संयुक्त राज्य अमेरिका में सत्तारूढ़ पार्टी के श्रमिक वर्ग समर्थक होने का भ्रम टूटा – रेलकर्मियों के हड़ताल करने के अधिकार पर हमला

कामगार एकता कमिटी (केईसी) संवाददाता की रिपोर्ट

अधिकांश देशों में जो राजनीतिक दल सत्ता में आता है, वह दावा करता है कि वह जन-समर्थक है। उनमें से कुछ इससे भी आगे जाकर दावा करते हैं कि वे मजदूर वर्ग के समर्थक हैं। परन्तु, यह भ्रम एक बार फिर टूट गया, इस बार संयुक्त राज्य अमेरिका में, जहाँ डेमोक्रेटिक पार्टी दावा करती रही है कि वह मज़दूर वर्ग की पार्टी है। वहां के राष्ट्रपति जो बिडेन, डेमोक्रेटिक पार्टी के हैं; वे बार-बार यह दावा करते रहे हैं कि वे “अमेरिकी इतिहास में सबसे यूनियन- समर्थक प्रशासन का नेतृत्व करने वाले सबसे यूनियन-समर्थक राष्ट्रपति हैं”।

परन्तु, उनकी हालिया कार्रवाई सचमुच रेलकर्मियों पर छूरी चलाती है। उन्होंने कांग्रेस के दोनों सदनों (अर्थात् अमेरिकी संसद के दोनों सदनों) द्वारा पारित कानून पर अभी-अभी हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें बड़ी माल रेल कंपनियों और 11 रेल यूनियनों के बीच एक अनुबंध लागू किया गया है। इस प्रकार, एक कलम के आघात से, इन यूनियनों ने अपना सबसे बुनियादी अधिकार खो दिया है: वह है हड़ताल करने का अधिकार।

रेल यूनियनें तीन साल से मालवाहकों के साथ एक अनुबंध पर बातचीत करने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी आखिरी हड़ताल 1992 में हुई थी; उस समय भी कांग्रेस (संसद) ने उन्हें काम पर वापस जाने के लिए मजबूर किया था। उस समय से, रेल कार्यबल को व्यवस्थित रूप से 500,000 से घटाकर केवल 130,000 कर दिया गया है। मालगाड़ी में अभी केवल 2 लोग काम करते हैं और कंपनियां उनकी संख्या और घटा कर “मेगा मॉन्स्टर ट्रेन” चलाने के लिए सिर्ग एक इंजीनियर रखना चाहती हैं।

सितंबर 2022 में राष्ट्रपति और श्रम सचिव (श्रम मंत्री) द्वारा किए गए अस्थायी समझौते को अस्वीकार करने के लिए सभी रेल कर्मचारियों के बहुमत का प्रतिनिधित्व करने वाली चार यूनियनों ने मतदान किया है।

आज रेलकर्मियों की मुख्य मांगें उनके काम के समय को निर्धारित करने और स्वास्थ्य और पारिवारिक प्रतिबद्धताओं के लिए वेतन सहित और अवैतनिक समय निकालने से संबंधित हैं।

हालांकि माल रेल कंपनियों के मुनाफ़ें आसमान छू रहे हैं और कर्मचारियों को वैतनिक अस्वस्थता अवकाश देने से शायद ही उनमें कोई ढील आएगी, रेल कंपनियां ऐसा करने से इनकार कर रही हैं। अगर वे अभी हड़ताल करते हैं, तो रेल यूनियनें कानून का उल्लंघन करेंगी और पूंजीवादी राज्य तंत्र के साथ-साथ माल ढुलाई कंपनियों का सामना करेंगी।

वैसे भी, 1926 का रेलवे श्रम अधिनियम हड़ताल के अधिकार को गंभीर रूप से सीमित करता है। श्रमिकों द्वारा उस अनुबंध को अस्वीकार करने के लिए वोट देने के बाद भी वह कांग्रेस को रेल कर्मचारियों पर एक अनुबंध लागू करने का कानून पारित करने की अनुमति देता है। पिछले 96 सालों में उसने ऐसा 18 बार किया है!

मजदूरों ने समझ लिया है कि यह और कुछ नहीं बल्कि राज्य प्रायोजित हड़ताल तोड़ना है ताकि सबसे बड़े निजी रेल कंपनियों के मालिक पूंजीपतियों को कर्मियों का अत्यधिक शोषण करने के लिए मदद मिल सके!

हमारे देश में भी इस बात की मान्यता बढ़ती जा रही है कि केंद्र में सत्तासीन कांग्रेस और बीजेपी जैसी पार्टियां भी उतनी ही मेहनतकश विरोधी हैं, जबकि कुछ और होने का वे दावा करती हैं। वे सिर्फ शासक पूंजीपति वर्ग के प्रबंधक हैं। उनके प्रबंधन के तरीके थोड़े अलग हैं, लेकिन उनका मूल एजेंडा एक ही है- बड़े पूंजीपतियों की सेवा करना। उन्हें बड़े इजारेदार कॉरपोरेट घरानों द्वारा दसियों हज़ार करोड़ रुपये की राशि दी जाती है, खासकर चुनावों के लिए। जब वे विपक्ष में होते हैं, तो उन्हें सत्ताधारी दल के खिलाफ बहुत शोर मचाना पड़ता है, ताकि लोग उन्हें दो बुराइयों से कमतर समझें। निर्वाचित होने पर उन्हें शासक वर्ग, विशेषकर बड़े कॉरपोरेटोंके के एजेंडे को लागू करना होता है।

यह सारा नाटक सभी पूंजीवादी देशों में खेला जाता है। ब्रिटेन में दो मुख्य अभिनेता तथाकथित लेबर पार्टी और कंज़र्वेटिव पार्टी हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में यह तथाकथित डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी हैं।

आइए हम पूरी दुनिया में मजदूरों की एकजुटता बनाने की भावना के साथ अमेरिकी रेल कर्मचारियों के संघर्ष का समर्थन करें। एक पर हमला सब पर हमला है!

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