लक्ष्मी एस., (लोक राज संगठन) द्वारा
प्रिय महोदय / महोदया,
मैं यह पत्र 120 सांसदों द्वारा विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र के निजीकरण के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए प्रधानमंत्री को दिए गए अभ्यावेदन और इसे निजीकरण से बचाने के लिए लोगों के वीरतापूर्ण संघर्ष पर पहले के लेख के संबंध में लिख रही हूं।
मजदूरों और लोगों के संघर्ष को समर्थन देने और ऐसे प्रेरक संघर्ष से मिली सीख के सारांश के लिए धन्यवाद।
केंद्र सरकार स्टील प्लांट के निजीकरण के लिए इतनी दृढ़ है, लेकिन मजदूर भी निजीकरण का विरोध करने में उतने ही दृढ़ हैं। उन्होंने साहसपूर्वक संघर्ष को जारी रखा है। उन्होंने सभी लोगों का समर्थन इकट्ठा किया है और फौलाद जैसी एकता का निर्माण किया है।
उन्होंने दृढ़ता का प्रदर्शन किया है। कर्मचारी 300 दिनों से अधिक समय से लगातार भूख हड़ताल पर हैं। उनका संघर्ष धीरे-धीरे मजबूत हुआ है। यह केवल अधिक मजबूत हो रहा है।
उन्होंने निजीकरण के खिलाफ लड़ रहे सभी लोगों को एकजुट किया और उन्हें अपने संघर्ष, यानि कि सभी मेहनतकशों के संघर्ष का हिस्सा बनाया। उन्होंने उपभोक्ताओं, परिवारों/दोस्तों, महिलाओं और युवाओं को शामिल करने के महत्व को दिखाया है। उन्होंने 10,000 लोगों को शामिल करते हुए 10 किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला बनाई, और यह अद्भुत है! यह नारा की स्टील प्लांट सभी लोगों की संपत्ति है, लोगों के मन में अंकित है।
उन्होंने राजनीतिक नेताओं को भी निजीकरण के खिलाफ एक भूमिका लेने के लिए मजबूर किया है। और वे जानते हैं कि यह लड़ाई सिर्फ सत्ता में किसी एक पार्टी विशेष के खिलाफ नहीं है। लेकिन हम लोग हैं, जो पूंजीपति वर्ग के आक्रमण के विरुद्ध हैं।
केंद्र सरकार पिछले साल से स्टील प्लांट के निजीकरण की कोशिश कर रही है। मंत्रिमंडल ने अपनी मंजूरी दे दी है। लेकिन लोगों ने मंज़ूर नहीं किया है, इसलिए ऐसा नहीं हो सका। हम वास्तव में निजीकरण को रोक सकते हैं।
यह लोगों की एकता में शक्ति को दर्शाता है, और यही कारण है कि पूंजीपति वर्ग हम सभी को विभाजित रखने के लिए इतनी मेहनत करता है।
मज़दूर यूनियनों, संगठनों और पार्टी संबद्धता के बीच सभी मतभेदों से ऊपर उठ गए हैं और एक संयुक्त संघर्ष में एक साथ आए हैं। उन सभी नामों, यूनियनों, महासंघों और संघों के पीछे, हम सिर्फ अपने अधिकार को बचाने के लिए एक साथ लड़नेवाले लोग हैं।
उनके वीरतापूर्वक संघर्ष को और ताकत मिले!
-लक्ष्मी एस.
(लोक राज संगठन)