“ऑल इंडिया निजीकरण विरोधी फोरम (AIFAP)” की रविवार, 2 जनवरी 2022 को आयोजित मासिक बैठक में कोचीन रिफाइनरी कर्मचारी एसिओसेशन (CREA) – इंटक के महासचिव श्री प्रवीण कुमार के भाषण के प्रतिलेख का अनुवाद

शुभ संध्या प्रिय नेताओं और दोस्तों। आपको नए साल की शुभकामना देने के बजाय, मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि अगर हम एकजुट रहें, अगर हम एकजुट होकर लड़ते हैं, तो आने वाले वर्ष को एक अच्छा बना सकते हैं। मैं प्रवीण कुमार, कोचीन रिफाइनरी कर्मचारी संघ का महासचिव हूं, जो BPCL कोचीन रिफाइनरी, केरल में कार्यरत प्रमुख यूनियनों में से एक है। जैसा कि आप जानते हैं, BPCL कोचीन रिफाइनरी भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी रिफाइनरी है। यह भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड का एक हिस्सा है, जो भारत सरकार की 52.98% शेयरधारिता के साथ एक महारत्न कंपनी है। यह सार्वजनिक क्षेत्र की दूसरी सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी है। सार्वजनिक क्षेत्र की अन्य कंपनियों की तरह इसे भी बिक्री के लिए रखा गया है। नवंबर 2019 में कैबिनेट कमेटी ने BPCL के शेयरों को निजी कंपनियों को बेचने के फैसले को मंजूरी दी थी।
आंदोलन की गतिविधियों में जाने से पहले, यह समझाने से पहले, मैं आपको हमारे संगठन के बारे में अधिक जानकारी देता हूं। आप सभी जानते होंगे कि आप हमारे पेट्रोल पंपों से ईंधन भर रहे हैं, लेकिन आप भारत पेट्रोलियम से जुड़ी संपत्तियों के बारे में ज्यादा नहीं जानते होंगे। भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन की तीन रिफाइनरियां हैं। इससे पहले, तीन रिफाइनरी थीं: कोचीन रिफाइनरी, मुंबई रिफाइनरी और असम में नुमालीगढ़ रिफाइनरी। इस निजीकरण की घोषणा के बाद सरकार ने नुमालीगढ़ रिफाइनरी को BPCL से अलग कर दिया है। यह अभी भी ऑयल इंडिया लिमिटेड, इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड और असम सरकार के एक संघ के साथ सार्वजनिक क्षेत्र में है। इससे पहले, असम सरकार, असम के लोगों के लिए कुछ विशेषाधिकार थे। सरकार कहती है कि उसका सम्मान करते हुए उन्होंने इसे निजीकरण से अलग कर दिया है। उस समय मध्य प्रदेश में भारत ओमान रिफाइनरीज लिमिटेड, BORL बीना रिफाइनरी थी। यह वास्तव में एक संयुक्त उद्यम था। अब, ओमान के सभी शेयर भी BPCL द्वारा खरीदे गये हैं, और अब यह BPCL की सहायक कंपनी बन गई है। इसके अलावा, इसका एक बड़ा मार्केटिंग नेटवर्क है, पूरे भारत में 15,000 से अधिक आउटलेट हैं। यानी बाजार का 25 फीसदी हिस्सा BPCL से जुड़ा है, LPG समेत फ्यूल आउटलेट 25 फीसदी भारत पेट्रोलियम से जुड़े हैं। यह सार्वजनिक क्षेत्र की दूसरी सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी है। इसकी कुल शोधन क्षमता 36.3 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष है। तो, पाइपलाइनों, विमानन ईंधन भरने वाले स्टेशनों, LPG-फिलिंग स्टेशनों सहित कुल संपत्ति है, और भारत में और बाहर इसकी बहुत सी संयुक्त उद्यम कंपनियां हैं। तो इन सबको मिलाकर इसकी एसेट वैल्यू 10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा आंकी जाती है।
भारत पेट्रोलियम पहले एक निजी क्षेत्र की कंपनी थी। 1976 में श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा इसका राष्ट्रीयकरण किया गया था। इरादा यह था कि पेट्रोलियम शोधन और वितरण जैसे रणनीतिक क्षेत्र – ये सभी रणनीतिक क्षेत्र हैं जो भारत सरकार के नियंत्रण में होने चाहिए। इसी मंशा से श्रीमती गांधी ने इस कंपनी का राष्ट्रीयकरण किया। उस समय से इसकी क्षमता केवल 2.5 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष थी। उस क्षमता से इस 36.3 मिलियन मीट्रिक टन क्षमता तक, उस यात्रा में, यह कंपनी कभी घाटे में नहीं गई। सार्वजनिक क्षेत्र में, हर बार इसने अपने लाभ में वृद्धि की और सदैव लाभ कमाने वाली कंपनी बनी रही। उसका पिछले साल का लाभ लगभग रु.19,045 करोड़ था। तो, यह एक बहुत बड़ी लाभ कमाने वाली कंपनी है, और इस कंपनी को किसी भी निजी खिलाड़ी को बेचने का कोई औचित्य नहीं है।
वर्तमान सरकार सभी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का विनिवेश या बिक्री करना चाहती है, इसलिए यह उनकी नीति का एक हिस्सा है। हमें नहीं लगता कि यह किसी वित्तीय संकट के कारण या किसी कल्याणकारी गतिविधियों के लिए पैसा बनाने के लिए है कि सरकार इस सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी को बेच रही है। यह उनकी नीति है।
हम ऐसा क्यों कह रहे हैं कि पहले भी 2003 में BPCL के निजीकरण की कोशिश की गई थी। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे और उन्होंने BPCL का निजीकरण करने की कोशिश की थी। तभी किसी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कार्यकर्ताओं की कई आंदोलन गतिविधियां हुईं। इसके अलावा, किसी ने उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और एक अनुकूल आदेश प्राप्त किया। बर्मा शेल अधिग्रहण अधिनियम (1976) भारत पेट्रोलियम के राष्ट्रीयकरण का प्रमुख कारक था। उसके आधार पर, भारत सरकार संसद के दोनों सदनों से अनुमोदन प्राप्त किए बिना BPCL का निजीकरण नहीं कर सकती है। अधिग्रहण अधिनियम में उस तरतूद का फ़ायदा उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने भारत पेट्रोलियम के निजीकरण की अनुमति नहीं दी। उस समय सरकार के पास राज्यसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं था, इसलिए उन्होंने इसे वहां छोड़ दिया।
लेकिन, बाद में 2016 में, उन्होंने अधिग्रहण अधिनियम को निरस्त कर दिया। सरकार के सामने BPCL के निजीकरण का रास्ता साफ है। जिस दिन से सरकार ने BPCL के विनिवेश के फैसले की घोषणा की, BPCL के कर्मचारी इस फैसले के खिलाफ निरंतर संघर्ष, निरंतर आंदोलन में हैं। लेकिन, हमने कोचीन रिफाइनरी के सामने लगभग 135 दिनों तक लगातार सत्याग्रह / धरना दिया, और हम राहुल गांधी, सीताराम येचुरी जैसे राष्ट्रीय नेताओं को ला सके, और कई राष्ट्रीय और राज्य स्तर के नेताओं ने संघर्ष में भाग लिया। COVID प्रभाव के कारण, निरंतर धरना 2020 में मार्च के अंत में रुकने के लिए मजबूर किया गया था। लेकिन हमने अपना संघर्ष मौन मोड में जारी रखा, जैसे भूख हड़ताल और आंतरिक आंदोलन।
हमने अपने पिछले संघर्षों का विश्लेषण किया, और हमने महसूस किया कि मजदूरों या श्रमिकों अकेले आंदोलन परिणाम नहीं ला सकते क्योंकि यह एक जन आंदोलन बन जाना चाहिए, तभी कुछ परिणाम होगा। लेकिन सरकार जानबूझकर जनता को गुमराह कर रही है। विशेष रूप से पेट्रोलियम क्षेत्र में, आप लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि ईंधन की कीमत हर दिन बढ़ रही है और अब यह 110 या कुछ जगहों पर 104 रुपये हो गई है। बहुत से लोग सोचते हैं कि ईंधन की कीमतों में इस वृद्धि के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियां दोषी हैं, और सरकार ऐसे संकेत भी दे रही है। तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अखबारों और मीडिया में बयान दिया कि इन तेल कंपनियों के निजीकरण से उपभोक्ताओं के लिए और अवसर आएंगे, यानी उन्हें बेहतर कीमतों पर ईंधन मिलेगा। लेकिन सभी को पता होना चाहिए कि पेट्रोल या डीजल की रिफाइनरी गेट की कीमत अभी भी 40 रुपये से कम है। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किए गए उत्पाद शुल्क और अन्य करों के कारण, आपको यह 110 या 105 रु. में मिल रहा है। यही सच है। हमें सबसे बड़ी चुनौती है इस आंदोलन को जनता तक ले जाने की, उन्हें शिक्षित करना है, हमें उन्हें यह विश्वास दिलाना है कि BPCL का निजीकरण विशेष रूप से BPCL के स्थायी कर्मचारियों के लिए मामला नहीं है, बल्कि इससे नुकसान है समुदाय के लिए, यह जनता के लिए एक नुकसान है।
BPCL के निजीकरण का मुख्य प्रभाव, हमने इसे नौकरी के अवसरों के नुकसान के रूप में सूचीबद्ध किया है। BPCL के निजीकरण के इस फैसले की घोषणा के बाद से BPCL में कोई भर्ती नहीं हुई है, पिछले 2 साल से एक भी भर्ती नहीं हुई है। उसके बाद, कई सेवानिवृत्त हुए और कंपनी ने कई कर्मचारियों को VRS दिया; जबरन VRS लेने को कहा। इसलिए, मज़दूरों की संख्या कम हो रही है और वे विभिन्न क्षेत्रों में आउटसोर्सिंग के लिए जा रहे हैं। मुख्य प्रभाव यह है कि नौकरी के अवसर कम हो रहे हैं। जब भी आउटसोर्सिंग की जाती है, एक छोटा सा उदाहरण: पिछले महीने, कोचीन रिफाइनरी में कुछ क्षेत्र आउटसोर्स किये गये थे, और जहां स्थायी कर्मचारी काम कर रहे थे, वहां अनुबंध कर्मचारियों की प्रतिनियुक्ति की गयी। हमें कंपनी से मिली जानकारी के अनुसार कंपनी प्रति कर्मचारी 40,000 रुपये खर्च कर रही है, लेकिन अनुबंध कर्मचारी को केवल 13,000 रुपये मिल रहे हैं। बीच-बीच में कमीशन ठेकेदार को और शायद कई अन्य क्षेत्रों में जा रहा है। इसलिए, उचित वेतन के साथ काम करने का अवसर कम होता जा रहा है।
फिर, सामाजिक और आर्थिक प्रभाव भी होते हैं, क्योंकि BPCL में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी होने के कारण, 50% आरक्षण श्रेणी के लोग भी उसमें शामिल होते हैं। आम तौर पर, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग जिन्हें बेहतर नौकरी पाने का अवसर मिलेगा, वह BPCL की इस रिफाइनरी के निजीकरण से खत्म हो जाएगा। दूसरी बात यह है कि लोगों को आउटलेट, पेट्रोल पंप देने में भी आरक्षण के नियमों का पालन किया जाता है। शैक्षिक या आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों को भी इस तरह के व्यावसायिक उद्यम प्राप्त करने के अवसर मिल रहे हैं, और इस प्रकार, हमारे नेताओं ने हमारी आरक्षण प्रणाली तैयार करते समय जो परिकल्पना की थी, वह इस कंपनी के निजीकरण से पूरी नहीं होगी।
पहले हमें LPG के लिए सब्सिडी मिलती थी। हमारे प्रधान मंत्री ने अपने भाषणों में हमेशा प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना का उल्लेख किया है। इसके लिए, BPCL द्वारा पिछले साल 651 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। तो, एक निजी खिलाड़ी निश्चित रूप से इस तरह का खर्च नहीं करेगा। अधिक मूल्य वर्धित उत्पादों का उत्पादन किया जायेगा, LPG और बिटुमेन जैसे उत्पाद जिनका उपयोग हम सड़क बनाने के लिए करते हैं, परन्तु वे लाभदायक उत्पाद नहीं हैं। लेकिन, एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी की सामाजिक प्रतिबद्धता के कारण, हम उस तरह के उत्पादों का उत्पादन कर रहे हैं। यदि आप रिलायंस की जांच करें, तो रिलायंस के पास भारत में सबसे बड़ी रिफाइनरी है, वे एक टन LPG का उत्पादन नहीं कर रहे हैं, और बिटुमेन भी वे उत्पादन नहीं कर रहे हैं। वे इन उत्पादों को अधिक मूल्य वर्धित उत्पादों में परिवर्तित कर रहे हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में उस तरह की कारोबारी सोच नहीं है, फिर भी हम उचित मुनाफा कमा रहे हैं, लेकिन वह अवसर भी खो जाएगा।
अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां जैसे HOC (हिंदुस्तान ऑर्गेनिक केमिकल्स), FACT और कोचीन बंदरगाह, निश्चित रूप से, वे BPCL के उत्पादों के साथ जीवित हैं। कोई भी निजीकरण, परिदृश्य को बदल देगा और उनका अस्तित्व भी मुश्किल दौर में होगा। IOC और HPCL इस क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की शेष कंपनियां होंगी। इसलिए, यदि किसी निजी खिलाड़ी को BPCL के ब्रांड मूल्य का उपयोग करने का अवसर मिला है, तो वे निश्चित रूप से बाजार पर हावी होंगे और IOC और HPCL का अस्तित्व भी संकट में पड़ जाएगा। अंत में, इससे उन कंपनियों का भी निजीकरण हो जाएगा।
इसके अलावा, हम जो भारी मुनाफा कमा रहे हैं, उसका एक हिस्सा कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) फंड के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हर साल BPCL अपनी CSR गतिविधियों पर औसतन 200 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। निजी कंपनियों से हम इस तरह की 651 करोड़ परियोजनाओं की उम्मीद नहीं कर सकते। रिलायंस, अदानी और अन्य निजी कंपनियां अधिक मुनाफा कमा रही हैं, लेकिन हमें उनकी तरफ से कोई CSR गतिविधियां नहीं दिख रही हैं। वे CSR गतिविधियों को नाम मात्र के लिए करेंगे, ईमानदारी से नहीं करेंगे।
निजीकरण के खिलाफ इस आंदोलन के सिलसिले में हमने चार राष्ट्रीय हड़तालें कीं। सभी हड़तालों में प्रबंधन कर्मचारियों के प्रति अच्छा रवैया नहीं अपना गया है। हर दिन के लिए जो हम हड़ताल कर रहे हैं, वे हमसे 4 दिन का वेतन काट लेते हैं। तो, इन आंदोलनों के कारण अब लगभग 1 महीने का वेतन प्रबंधन के पास है। मार्केटिंग में वे कोई भर्ती नहीं कर रहे हैं लेकिन वे लोगों पर VRS लेने का दबाव बनाते हैं और उन्हें यह कहकर धमकाते हैं कि वे तबादला कर देंगे। कई अन्य तरीकों से, वे मार्केटिंग सेक्शन के कर्मचारियों की एक प्रमुख श्रेणी के लिए VRS लेने में सफल रहे हैं।
BPCL के कर्मचारियों के लिए हमारा दीर्घकालीन वेतन समझौता पिछले 4 साल से लंबित है। सभी पेट्रोलियम कंपनियों, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने अपना वेतन समझौता संशोधन पूरा कर लिया है। लेकिन, अकेले BPCL में, और सिर्फ अकेले श्रमिक वर्ग के लिए, यह संशोधन पूरा नहीं हुआ है क्योंकि प्रबंधन कुछ ऐसे खंड पेश करना चाहता है जो BPCL के निजीकरण के अनुकूल हों। मजदूर मानने को तैयार नहीं हैं, इसलिए हम सरकार से लड़ रहे हैं, बिना वेतन लिए ही प्रबंधन से लड़ रहे हैं। पिछले 5 साल से वेतन संशोधन नहीं किया गया है। वे हमारे वेतन समझौते में जो शर्त लगाने की कोशिश कर रहे हैं, वह यह है कि 10 साल के समझौते में, प्रबंधन को हर 3 साल में इसकी समीक्षा करने की शक्ति मिलनी चाहिए। यह भविष्य के निजी कॉर्पोरेट प्रबंधन के लिए है। जब वे कार्यभार संभालते हैं, तो उन्हें श्रमिकों की सभी सेवा शर्तों को बदलना पड़ता है, और उन्हें समाप्त करने की आवश्यकता होती है, या उन्हें श्रमिकों की संख्या में कटौती करने की आवश्यकता होती है।
दूसरी बात यह है कि भविष्य के खरीदार सरकार के साथ जो भी शेयर खरीद समझौता करते हैं, उसे भी हमें स्वीकार करना होगा। केवल वेतन संशोधन के लिए कर्मचारी इस तरह की बातों को मानने को तैयार नहीं हैं। इसलिए, कोचीन रिफाइनरी के इतिहास में पहली बार LTS PGIG कोर्ट के सामने है, यानी ट्रिब्यूनल के सामने है, और हम इसके लिए लड़ रहे हैं और हम धैर्यपूर्वक इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। कोरोना के बाद दूसरी बार हम अपने आंदोलन की गतिविधियों में सुधार कर रहे हैं और इस बार हम मुख्यधारा के राजनीतिक दलों को भी शामिल करने का प्रयास कर रहे हैं। हम BPCL के निजीकरण के प्रभावों से जनता को अवगत कराने और उन्हें इन आंदोलन गतिविधियों के हिस्से के रूप में लाने के लिए वार्ड स्तर, पंचायत स्तर और जिला स्तर पर, विभिन्न स्तरों पर समितियां बना रहे हैं और सम्मेलनों का आयोजन कर रहे हैं।
अब हर कोई जानता है कि सरकार मजदूर वर्ग के खिलाफ है। नए श्रम संहिता के साथ, उन्होंने इसे घोषित कर दिया है। सभी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बिक्री के लिए रखा गया है, और हर जगह कुछ आंदोलन की गतिविधियां चल रही हैं। समय की मांग है कि विभिन्न क्षेत्रों में आंदोलन की गतिविधियों को एक साथ किया जाए और इसे एक संयुक्त आंदोलन बनाया जाए, तभी यह परिणाम देगा, यही हमारी सोच है। कामगार एकता कमिटी इस दिशा में अच्छा काम कर रही है, और हम उम्मीद करते हैं कि जिस तरह किसानों की हड़ताल में हुआ, उसी तरह मजदूर भी सरकार को सही तरीके से सोचने के लिए मजबूर बनाने में कामयाब होंगे। मुझे आपके साथ बातचीत करने का अवसर देने के लिए मैं सभी को धन्यवाद देता हूं। धन्यवाद।

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