कामगार एकता कमिटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट
युक्रांद (युवक क्रांति दल) ने कामगार एकता कमिटी (KEC) और लोक राज संगठन (LRS) के कार्यकर्ताओं को 11 सितंबर 2022 को पुणे में अपने कार्यकर्ताओं के लिए निजीकरण के विषय पर एक कार्यशाला आयोजित करने के लिए आमंत्रित किया। युक्रांद के श्री विवेक काशीकर ने पुणे में 12 जून 2022 को पुणे में विभिन्न मज़दूरों और जन संगठनों के कार्यकर्ताओं की निजीकरण के खिलाफ एक कार्य योजना विकसित करने के लिए संयुक्त बैठक में भाग लिया था (देखें https://hindi.aifap.org.in/5641/) और उन्हों ने इस कार्यशाला के आयोजन को सुगम बनाया।
हॉल युवा कार्यकर्ताओं से और जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं लेकिन निश्चित रूप से थके नहीं हैं, ऐसे अन्य “दिल से युवाओं” से भरा था! आखिरकार, युवाओं के सर्वोत्तम गुण – साहस, निडरता, न्याय और समानता के लिए लड़ने की भावुक इच्छा और सभी महिला – पुरुषों के लिए एक सम्मानजनक जीवन की आशा – कई वृद्ध लोगों में भी पाए जाते हैं। युक्रांद के अलावा, प्रतिभागियों में अपना वतन संगठन, विचारवेध संस्था, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति, पथ विक्रेता एकता समिति और सम्राट अशोक फाउंडेशन के साथ-साथ पत्रकार, छात्र, परामर्शदाता और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के कामगार शामिल थे।
श्री सुदर्शन चखले ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और श्री संदीप बर्वे ने, प्रतिभागियों को युक्रांद के कार्य से परिचित कराया और कार्यशाला के महत्व को रेखांकित किया (ये दोनों युक्रांदके नेता हैं)।
कार्यशाला का संचालन KEC के सदस्य प्रथमेश, KEC के संयुक्त सचिव श्री अशोक कुमार और LRS की उपाध्यक्षा संजीवनी जैन ने किया। यह एक बहुत ही संवादात्मक और ज्ञानवर्धक कार्यशाला थी और बाद में कई प्रतिभागियों ने इसे आयोजित करने के लिए अपना आभार व्यक्त किया। औपचारिक सत्र समाप्त होने के बाद लंबे समय तक अनौपचारिक चर्चा जारी रही और इसे और अधिक स्थानों पर आयोजित करने के लिए कई निमंत्रण प्राप्त हुए ताकि अधिक से अधिक कार्यकर्ताओं को निजीकरण के खिलाफ आंदोलन में भाग लेने में सक्षम बनाया जा सके।
हम विभिन्न वक्ताओं द्वारा प्रस्तुतियों में किए गए मुख्य बिंदुओं को प्रस्तुत कर रहे हैं।
• एक क्षेत्र के श्रमिक अपने क्षेत्र के निजीकरण से उन पर पड़ने वाले भयानक प्रभावों को समझते हैं। परन्तु, सरकार और इजारेदारों के स्वामित्व वाले विभिन्न मीडिया द्वारा किए गए मजबूत झूठे प्रचार के कारण, उनमें से कई अन्य क्षेत्रों के निजीकरण का समर्थन करते हैं। हमें इस प्रचार का पर्दाफाश करने की जरूरत है।
• एक सेक्टर के कामगार दूसरे सेक्टर के उपभोक्ता और उपयोगकर्ता होते हैं। जहां एक सेक्टर के कामगार ज्यादा से ज्यादा लाख में हो सकते हैं, वहीं उपभोक्ता और उपयोगकर्ता दसियों करोड़ों में हैं। हमें उन्हें निजीकरण से होने वाले हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूक करने और इसके खिलाफ लड़ने के लिए संगठित करने की आवश्यकता है।
• ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय लोगों की कीमत पर ब्रिटिश शासक वर्ग की संपत्ति में वृद्धि करने की दिशा में अर्थव्यवस्था थी। 1947 में जब शोषक मालिकों के नए शासक वर्ग ने अंग्रेजों की जगह ले ली तो यह दिशा बदली नहीं।
• 1944 में ही टाटा, बिड़ला, मफतलाल और उस समय के अन्य बड़े भारतीय उद्योगपतियों ने अपने हित में “बॉम्बे प्लान” तैयार किया था। इसने अंग्रेजों के जाने के बाद भारत के आर्थिक विकास की नींव रखी।
• तद्नुसार, स्वतंत्रता के बाद, जनता के पैसे का उपयोग भारी उद्योग और बुनियादी ढांचे (रेलवे, बिजली, सड़क, स्टील, आदि) के निर्माण के लिए किया गया था, जो कि भारतीय उद्योग के विकास और पूंजीपतियों के विकास के लिए आवश्यक था। इसे बाद में “समाजवादी” क्षेत्र के रूप में प्रस्तुत किया गया, क्योंकि उस समय दुनिया भर में और भारतीय लोगों के बीच समाजवाद के पक्ष में एक लहर चल रही थी।
• उस समय पूंजीपतियों के पास भारी उद्योग और बुनियादी ढांचे में निवेश करने के लिए आवश्यक पूंजी नहीं थी। और उस ज़माने में, इन निवेशों पर मुनाफा बनने में बहुत अधिक समय लगता था।
• विभिन्न सरकारों की नीतियों ने बड़े पूंजीपतियों को 1980 के दशक के अंत तक बढ़ने में मदद की, जब वे विश्व मंच पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए काफी बड़े बन चुके थे।
• वह तब था जब उदारीकरण और निजीकरण के माध्यम से वैश्वीकरण की यानि LPG की नीति तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा भारतीय और विदेशी दोनों के सबसे बड़े इजारेदारों के आदेश के अनुसार शुरू की गई थी।
• निजीकरण किसी एक पार्टी का एजेंडा नहीं है। इसे केंद्र और अधिकांश राज्यों में हर सरकार द्वारा लागू किया गया है।
• बड़े कारपोरेट पैसे तभी निवेश करते हैं जब यह उनके लिए अत्यधिक लाभदायक हो और सरकारें उन्हें विभिन्न माध्यमों से ऐसा करने में सक्षम बनाती हैं – लक्षित क्षेत्र को जानबूझकर बर्बाद करना, लोगों को मूर्ख बनाने के लिए झूठा प्रचार करना, आदि।
• निजीकरण लोगों की संपत्ति और श्रम को लूटने का साधन है।
• अर्थव्यवस्था या तो पूंजीपतियों के, विशेष रूप से सबसे बड़े कॉरपोरेट्स के मुनाफे को अधिकतम करने की ओर उन्मुख हो सकती है, या लोगों के कल्याण को अधिकतम करने की दिशा में। यह दोनों नहीं कर सकती।
• सरकार प्रत्येक भारतीय, अमीर या गरीब से करों के रूप में धन एकत्र करती है। यहां तक कि गरीब से गरीब व्यक्ति को भी GST जैसे अप्रत्यक्ष करों का भुगतान करना पड़ता है, जब वे बाज़ार में कुछ भी खरीदते हैं। अप्रत्यक्ष कर कुल संग्रह का लगभग 2/3 है।
• जबकि उसे कर एकत्र करने का अधिकार है, वहीं लोगों की सुरक्षा और कल्याण की देखभाल करना भी सरकार का कर्तव्य है। जबकि विभिन्न सरकारें करों के माध्यम से लोगों को अधिक से अधिक निचोड़ती हैं, उनमें से किसी ने भी उनके प्रति अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया है।
• विभिन्न सरकारों की अन्य नीतियों की तरह निजीकरण भी भारतीय संविधान में निर्धारित निदेशक सिद्धांतों के बिल्कुल विपरीत एक कार्यक्रम है। परन्तु, ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे लोगों द्वारा उनका उल्लंघन करने के लिए सरकार को दंडित किया जा सके।
• इसी तरह सरकारें नियमित रूप से लोगों से किए गए वादों का उल्लंघन करती हैं, लेकिन उन्हें जवाबदेह ठहराने का कोई तरीका नहीं है।
• हाल ही के उदाहरणों में से एक किसानों का आंदोलन है; उस में 700 से अधिक लोगों की मृत्यु के बाद दिये गये लिखित आश्वासनों में एक यह है, कि सरकार बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 को लागू नहीं करेगी। सरकार इस वादे का उल्लंघन करने का इरादा रखती है।
मजदूर विरोधी, जनविरोधी और देश विरोधी निजीकरण के खिलाफ संघर्ष
अल्पकालिक लक्ष्य
• भारत और विभिन्न देशों के अनुभव से पता चलता है कि निजीकरण को रोका जा सकता है।
• यह तब किया गया है जब मजदूरों ने एकजुट होकर इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी है और अपने परिवारों और अन्य लोगों का भी समर्थन जुटाया है।
• उपयोगकर्ताओं और उपभोक्ताओं को उन पर निजीकरण के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूक करने और सरकार के प्रचार से मूर्ख नहीं बनने देने की तत्काल आवश्यकता है।
दीर्घकालीन लक्ष्य
• जबकि हम लक्षित उद्यमों और सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ अपनी दैनिक लड़ाई लड़ते हैं, हमें आज मौजूद कॉरपोरेट राज के स्थान पर लोक राज की स्थापना के दृष्टिकोण से लड़ना होगा।
इसके बाद प्रतिभागियों को AIFAP के बारे में बताया गया और उन्हें बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 के खिलाफ अभियान में शामिल होने के लिए भी प्रेरित किया गया। कामगार एकता कमिटी का एक पत्रक “आपको क्यों एक उपभोक्ता होने के नाते बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 का विरोध करना जरुरी है ” शीर्षक से वितरित किया गया। प्रतिभागियों को इसे व्यापक रूप से फैलाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
कार्यशाला का समापन कई प्रतिभागियों द्वारा निजीकरण की जनविरोधी प्रकृति के बारे में जागरूकता फैलाने की इच्छा व्यक्त करने के साथ हुआ।