लोगों के विरोध के बावजूद केंद्र सरकार एक और सार्वजनिक क्षेत्र के स्टील प्लांट के निजीकरण की योजना बना रही है

कामगार एकता कमिटी (केईसी) संवाददाता की रिपोर्ट

ओडिशा में नीलांचल इस्पात संयंत्र टाटा समूह को बेचने के बाद केंद्र सरकार अब एक और सार्वजनिक क्षेत्र का इस्पात संयंत्र बेचने की योजना बना रही है। राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (NMDC) 23,140 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 3 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (MTP) की क्षमता के नगरनार स्टील प्लांट का निर्माण कर रहा है। यह संयंत्र छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में स्थित है। सरकार ने संयंत्र के निजीकरण के अपने निर्णय की घोषणा तब की थी, जब उसका निर्माण पूरा भी नहीं हुआ था। कैबिनेट ने नवंबर 2016 में ही NMDC को नीति आयोग की सिफारिशों के आधार पर नगरनार स्टील प्लांट में 51% मलिकी एक निजी कंपनी को बेचने की मंजूरी दे दी थी।

चूंकि संयंत्र के अगले कुछ महीनों में उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है, इसलिए अब निजीकरण की प्रक्रिया में तेजी लाई जा रही है।
नगरनार स्टील प्लांट के निजीकरण का मजदूरों और लोगों ने कड़ा विरोध किया है, जिन्होंने प्लांट के लिए अपनी जमीन सौंपी थी। “हमें वादा किया गया था कि इस्पात संयंत्र स्थानीय आबादी के लिए रोजगार लाएगा और अस्पतालों और स्कूलों का निर्माण किया जाएगा। परन्तु, अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है। और अब यह सरकार प्लांट को एक निजी कंपनी को सौंपना चाहती है। हम ऐसा नहीं होने देंगे,” एक प्रदर्शनकारी ने कहा।

पहले 2001 और फिर 2010 में भूमि अधिग्रहण अभियान के दौरान इस क्षेत्र के लगभग 1200 परिवारों ने अपनी जमीन सौंपी थी। एनएमडीसी के वादे के मुताबिक, 20 साल बाद भी उनमें से कई को नौकरी नहीं दी गई है। डर है कि एक बार प्लांट का निजीकरण हो जाने के बाद स्थानीय भूमि प्रदाताओं की नौकरी खतरे में पड़ जाएगी।
“हमने अपनी जमीन छोड़ दी, यह विश्वास करते हुए कि सरकारी कंपनी लाभ से अधिक नागरिकों के हितों को देखेगी। एक निजी कंपनी के साथ ऐसा नहीं होगा,” नगरनार स्टील प्लांट में वर्तमान में कार्यरत एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा। “यह आने वाली पीढ़ियों के बारे में भी है। हम उनकी आजीविका की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए निजीकरण का विरोध कर रहे हैं।”

संयंत्र के लिए भूमि, 1900 एकड़ में फैली हुई है, जिसे 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत इस आधार पर अधिग्रहित किया गया था कि यह “सार्वजनिक उद्देश्य” के लिए आवश्यक था, जो उस अधिनियम की धारा 3 (F)(iv) में परिभाषित है- “राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण वाले निगम के लिए भूमि का प्रावधान”। इसका मतलब यह है कि इस प्रकार अधिग्रहित भूमि को किसी निजी कंपनी को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है। यदि संयंत्र का निजीकरण किया जाता है, तो भूमि राज्य को वापस कर दी जानी चाहिए।
जब मूल रूप से इस्पात संयंत्र के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया था, तो स्थानीय आदिवासी परिवारों ने इसका व्यापक विरोध किया था। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी के लिए जरूरी बताकर उनसे जमीन जबरन ली गई थी।

संयंत्र की कच्चे माल की आवश्यकता को पूरा करने के लिए छत्तीसगढ़ के दांतेवाड़ा जिले में बैलाडाला रेंज में 7 MTP की क्षमता की लौह अयस्क खदान 1900 करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश से विकसित की गई है। इस्पात संयंत्र के लिए 5 MTP लौह अयस्क की आवश्यकता को पूरा करने के बाद शेष मात्रा छत्तीसगढ़ के अंदर स्थित इस्पात संयंत्रों को बेची जाएगी। खदान के विकास के लिए NMDC और छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम (CMDC), राज्य सरकार के सार्वजनिक उपक्रम के बीच एक संयुक्त उद्यम (JV) कंपनी का गठन किया गया था। आदिवासी क्षेत्र में लगभग 650 हेक्टेयर भूमि भी खदान के लिए अधिग्रहित की गई है।

खनन क्षेत्र के अलावा 95 हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग बुनियादी ढांचे के विकास के लिए किया गया है जैसे ढलान वाहक, स्क्रीनिंग प्लांट, लदाई प्लांट और जाने का रास्ता, आदि।

चूंकि जिस भूमि पर संयंत्र और खदानें स्थित हैं, वह ‘अनुसूचित क्षेत्र’ में है, कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाया है कि क्या सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी द्वारा ‘अनुसूचित क्षेत्र’ में रखे गए पट्टे का निजीकरण करना संभव है। अनुसूचित क्षेत्र देश में ऐसे क्षेत्र हैं जहां जनजातीय आबादी की प्रधानता है।
श्रमिकों और स्थानीय लोगों के विरोध ने छत्तीसगढ़ सरकार को नगरनार स्टील प्लांट के निजीकरण के निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए केंद्र सरकार से अनुरोध करने के लिए मजबूर किया। राज्य विधानसभा ने इस आशय का एक सर्वसम्मत प्रस्ताव भी पारित किया है कि अगर केंद्र सरकार इसके विनिवेश के साथ आगे बढ़ती है तो राज्य आदिवासी बस्तर क्षेत्र में स्थित NMDC के एकीकृत नगरनार इस्पात संयंत्र को खरीदने के लिए तैयार है।

नगरनार संयंत्र का प्रस्तावित निजीकरण एक और उदाहरण है जहां राज्य ने पहले लोगों से झूठे वादे करके आदिवासी और वन भूमि अधिग्रहण का काम किया, संयंत्र बनाने और खानों के विकास के लिए जनता के पैसे का इस्तेमाल किया और अब जब संयंत्र उत्पादन शुरू करने के लिए तैयार है, तो स्टील क्षेत्र के इजारेदार चाहते हैं कि इसे निजी लाभ के लिए उन्हें सौंप दिया जाए।

नगरनार स्टील प्लांट के निजीकरण का मजदूरों और लोगों का विरोध जायज है और सभी मजदूरों के समर्थन का हकदार है।

 

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