बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 के माध्यम से भारत के गरीब और ग्रामीण लोगों के बिजली के अधिकार को रोकने की दिशा में सरकार के कदमों का बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों ने जोरदार विरोध किया तथा भारत सरकार से इस विधेयक को रद्द करने का आग्रह किया

23 नवंबर 2022 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर नेशनल कोआर्डिनेशन कमिटी ऑफ़ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लाइज एंड इंजिनियर्स (NCCOEEE) के द्वारा आयोजित बिजली क्रांति रैली में अपनाया गया संकल्प


बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 का विरोध करने के लिए
नेशनल कोआर्डिनेशन कमिटी ऑफ़ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लाइज एंड इंजिनियर्स द्वारा आयोजित
बिजली क्रांति रैली
जंतर मंतर, नई दिल्ली
23 नवंबर, 2022

संकल्प

जंतर-मंतर, संसद मार्ग, नई दिल्ली में इकठ्ठे हुए बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों की यह विशाल रैली, 8 अगस्त 2022 को संसद में पेश किए गए बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 के माध्यम से भारत सरकार के द्वारा गरीब और ग्रामीण लोगों के बिजली के अधिकार को रोकने की दिशा के कदम का जोरदार विरोध करती है। NCCOEEE के सभी घटक सामूहिक रूप से भारत सरकार से विधेयक को रद्द करने का आग्रह करते हैं।

NCCOEEE ने पिछले तीन महीनों में “बिजली क्रांति यात्रा” के रूप में पूरे देश में राज्य की राजधानियों और प्रमुख शहरों में राज्य सम्मेलनों का आयोजन किया है, जो आज यानी 23/11/2022 को जंतर मंतर दिल्ली पर विशाल रैली के रूप में “बिजली क्षेत्र बचाओ- भारत बचाओ” के क्रांतिकारी नारे के साथ समाप्त हो रहा है। यह NCCOEEE द्वारा 2 अगस्त, 2022 को कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में आयोजित अपने राष्ट्रीय सम्मेलन में लिए गए संकल्प के अनुसार है जो दिल्ली में सत्ता के शीर्ष गलियारों के बहरों और गूंगों के दरवाजे को खटखटाने के लिए है।

NCCOEEE इसके द्वारा बिजली (संशोधन) विधेयक, 2022 के अधिनियमन का कड़ा विरोध करता है, जिसे माननीय ऊर्जा मंत्री, भारत सरकार द्वारा 8 अगस्त, 2022 को अब तक की सबसे अलोकतांत्रिक और बहुत जल्दबाजी से लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था लेकिन लोकसभा में विपक्षी दलों द्वारा दर्ज किए गए मजबूत विरोध तथा देश भर में NCCOEEE घटकों द्वारा बिजली बंद करने के आह्वान के तहत मजबूत विरोध के कारण पूरे देश में एक जबरदस्त वातावरण बना जिससे ऊर्जा पर स्थायी समिति को संदर्भित करने के लिए भेजना पड़ा।
अब सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि NCCOEEE बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 का विरोध क्यों कर रहा है?

परिप्रेक्ष्य में मौलिक अंतर है। अब भारत सरकार बिजली को वस्तु के रूप में मान रही है। आजादी के बाद से प्रमुख राष्ट्रीय नेता बिजली को सामाजिक-आर्थिक सेवा के रूप में मानते थे। विद्युत क्षेत्र कार्य करने वाले अन्य सभी क्षेत्रों के लिए धुरी और आवश्यक है।

21वीं सदी में बिजली हर इंसान की बुनियादी जरूरतों में से एक है जिसके बिना जीवन की कल्पना करना नामुमकिन है लेकिन यह कोई भोग विलास नहीं है। इसलिए बिजली को मौलिक अधिकार यानी जीने के अधिकार के रूप में स्थापित किया जाना चाहिए। लेकिन इसके बिपरीत, अब सरकार बिजली वितरण का निजीकरण करके सभी को बिजली प्रदान करने की अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से पूरी तरह से पल्ला झाड़ लेना चाहती है। निजी लाभ एक बुनियादी आवश्यकता का उद्देश्य नहीं हो सकता।

विधेयक सं. 187/2022 के उद्द्येश्य और कारण इस बिल के पक्ष में सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए भ्रामक हैं और इसके अलावा वे कमजोर है। उल्लंघन के रूप में प्रमुख संरचनात्मक परिवर्तन प्रस्तावित किए गए हैं जो सरकारी वितरण कंपनियों के अप्रत्यक्ष निजीकरण की सुविधा प्रदान करेंगे।

  • एक वितरण लाइसेंसधारी से कई वितरण लाइसेंसधारियों में प्रतिमान बदलाव।
  • लाइसेंस प्रदान करने के लिए मानदंड केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा अर्थात राज्य सरकारों/उपयुक्त आयोग डोमेन में उल्लंघन।
  • डीम्ड लाइसेंसिंग! अर्थात यदि उपयुक्त आयोग द्वारा समय के भीतर आवेदन पर कोई आदेश पारित नहीं किया जाता है, तो आवेदक को बिजली वितरण के लिए लाइसेंस प्रदान किया गया माना जाएगा। यह अपनी तरह का पहला कदम है!
  • निजी वितरण कंपनियां “आपूर्ति के क्षेत्र” के रूप में अपनी पसंद के निर्दिष्ट क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति कर सकती हैं जो कि नगर परिषद या निगम या राजस्व जिला या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित एक छोटा क्षेत्र हो सकता है।
  • सोचें कि क्या यह उपभोक्ता को विकल्प है या आपूर्तिकर्ता को?
  • बिजली उपभोक्ताओं को विकल्प देना बिल के लिए सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए भ्रामक है।
  • उपभोक्ता को लाभ के फर्जी दावे: सस्ती बिजली, निर्बाध बिजली ।
  • धारा 61 (जी) कह रही है कि “बिजली का टैरिफ बिजली की आपूर्ति के लिए किए गए सभी विवेकपूर्ण लागतों की वसूली करे”
  • इससे बिजली की प्रति यूनिट कीमत एक नए आसमान पर पहुंच जाएगी और प्रति यूनिट न्यूनतम कीमत रु 8 से 10 रुपये होगी।
  • भारत और दुनिया भर में असफल प्रयोग; अब पूरे देश में इसका अनुकरण करने की परिकल्पना की जा रही है, जो विनाशकारी और ऐतिहासिक विफलता होगी।
  • धारा 61 (जीए) कह रही है कि “टैरिफ उचित आयोग द्वारा निर्दिष्ट तरीके से क्रॉस सब्सिडी कम करे”।
  • सब्सिडी/क्रॉस सब्सिडी में कमी/उन्मूलन से समाज के सबसे जरूरतमंद वर्गों जैसे गरीब और किसान को बहुत नुकसान होगा।
  • प्रति यूनिट कीमत के अलग-अलग स्लैब धीरे-धीरे समाप्त कर दिए जाएंगे और कीमत प्रतिकूल गरीबों और देश के अति-अमीरों के बीच बराबर कर दी जाएगी।
  • देश के किसानों ने इस बिल के वास्तविक प्रभाव को समझा और अपने पूरे ऐतिहासिक संघर्ष में इस बिल का जमकर विरोध किया लेकिन अब भारत सरकार ने उनसे किए गए वादे के अनुसार उनसे परामर्श करने की भी परवाह नहीं की है।
  • बिना निवेश के सिर्फ लाभ: निजी वितरण अनुज्ञप्तिधारी को वितरण अधोसंरचना सृजित करने में कोई निवेश नहीं करना होगा; केवल इसके उपयोग के लिए मामूली शुल्क देना पड़ेगा, यानी व्हीलिंग शुल्क।
  • राज्य डिस्कॉम को अपने प्रतिस्पर्धी को अपने बुनियादी ढांचे की पेशकश करने के लिए मजबूर किया जा रहा है!
  • प्रतिस्पर्धा की प्राकृतिक भावना के घोर उल्लंघन तथा घातक झटका!
  • रखरखाव, नुकसान और नेटवर्क विकास पर खर्च करने की जिम्मेदारी राज्य डिस्कॉम की होगी; जबकि निजी वितरकों पर उनके द्वारा बेची गई बिजली पर ही लाभ कमाने का भार डाला जा रहा है।
  • बिना किसी तकलीफ़ के सभी लाभ; निजी वितरकों के लिए बहुत फायदेमंद है।
  • कोई निकास बाधा नहीं; निजी वितरण कंपनी बिजली क्षेत्र में पिछले उदाहरणों की तरह अपने लिए उपयुक्त पाए जाने पर रातोंरात चल सकती है।
  • धारा 176 (2) (एसी) धारा 14 के खंड (बी) के तहत क्षेत्र के लिए पात्रता मानदंड तय करने और अधिसूचित करने के लिए केंद्र सरकार को अंतिम शक्ति देती है जो लाइसेंस देने के लिए है।
  • नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर (NLDC) यह सुनिश्चित करेगा कि “… ऐसे अनुबंधों के तहत कोई भी बिजली शेड्यूल या डिस्पैच नहीं की जाएगी, जब तक कि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित भुगतान की पर्याप्त सुरक्षा नहीं की गई हो।“
  • बिजली संविधान की 7वीं अनुसूची में है लेकिन केंद्र सरकार इस बिल के माध्यम से बिजली के मामले में निर्णायक शक्ति चाहती है जो देश के संघीय ढांचे के लिए अच्छा नहीं है।
  • केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पांडिचेरी, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, पंजाब, महाराष्ट्र, दिल्ली और छत्तीसगढ़ सहित बारह राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने विरोध किया है, लेकिन उनके विरोध को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है।
  • केरल, तेलंगाना और पंजाब विधानसभाओं ने एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित कर केंद्र से विधेयक को वापस लेने के लिए कहा है।
  • सांठगांठ वाले पूंजीपतियों के फायदे के लिए संविधान की भावना को बदला जा रहा है!
  • इस बिल को बिजली क्षेत्र में सुधार लाने का ढोंग किया जारहा है जबकि यह बिल राज्य के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों के मौत सुनिश्चित करेगा ।
  • शून्य निवेश के साथ बिजली वितरण के बहु-अरबों के बुनियादी ढांचे का उपयोग करके खुली लूट करने के लिए निजी खिलाड़ियों को रेड कार्पेट प्रस्तावित किया गया।
  • यह मुनाफे का निजीकरण और घाटे का राष्ट्रीयकरण है।
  • यह जन-विरोधी है; बढ़ी हुई दर, बढ़ा हुआ बिल, गांवों और दूरदराज के इलाकों में खराब सेवा। करोड़ों लोग बिजली से वंचित रहेंगे।
  • यह असामाजिक है; लोगों के पैसे से बनी लाखों करोड़ रुपये की संपत्ति को नष्ट करना और बेचना और सरकारी क्षेत्र में भविष्य के रोजगार को खत्म करना।
  • यह संघीय विरोधी है; केंद्र सरकार निर्णायक केंद्रीकृत शक्ति और वस्तुतः विद्युत के विषय को समवर्ती से केंद्रीय सूची में स्थानांतरित करना चाहती है।
  • यह मज़दूर विरोधी है; 15 लाख नियमित और 12 लाख ठेका मज़दूरों का रोजगार खतरे में होगा।
  • यह राष्ट्र-विरोधी है; राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली अनाज बैकअप और राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।

यह रैली NCCOEEE की छत्रछाया में भारत के सभी बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों को आह्वान करने का संकल्प लेती है;

NCCOEEE सहित सभी हितधारकों को भरोसे में लिए बगैर बिजली (संशोधन) विधेयक-2022 को हड़बड़ी में लाने की एकतरफा कोशिश के खिलाफ केंद्र सरकार को जोर-जोर से चेतावनी देते हैं, और भारत की सड़कें खामोश नहीं रहेंगी और देश भर के बिजली कर्मचारी और इंजीनियर खामोश नहीं रहेंगे। इस जन-विरोधी, समाज-विरोधी, मज़दूर-विरोधी और संघ-विरोधी, राष्ट्रीय विद्युत-विरोधी (संशोधन) विधेयक-2022 से देश की रक्षा के लिए देशव्यापी हड़ताल पर जाने को मजबूर होंगे।

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