मज़दूर एकता कमेटी के संवाददाता की रिपोर्ट
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और मज़दूर संगठनों के संयुक्त मंच के आह्वान पर 23 सितम्बर, 2024 को देशभर में चार श्रम संहिताओं का विरोध किया गया।
नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर चार श्रम संहिताओं के विरोध में काला दिवस मनाया गया। इस अवसर पर एक विरोध-सभा आयोजित की गई, जिसके आयोजक संगठन थे – एटक, सीटू, मज़दूर एकता कमेटी, हिन्द मज़दूर सभा, यू.टी.यू.सी., सेवा, ए.आई.यू.टी.यू.सी., ए.आई.सी.सी.टी.यू., इफ्टू, एल.पी.एफ., आई.सी.टी.यू., तथा जमुनापार ट्रेड यूनियन।
आंदोलित मज़दूरों ने अपना विरोध जाहिर करने के लिए, अपने बाजुओं पर काली पट्टी बांधी हुई थी। हाथों में प्लाकार्ड पकड़े हुए थे, जिन पर इस प्रकार के नारे लिखे थे – “चार श्रम क़ानून रद्द करो!”, “बैंक, रेल, बीमा, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा को बेचना बंद करो!”, “मज़दूरों और किसानों की दौलत लूटकर पूंजीवादी घरानों की तिजौरियां भरना बंद करो!”, “देश की दौलत पैदा करने वालों, देश का मालिक बनो!”, “भ्रष्टाचार पूंजीवाद का हमसफर है!”, “मज़दूरों को गुलामी की ओर धकेलने वाली श्रम संहिताओं को रद्द करो!”, आदि।
सभा को संबोधित करते हुए ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों ने बताया कि देशभर के मज़दूर एवं उनकी अगुवाई करने वाले श्रमिक संगठनों के कड़े विरोध के बावजूद, केंद्र सरकार ने चार श्रम कोड को कोरोना-काल में पारित किया था। यह वह वक्त था, जब कोरोना के नाम पर, मज़दूरों और किसानों को अपने ऊपर हो रहे जुल्मों व हमलों के विरोध में मिलकर आवाज़ उठाने, धरना प्रदर्शन करने आदि पर घोर पाबंदी थी। ऐसे समय में अध्यादेश के ज़रिए इन चार श्रम संहिताओं को लाया गया था।
वक्ताओं ने समझाया कि संविधान के प्रावधानों के अनुसार, सरकार चलाने वाली पार्टी को यह अधिकार प्राप्त है कि वह हुक्मरान पूंजीपतियों के अजेंडा को मनमाने तरीके़ से लागू करने के लिए, अध्यादेश के ज़रिये कोई भी मज़दूर-विरोधी, किसान-विरोधी, मेहनतकश-विरोधी क़दम लागू कर सकती है। सरकार तीन कृषि-विरोधी क़ानून लेकर आयी, देशी-विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों जैसे कि टाटा, बिरला, अंबानी, अदानी, अमेजन, वालमार्ट, कारगिल आदि के मुनाफ़ों को बढ़ाने के लिए।
पूंजीपतियों के मुनाफ़ों को बढ़ावा देने के लिए ही चार श्रम संहिताओं को लाया गया है। देशी-विदेशी इजारेदार पूंजीपतियों के हितों की सेवा करने वाली हमारी केन्द्र सरकार इन श्रम संहिताओं के ज़रिए देशभर के मज़दूरों को गुलामी की ओर धकेल रही है। इन श्रम संहिताओं के ज़रिए, देशी-विदेशी पूंजीपति मज़दूरों के श्रम का निरंकुश शोषण करके बेशुमार मुनाफ़ा कमा सकेंगे।
देश की राजधानी दिल्ली में मज़दूरों को घोषित न्यूनतम वेतन से बहुत कम वेतन पर काम करने के लिए बाध्य किया जा रहा है, ऐसा अनेक ट्रेड युनियनों के प्रतिनिधियों ने कहा। सरकारी अधिकारियों की पूरी जानकारी के साथ, उनकी आखों के सामने श्रम क़ानूनों का सरासर उल्लंघन होता है। काम की जगह असुरक्षित होने के चलते आए दिन मज़दूर आग और दूसरी दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं, जिनमें वे मारे जाते हैं या घायल हो जाते हैं। 12-14 घंटे काम करवाना अब स्वाभाविक बन गया है। ईएसआई तथा प्रोविडेंट फंड, ग्रेच्यूटी, आदि जैसी सामाजिक सुरक्षा अधिकांश मज़दूरों को उपलब्ध नहीं हैं। अनौपचारिक क्षेत्र में तो कोई श्रम क़ानून लागू ही नहीं होता है। विभिन्न राज्यों में भी मज़दूरों का ऐसा ही हाल है।
जनसभा में भाग लेने वाले संगठनों ने मांग की कि निजीकरण पर रोक लगायी जाये, रोज़गार की गारंटी दी जाये, कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित की जाये, समान काम के लिये समान वेतन दिए जायें, महंगाई पर रोक लगाई जाये, घोषित न्यूनतम वेतन सभी मज़दूरों के लिए सुनिश्चित किये जायें, स्कीम मज़दूरों को क़ानूनी तौर पर स्थापित वेतन और सामाजिक सुरक्षा दिए जायें, आदि।
सहभागी संगठनों ने मज़दूरों, किसानों और सभी मेहनतकशों के अधिकारों की हिफ़ाज़त में संघर्ष को तेज़ करने का संकल्प लिया। ‘मज़दूर एकता जिंदाबाद!’, ‘इंक़लाब ज़िदाबाद!’, इन नारों के साथ सभा का समापन हुआ।