778.19 मिलियन टन था। चालू वित्त वर्ष में (जून तक) देश ने पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान लगभग 31% की वृद्धि के साथ 156.11 मिलियन टन की तुलना में 204.876 मिलियन टन का उत्पादन किया है।”

सवाल यह है कि जब कोयले की कमी नहीं है और कोयले का उत्पादन बढ़ गया है, तो राज्य के स्वामित्व वाली बिजली उत्पादन कंपनियों (Gencos) को केंद्र सरकार द्वारा घरेलू कोयले की कीमत से तीन से चार गुना कीमत पर 10% कोयला आयात करने के लिए क्यों मजबूर किया गया है?

बताया गया है कि 2022-23 में 75 मिलियन टन कोयले के आयात की योजना तैयार की गई है। इससे बिजली की दरें 50 से 80 पैसे प्रति यूनिट तक बढ़ जाएंगी।

आयातित कोयले के उपयोग के कारण ग्राहकों को अतिरिक्त शुल्क क्यों देना पड़ रहा है? आवश्यकता न होने पर कोयले के आयात पर किसके लाभ के लिए जोर दिया जा रहा है?

जाहिर है कि कोयले के आयात से बड़ी व्यापारिक कंपनियों और अडानी और टाटा जैसे बड़े पूंजीपतियों को फायदा होगा, जिनके पास दूसरे देशों में कोयला खदानें हैं।

कुछ इजारेदारों को समृद्ध करने के लिए बिजली उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है।

Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments