सीटीयू और संयुक्त किसान मोर्चा के संयुक्त मंच का एकजुट संघर्ष के लिए आह्वान: मिशन इंडिया : लोगों को और देश को बचाने के लिए

सीटीयू और एसकेएम द्वारा संयुक्त रूप से जारी प्रेस वक्तव्य, 27.11.2021

“हम वर्तमान सरकार की विनाशकारी नीतियां, जो कि मेहनतकश लोगों के हितों के साथ-साथ राष्ट्रीय हित के खिलाफ है, उसके खिलाफ सामूहिक रूप से आवाज उठाने के लिए, नीतिगत शासन को निर्णायक रूप से हराने के लिए और परिस्थिति में बदलाव लाने के बारे में सचेत रूप से आगे बढ़ने के लिए अपने संघर्षों को संयुक्त रूप से और अधिक दृढ़ता से बढ़ाते रहेंगे। यही हमारा मिशन है, भारत के मजदूरों और किसानों का मिशन है।”

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, स्वतंत्र संघों और संयुक्त किसान मोर्चा के मंच की संयुक्त बैठक 25 नवंबर 2021 को आयोजित की गई थी।
संयुक्त बैठक में ट्रेड यूनियनों के जारी एकजुट संघर्षों और साथ-साथ संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में अपनी मांगों पर जारी संघर्ष को ध्यान में रखते हुए और साथ ही मजदूर-विरोधी, किसान-विरोधी, जन-विरोधी और भाजपा सरकार के राष्ट्र-विरोधी विनाशकारी नीतियों के खिलाफ भी मजदूरों और किसान आंदोलनों द्वारा एक-दूसरे के संघर्षों में लगातार सक्रिय एकजुटता, दोनों मोर्चों पर संघर्षों में ताकत पैदा करने और इन संघर्षों के लिए लोगों के व्यापक वर्गों का समर्थन प्राप्त करने पर संतोष और विश्वास व्यक्त किया गया ।
बैठक में यह भी बताया गया कि किसानों और श्रमिकों के लगातार दृढ़ संघर्ष, खासकर किसानों के एक वर्ष से चले आ रहे आंदोलन और उस संघर्ष को मिलनेवाले बढ़ते और व्यापक समर्थन, की वजहसे केंद्र सरकार को शायद अभी के लिए तीन प्रतिगामी किसान विरोधी कानूनों को ख़ारिज करने का निर्णय लेकर अपने कदम पीछे लेने पड़े हैं। बैठक में मौजूद सभी ने यह बात मानी कि उस सरकार के साथ संतुष्ट होने का कोई सवाल ही नहीं उठता जो बेशर्मी से लोक विरोधी है और पूंजीपतियों की दास है। यह सरकार सत्ता में आने के समय से ही लोगों की परेशानियों और पीड़ाओं के प्रति असंवेदनशील रही है, खासकर पुरे महामारी के समय में, और ये उनकी आर्थिक नीतियों, राजनैतिक शासन और सामाजिक मुद्दों पर निर्णयों से साफ़ देखने को मिलता है । इस बात पर भी ध्यान देना बनता है कि सरकार ने लगातार दृढ़ संगर्ष के चलते और पांच राज्यों- यूपी, उत्तराखंड, मणिपुर, गोवा और पंजाब में आनेवाले चुनावों की वजहसे जल्द से जल्द कृषि कानूनों को ख़ारिज करने के कदम उठाए हैं। सरकार के इसी चुनाव पूर्व अवसरवादी इरादों को पेट्रोल, डीजल, गैस, इत्यादि पर करों को मामूली रूप से कम करने के रूप में और श्रम संहिताओं के मामले में भी देखा जा सकता है, जहाँ उन्होंने अभी तक श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन को अधिसूचित नहीं किया है (जबकि कोड के तहत नियमों को तैयार करना और बाकी लगभग सब कुछ तय है)।
संयुक्त बैठक में कहा गया है कि चुनाव पूर्व अवसरवादी की हरकतें किसी भी तरह से सरकार के देश-विरोधी और जन-विरोधी षडयंत्रों की श्रृंखला को छुपा नहीं सकते हैं। सरकार ने हमेशा लोगों के जीवन और आजीविका और यहां तक कि बुनियादी अस्तित्व पर हमले किये हैं। कॉर्पोरटे/लॉबी को मज़बूत बनाने और मदत करने के लिए कई कानूनों और अध्यादेशों और नीतिगत निर्णयों को पारित किया है। सरकार ने कॉर्पोरेटों को रियायतें देकर, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और यहां तक कि सार्वजनिक उपयोगिताओं सहित लगभग हर चीज का आक्रामक निजीकरण करके, असहमति के लोकतांत्रिक अधिकार पर पाबंदी लगाकर, हर लोकतांत्रिक संघर्षों, जो किसान विरोधी, मजदूर विरोधी, जनविरोधी और यहां तक कि राष्ट्र विरोधी नीतियों के खिलाफ थे, उनपर राजद्रोह का खंड लागू करके लोगों पर बोझ लगातार बढ़ाया है। वे सभी कारपोरेट समर्थक हैं।
यह श्रमिकों के साथ-साथ किसानों के लिए भी अपनी बुनियादी मांगों को मजबूती से रखने का समय है। संयुक्त किसान मोर्चा को इसका श्रेय जाता है कि उसने दृढ़ संकल्प लिया कि जब तक कृषि कानूनों को संसद द्वारा औपचारिक रूप से खत्म नहीं किया जाता और अन्य समान रूप से महत्वपूर्ण मांगों जैसे, वैधानिक एमएसपी पर सभी फसलों की खरीद, बिजली शोधन विधेयक आदि, को खत्म करने तक आंदोलन जारी रहेगा। इसके साथ ही संयुक्त ट्रेड यूनियन मंच ने फैसला किया है कि वे अपनी अन्य मांगों को लेकर सरकार पर दबाव डालते रहेंगे। उनकी मांगें में 4 श्रम संहिताओं को पूरी तरह से खत्म करने, सरकार की एनएमपी सहित सभी सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण / निगमीकरण नीतियों को खत्म करने , सभी गैर-आयकर भुगतान करने वाले परिवारों को भोजन और आय सहायता के खिलाफ, सभी असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा योजना, और श्रमिकों का नियमितीकरण करना शामिल है। उनके एकजुट संघर्षों को आगे बढ़ना और 11 नवंबर 2021 को आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा संसद के आनेवाले बजट सत्र 2022 में 2 दिन देशव्यापी आम हड़ताल के तय किए गए फैसले को लागू करना के निर्णय भी लिए गए।

इसलिए, संसद द्वारा कृषि कानूनों को औपचारिक रूप से वापस किए जाने तक प्रतीक्षा करते हुए, हमारी बहुत सारी मांगों के लिए एकजुट संघर्ष जारी रहेगा: जैसे एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी, बिजली (संशोधन) विधेयक को रद्द करना, अजय मिश्रा को बर्खास्त करना (गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री), आंदोलन के दौरान किसानों पर लगाए गए आरोपों को वापस लेना, शहीद किसानों के परिवारों को मुआवजा और उनके लिए स्मारक के लिए जगह देना जो किसानों के लिए महत्वपूर्ण है, 4 श्रम संहिताओं को औपचारिक रूप से निरस्त करना, आवश्यक रक्षा सेवा अधिनियम को निरस्त करना, राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन और सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण/निगमीकरण को रोकना, आवश्यक वस्तुओं में मूल्य वृद्धि को वापस लेना, युवाओं को रोजगार, आदि जैसी मांगे शामिल हैं जो सामान्य रूप से श्रमिकों और लोगों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।
संयुक्त बैठक में एक दूसरे के संघर्षों के प्रति सक्रिय एकजुटता के संकल्प को दोहराया गया और साथ ही आने वाले दिनों में केंद्र की वर्तमान सरकार की जन-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी नीति के खिलाफ-मजदूर-किसानों के संयुक्त संघर्ष को मजबूत करने का फैसला किया गया।
संयुक्त बैठक में इस तथ्य को भी गंभीरता से लिया गया कि एक तरफ जहाँ भाजपा सरकार लोगों में उनके खिलाफ बढ़ते गुस्से की कोई परवाह ना करते हुए जन-विरोधी नीतियों को बेरहमी से लागू कर रही है, वहीँ दूसरी ओर वे अपने जहरीले विभाजनकारी एजेंडे का उपयोग लोगों का ध्यान हटाने और समाज में बंटवारा पैदा करने के लिए कर रही है। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), एनपीआर, लव जिहाद, तीन तलाक, धर्मांतरण विरोधी कानून, चीन की धज्जियां
उड़ाना, राम मंदिर, इस सभी मुद्दों के जरिये ऐसा उन्माद पैदा किया जा रहा है मानो हिंदू बनाम गैर हिंदू ही असली समस्या है! गोदी मीडिया, उनकी सोशल मीडिया ट्रोल सेना, जबरदस्ती राज्य तंत्र का इस्तेमाल, झूठी एफआईआर दर्ज करना, और यूएपीए का इस्तेमाल इस जहरीले विभाजनकारी प्रवचन के किसी भी विरोध को चुप कराने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में, केंद्र सरकार ने कई संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ जाकर संघवाद को रौंदा है जो भारतीय संघ का आधार है।
इसलिए एक विभाजन रेखा सामने आई है: जबकि एक ओर मेहनतकश लोग, किसान, श्रमिक और उनके परिवार, जो देश और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए धन का उत्पादन कर रहे हैं, संवैधानिक सीमाओं के भीतर रहकर एकजुट होकर सभ्य मानव अस्तित्व के अधिकारों की मांग कर रहे हैं और राष्ट्रीय हित की रक्षा और बचाव के लिए भी अपनी मांगें उठा रहे हैं, वहीँ दूसरी ओर भाजपा शासन, जो सबसे निष्ठापूर्वक कॉरपोरेट्स का प्रतिनिधित्व करता है, अपने कॉर्पोरेट-समर्थक एजेंडे को चलाने के लिए अपने हाथों में शासन तंत्र और शक्तियों का घोर दुरुपयोग करके, मूल संवैधानिक प्रावधानों को बेझिझक कुचल रहा है। साथ ही साथ समाज में जहरीले और विभाजनकारी व्यवधान पैदा कर रहे हैं। किसानों ने पिछले एक साल में 700 कीमती जानें खो देने के बावजूद और कई असंवैधानिक उकसावे और हमलों के बावजूद शांति बनाए रखी।
इस बैठक में संयुक्त किसान मोर्चा और सीटीयू/फेडरेशन/एसोसिएशन के संयुक्त मंच ने वर्त्तमान शासन व्यवस्था, जो दोनों राष्ट्रीय और अंतर-राष्ट्रीय कॉपोरेटों का काम करती है, उसका पर्दाफाश, अलग-थलग करने और बाहर करने के लिए एकजुट रूप से लड़ने का संकल्प लिया। साथ ही लोगों को बचाने का और हमारे प्यारे देश को आपदा और नष्ट होने से बचाने और सुरक्षित करने का भी दृढ़ संकल्प लिया।
मेहनतकश जनता के हितों के साथ-साथ राष्ट्रीय हित के खिलाफ जाने वाली वर्तमान सरकार की विनाशकारी नीतियों के खिलाफ़, नीतिगत शासन को निर्णायक रूप से हराने और स्थिति में बदलाव लाने के लिए सचेत रूप से हम अपने संघर्षों को संयुक्त रूप से और अधिक दृढ़ता से बढ़ाते रहेंगे। यही हमारा मिशन है, भारत के मजदूरों और किसानों का मिशन है।

“लोगों को बचाओ, राष्ट्र बचाओ”

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का संयुक्त मंच
और
संयुक्ता किसान मोर्चा

 

 

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