अशोक कुमार, संयुक्त सचिव, कामगार एकता कमिटी (KEC) द्वारा
“भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण – क्यों, कैसे और कितनी दूर?” पर एक हालिया पेपर का बड़े पूंजीपतियों द्वारा नियंत्रित मीडिया द्वारा दो कारणों से व्यापक प्रचार किया गया था। पहला कारण है उनकी सिफारिश कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को छोड़कर, जो अभी सरकारी स्वामित्व में रह सकती है, अन्य सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) का निजीकरण किया जाना चाहिए। दूसरा कारण है उसके लेखक जिन्होंने इसे लिखा है – पूनम गुप्ता, नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) की महानिदेशक और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) की सदस्य और अरविंद पनगढ़िया, एक अमरिकी विश्वविद्यालय में भारतीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर और 2015 से 2017 तक नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष।
यह दावा करते हुए निजीकरण की सिफारिश की गई है कि निजी क्षेत्र के बैंकों ने पीएसबी की तुलना में “बेहतर प्रदर्शन” किया है और पीएसबी ने “अर्थव्यवस्था और उनके हितधारकों की पूरी क्षमता से सेवा नहीं की है।”
लेखकों के लिए, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में करोड़ों छोटे जमाकर्ता, जिन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा सेवा दी जाती है, हितधारक नहीं हैं। न ही लाखों बैंक कर्मचारी हैं। एकमात्र हितधारक जो चिंता का विषय प्रतीत होते हैं, वे बड़े पूंजीपति हैं जो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को खरीदने में रुचि रखते हैं।
तथ्य कि भारत में 25 निजी बैंकों को विफलता से बचाने के लिए पीएसबी के साथ विलय करना पड़ा, यह दर्शाता है कि निजी क्षेत्र के बैंकों के बेहतर प्रदर्शन का दावा निराधार है। हाल ही में मार्च 2020 में भी एक निजी बैंक को एक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक द्वारा बचाया गया!
जब से सार्वजनिक क्षेत्र बैंक अस्तित्व में आये हैं, आरबीआई द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र बैंक को विफल होती निजी बैंक को अपने कब्जे में लेने और इसके नुकसान को अवशोषित करने के लिए मजबूर कर निजी बैंकों की विफलताओं को टाला गया है।
निजी बैंकों के वैश्विक खैरात की संख्या – 1990 में बचत और ऋण बैंकों का संकट, 2007 से 2010 के वित्तीय संकट के दौरान बैंकों की विफलता और उनका विलय और उसके बाद यूरोप में बैंक संकट – यह दर्शाता है कि निजी बैंकों का बेहतर प्रदर्शन एक मिथक है।
बार-बार यह देखा गया है कि केवल लाभ को अधिकतम करने के लक्ष्य से संचालित निजी बैंकिंग लोगों की बचत की सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है।
जहाँ बैंक कर्मचारी पीएसबी के निजीकरण के लिए सरकार के हर कदम का कड़ा विरोध कर रहे हैं, अब समय आ गया है कि अन्य सभी कर्मचारी और जमाकर्ता उनके साथ जुड़ें और पीएसबी के मजदूर-विरोधी, जन-विरोधी निजीकरण को हराएं।