5 मार्च को अहमदाबाद में अखिल भारतीय बीमा कर्मचारी संघ (AIIEA) द्वारा LIC IPO के खिलाफ राज्य स्तरीय सम्मेलन

एलआईसी का आंशिक निजीकरण एक राष्ट्रविरोधी साजिश है।

श्री जैमिन देसाई, संयोजक, सूरत ट्रेड यूनियन काउंसिल (एसटीयूसी) से प्राप्त रिपोर्ट

एआईआईईए द्वारा आज आयोजित राज्य स्तरीय सम्मेलन में उठाए गए मुख्य बिंदु:

(1) एलआईसी की पूंजी बेचने का फैसला तानाशाही है। निगम के कर्मचारियों और अधिकारियों, उपभोक्ता संरक्षण बोर्डों और करदाता बोर्डों के साथ-साथ विपक्ष के साथ बिना किसी चर्चा के पूंजी बेचने का निर्णय लिया गया है।

(2) देश में 23 जीवन बीमा कंपनियां हैं और फिर भी जीवन बीमा बाजार में एलआईसी का योगदान 65% है। इससे यह भी पता चलता है कि लोगों का एलआईसी पर भरोसा है।

(3) यह एक भ्रम है कि निजी बीमा कंपनियां कुशलता से काम करती हैं। 1991-2019 के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका में 72 बीमा कंपनियां दिवालिया हो गईं। जब भारत में ऐसा होगा तो पॉलिसीधारकों का क्या होगा?

(4) भारत के संविधान के अनुच्छेद 39 में कहा गया है कि विकलांग, बीमार और बुजुर्गों को राज्य सहायता प्राप्त करने का अधिकार है। 1956 में 245 निजी कंपनियों को मिलाकर एलआईसी की स्थापना की गई थी। अब, यदि निजीकरण धीरे-धीरे आगे बढ़ता है, तो वह उद्देश्य विफल हो जाएगा।

(5) सरकार एलआईसी की पूंजी बेचकर एक लाख करोड़ रुपये प्राप्त करना चाहती है। वह देश के लोगों से उधार लेकर भी इसे प्राप्त कर सकती है। अगर सरकार 50 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति छोड़ी मृतक की संपत्ति पर 25 प्रतिशत विरासत कर लगाती है, तो भी कुछ वर्षों में राशि एकत्र होने की संभावना है।

(6) यदि सरकार पारदर्शिता और जवाबदेही लाना चाहती है, तो उसे एलआईसी के बोर्ड में नागरिक समाज, उपभोक्ता संरक्षण समूहों और कर्मचारी संघों के नेताओं को शामिल करना चाहिए। इसके लिए पूंजी बेचने की जरूरत नहीं है।

(7) यह एलआईसी को धीरे-धीरे निजी हाथों में ही नहीं बल्कि विदेशी कंपनियों में भी स्थानांतरित करने की साजिश है।

(8) निजी बीमा कंपनियां लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं हैं। सरकारी बीमाकर्ता संसद के प्रति और परोक्ष रूप से लोगों के प्रति जवाबदेह होते हैं। संसद में एलआईसी पर चर्चा करके और कर्मचारियों और उपभोक्ता संरक्षण समूहों को एक साथ लाकर एलआईसी के प्रदर्शन में सुधार किया जा सकता है। यह विचार कि कामकाज में सुधार तभी होता है जब पूंजी बेची जाती है, बेतुका है। समस्या यह है कि मोदी सरकार चर्चा और संवाद में विश्वास नहीं करती है।

(9) अर्थव्यवस्था का एक भी बड़ा क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसमें एलआईसी द्वारा हजारों करोड़ रुपये का निवेश न किया गया हो। यह एलआईसी का योगदान है फिर इसे निजी बनाने के कदम को देशद्रोह कहा जाना चाहिए ।

(10) एलआईसी की पूंजी बेचना राजनीतिक रूप से अनैतिक है। पूंजी बेचनी है तो न केवल कर्मचारियों और पॉलिसीधारकों को, बल्कि देश के सभी नागरिकों को शेयर दें, क्योंकि एलआईसी देश के सभी नागरिकों के टैक्स के पैसे से पैदा हुई है।

– समर्थक, हेमंत कुमार शाह

 

 

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