मोरबी ब्रिज दुर्घटना के लिए निजीकरण जिम्मेदार है

कामगार एकता कमिटी (KEC) के संवाददाता की रिपोर्ट

30 अक्तूबर 2022 को मोरबी पुल के गिरने से 140 से अधिक महिला और पुरुषों की मृत्यु हुई, सेंकडों को गहरी चोट आई। मृतकों की संख्या लगातार बढ़ रही है और कई लोग लापता बताए जा रहे हैं।

कई समाचारपत्रों एवं टीवी खबरों के मुताबिक, दुर्घटना के वक्त पुल के ऊपर 400 से 500 लोग मौजूद थे, यानि पुल की क्षमता के तिगुने से भी अधिक लोग पुल पर थे। सूत्रों के मुताबिक, मोरबी नगरपालिका ने रखरखाव हेतु 15 सालों के लिए पुल को एक निजी कंपनी ओरेवा को सौपा था। मार्च 2022 से यह पुल रखरखाव एवं मरम्मत हेतु बंद था। दुर्घटना के केवल पांच दिन पहले 26 अक्तूबर 2022 को गुजरात राज्य दिन के अवसर पर पुल खोल दिया गया था।

ऐसी भी खबर है की मरम्मत और रखरखाव पूरा होने से पहले ही पुल को खोला गया था। जनता के लिए पुल खोलने से पहले फिटनेस प्रमाणपत्र भी जारी नहीं किया गया। नगरपालिका के एक अधिकारी ने बताया है की पुल की मरम्मत होने से पहले केवल 25 लोगों को एक समय पर पुल पर प्रवेश करने की अनुमति दी जाती थी। मरम्मत के पश्चात् पुल की क्षमता बढ़ी जरुर है लेकिन एक समय कितने व्यक्ति पुल पर हो सकते है इसका कोई भी आंकड़ा कंपनी ने जारी नहीं किया। भीड़ को काबू में करने की कोई व्यवस्था नहीं की थी, अपनी मर्यादा से ज्यादा टिकिट बेचे गए थे।

जिस निजी कंपनी को मरम्मत और रखरखाव की जिम्मेदारी सौपी गयी, उस कंपनी का पुल बनाने का कोई भी अनुभव नहीं है। ओरेवा कंपनी घड़ी, बल्ब बनाती है। तीन दिन पहले ही आई रिपोर्ट के अनुसार मरम्मत के लिए 2 करोड़ रुपयों के प्रावधान में से केवल 12 लाख रुपये की रकम मरम्मत के लिए इस्तेमाल की गयी। फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) के प्राथमिक अहवाल के अनुसार पुल की मुख्य केबल की कुछ भी मरम्मत नहीं की गयी थी, उसपे अभी भी जंग लगा है, यहाँ तक कि ग्रीस या ओइलिंग भी नहीं किया गया। पुल का निचले हिस्से पर पेंट चढ़ाकर और एल्युमीनियम प्लेटस बदलकर उसे जनता के लिये खोला गया था।

यह स्पष्ट है कि मोरबी पुल को निजी हाथों में सौंपना और पूंजीपतियों का लालच इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार हैं। यह अनुभव यही दर्शाता है कि कोई भी निजी कंपनी अपना मुनाफा बनाने के लिए ही काम करती है। एक बार कॉन्ट्रैक्ट मिलने पर जैसे तैसे काम को निपटाकर वे सरकार से पैसा वसूलते हैं।

आज नियमित कामों को ठेके पर सौंपना मानो फैशन बन गया है। रेलवे, बैंक, बिजली जैसे बड़े बड़े उद्योगों में भी कई नियमित काम संविदा जारी करके किये जाते है। नियमित कर्मचारियों से काफी सुनने मिलता है कि संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) पे किये हुए काम का दर्जा काफी काम होता है। पैसा बचाने के लिए वे कम दर्जा के मटेरियल का इस्तेमाल करके काम निपटाते हैं। इससे उपभोक्ताओं की सुरक्षितता पर गहरा असर पड़ता है।

मोरबी पुल दुर्घटना से यह साफ़ हो जाता है की निजीकरण उपभोक्ताओं की सुरक्षा के साथ कितनी खिलवाड़ करता है। हमें एकजुट होकर निजीकरण के खिलाफ आवाज उठानी होगी। हमें कर्मचारियों और उपभोक्ताओं की एकजुटता बनाने के लिए काम करना होगा। निजीकरण को हराकर ही हम मोरबी पुल जैसी दुर्घटनाओं को भविष्य में टाल सकते है।

 

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