चीनी कारखाने के निजीकरण के खिलाफ कर्नाटक के किसानों का विजयी संघर्ष

कामगार एकता कमिटी संवाददाता की रिपोर्ट

किसानों द्वारा शुरू किए गए अनिश्चितकालीन आंदोलन के कारण कर्नाटक सरकार को मांड्या की माईसुगर फैक्ट्री के निजीकरण की अपनी योजना को स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

मांड्या में ऐतिहासिक मैसूर शुगर कंपनी लिमिटेड (माईसुगर) कारखाने के निजीकरण के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ कर्नाटक में किसान एक महीने से अधिक समय से विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। माईसुगर राज्य की दर्जनों चीनी मिलों में सरकार द्वारा संचालित यह एकमात्र चीनी मिल है। भारी नुकसान के कारण सरकार द्वारा कारखाने को बंद कर दिया गया था। माईसुगर फैक्ट्री में सालाना 5,000 मीट्रिक टन गन्ने की पेराई करने की क्षमता थी। मांड्या और मैसूर जिलों के हजारों गन्ना किसान और श्रमिक अपनी आजीविका के लिए कारखाने पर निर्भर थे।

कर्नाटक सरकार ने पहले एक निजी कंपनी को कारखाने को 40 साल के लिए पट्टे पर देने की अपनी योजना की घोषणा की थी। परन्तु, किसानों ने इस फैसले का विरोध किया और सरकार से कारखाना चलाने के लिए कदम उठाने की मांग की। उन्होंने कहा कि यह सरकार का दायित्व है कि वह कारखाने को बेचने के बजाय उसे पुनर्जीवित करे।

किसानों के निरंतर विरोध ने सरकार को निजीकरण की अपनी योजना को स्थगित करने के लिए मजबूर किया है। मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि निजीकरण के बजाय कारखाने के तकनीकी और वित्तीय पहलुओं की समीक्षा करने और मशीनरी को अपग्रेड करके इसे आधुनिक बनाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाएगा। सरकार ने यह भी वादा किया है कि फैक्ट्री अगले सीजन से गन्ने की पेराई शुरू करेगी।
यह एक और उदाहरण है कि कैसे सरकार के पास शक्तिशाली लोगों के संघर्षों के सामने निजीकरण को निलंबित करने या वापस लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

 

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