केंद्रीय सरकार द्वारा बिजली कर्मचारियों एवं इंजीनियरों के बिजली (संशोधन) बिल 2021 के विरोध में 4-दिवसीय सत्याग्रह के दमन के विषय में माननीय अभिमन्यू धनखड़, राष्ट्रीय महासचिव, AIFOPDE का पत्र, 5 अगस्त 2021

भारतीय बिजली परिवार के सभी सम्मानित कर्मचारीगण एवं अधिकारीगण

जैसा कि आप सभी को विभिन्न सोशल मीडिया माध्यमों से ज्ञात हो पा रहा है कि जंतर मंतर, संसद मार्ग, नई दिल्ली पर पिछले दो दिनों से बिजली बिल 2021 के विरुद्ध हमारे सत्याग्रह आंदोलन की अनुमति नहीं दी जा रही है।

NCCOEEE ने 4 दिन के सत्याग्रह आंदोलन के लिए सीमित समयसीमा व निश्चित संख्या के तहत धरने प्रदर्शन की अनुमति मांगी थी, जिसे किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र में तुरंत प्रभाव से मंजूरी दी जानी चाहिये थी।

हमें बताया जा रहा है कि इसे गृह मंत्रालय ने नामंज़ूर कर दिया है व इस प्रकार के किसी भी अन्य प्रदर्शन की मंजूरी नहीं दी है व सभी को सिलसिलेवार निरस्त कर दिया गया है।

इसके बावजूद हम लोग दिल्ली पहुंचने वाले बिजली नेतृत्व के साथ निश्चित स्थल पर पहुंच कर धरना प्रदर्शन की कोशिश करते हैं।

जहाँ हमारा पहले दिन का कार्यक्रम बैंक ऑफ बड़ौदा के परिसर के सामने सम्पन्न हुआ था, उस परिसर को किसी छावनी में तब्दील किया हुआ प्रतीत होता है, जिसे घेर कर अर्धसैनिक बल खड़े रहते हैं व उसके आसपास के 200 मीटर के दायरे में भी पुलिस के स्टार विभूषित अधिकारी व कर्मचारी लगातार गश्त करते हुए मौके पर पूरा दिन मौजूद रहते हैं।

आज एक पुलिस के उच्चाधिकारी की स्टेटमेंट को आपको बता रहा हूँ, “आज हम यहाँ कुछ भी नहीं करने देँगे, आज तो हमारे पास हैवी अरेंजमेंट है।”

इस बात से आपको अवगत करवाने का उद्देश्य किसी प्रकार के भय को प्रदर्शित करना नहीं है, बल्कि एक दूसरे पक्ष, सरकार के कमजोर आत्मबल को प्रदर्शित करना है जो कि केवल 150 बिजली कर्मियों की हुंकार के सामने चरमरा गया है, और कोरोना की स्थिति, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन क़ानून, व चल रहे मॉनसून सत्र का हवाला देते हुए अपने झूठे दम्भ को प्रदर्शित करते हुए लोकतंत्र की हत्या कर रही है।

ये सीधे तौर पर अघोषित तानाशाही है, वहाँ पुलिस पर भी अत्यधिक दबाव है, जिसे कई बार उनके साथ हुई बातों में स्पष्ट रुप में झलकता हुआ देखा जा सकता है।

यहाँ कुछ यक्ष प्रश्न हैं जिनके बारे में चिंतन एवं उनके उत्तर खोजना आवश्यक है, आप भी चिंतन कीजियेगा।

  1. क्या केवल 150 बिजली कर्मचारी कोरोना की स्थितियों के लिए खतरा हैं?
  2. क्या कोरोना और NDMA एक्ट राजनीतिक दलों व व्यक्तियों पर लागू नही होता है?
  3. क्या लोकतंत्र संगठनों व व्यक्तियोंको अपनी आवाज़ उठाने का अधिकार नहीं देता?
  4. क्या सरकार इन चार दिनों के दौरान 16 घंटो के लिये बिजली कर्मचारियोंके सार्वजनिक संवाद के दौरान उठने वाले संभावित सवालों से परेशान व व्याकुल है?
  5. क्या बिजली के उपभोक्ता व कर्मचारी बिजली के हित धारक (stakeholders) नहीं हैं?
  6. क्या सरकार अपने लिखे गए बिल के बारे में आलोचना व सम्भावित बुरे परिणामों के बारे में सुनना नहीं चाहती?
  7. क्या सरकार पूर्व में एकतरफा अलोकतांत्रिक तरीकों से बिलों को कानून बनाकर आत्म मंत्रमुग्ध है, और इस परिपाटी को ही लोकतंत्र में अपने खोखले बहुमत का डंका पीट कर आम लोगों के बीच स्वीकार्य करवाना चाहती है?
  8. क्या बिलके प्रारूप को सार्वजनिक रुप में जारी करना अब सरकार की नैतिक व संवैधानिक जिम्मेदारी की परिधि से बाहर हो चला है?
  9. क्या लगभग 350 साल अंग्रेजों की गुलामी झेलने के बाद तत्कालीन भारत सरकार ने 1948 में भारत के हर दूरदराज़ क्षेत्र, व प्रत्येक कोने तक सस्ती बिजली उपलब्ध करवाने की अपनी प्रतिबद्धता को बदल कर अपनी निष्ठा को मुट्ठीभर प्रभावशालियों के पास गिरवी रख कर सार्वजनिक व्यय व बिजली कर्मियों के खून पसीने और शहादतों से खड़े हुए हुए बिजली तंत्र को उनके व्यवसाय के लिये थाली में परोसकर देने के लिये बाध्य हो चुकी है?
  10. क्या सरकार सरलीकरण (Ease of doing Business) और मुद्रीकरण (monetization)  के नाम पर सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने व जनता के प्रति अपने सभी सरोकारों, शिक्षा,

स्वास्थ्य, बिजली, तेल, परिवहन, रोज़गार, बैंक, रेल जैसे अनेक सरोकारों को व्यवसायों का नाम देकर इनसे अपना पल्ला झाड़कर इन्हें तिलांजलि दे चुकी है?

साथियों, पिछले तीन दिनों से जो साथी पूरे भारत से यहां आ रहे हैं, वो सभी ये महसूस कर रहे होंगे कि दिल्ली में लोकतंत्र के मुख्य स्तंभों वैचारिक स्वतंत्रता, विरोध प्रदर्शनों का अधिकार, सामाजिक सरोकार, स्वतंत्र व निष्पक्ष मीडिया व विरोधी आवाज़ों पर बन्दूक का पहरा है, और इस बन्दूक के पहरे में अघोषित तानाशाही जारी है…….

जिसका विरोध आवश्यक तो है, परन्तु ये प्रश्न आपके मन मस्तिष्क के लिये छोड़ रहा हूँ।

अगर यहाँ तक पढ़ लिया है तो आपको हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करते हुए आपसे सही के पक्ष में खड़े होने व गलत का प्रबल विरोध करने की प्रत्याशा में आपके मन को उथल पुथल होने के लिये छोड़ रहा हूँ।

कल सुबह फिर दिल्ली पहुँचना है, सही को सही और गलत को गलत कहने के लिए।

धन्यवाद।

 

आपका शुभेच्छु

अभिमन्यु धनखड़

राष्ट्रीय महासचिव

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