आयुध कारखानों के निगमीकरण को उलटने की जरूरत है

कामगार एकता कमिटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट

रक्षा पर हाल की 38वीं स्थायी समिति की रिपोर्ट (2022-2023) से यह और भी स्पष्ट हो जाता है कि आयुध कारखानों के निगमीकरण का वास्तविक उद्देश्य उनका निजीकरण करना है। उस उद्देश्य की ओर पहले कदम के रूप में आयुध कारखानों को ऑर्डर की कमी की जा रही है। निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए उन्हें टेंडर में हिस्सा नहीं लेने दिया जा रहा है। कुछ वर्षों के भीतर अधिकांश आयुध निर्माणी निगम बीमार उद्यम हो जाएंगे। सरकार तब इन निगमों की खराब वित्तीय स्थिति का उपयोग उन्हें औने-पौने दामों पर बेचने के लिए करेगी।

घोषित उद्देश्य था “नव निर्मित डीपीएसयू में तत्कालीन ओएफबी (आयुध निर्माणी बोर्ड) का पुनर्गठन, आयुध कारखानों को उत्पादक और लाभदायक संपत्तियों में बदलना, प्रतिस्पर्धा बढ़ाने और दक्षता में सुधार करना। अधिक कार्यात्मक और वित्तीय स्वायत्तता के साथ, ये नए डीपीएसयू देश के साथ-साथ विदेशों में भी नए बाजारों की खोज करेंगे।” यह केवल निगमीकरण के लिए समर्थन जुटाने के लिए किया गया था। निगमीकरण के एक साल के भीतर जो किया जा रहा है, वह जो कहा गया था, उसके ठीक विपरीत है।

रिपोर्ट से पता चलता है कि अगले 5 वर्षों के लिए तत्कालीन ओएफबी से तैयार किए गए नव निर्मित 7 डीपीएसयू के लिए ऑर्डर बुक की स्थिति बहुत ही निराशाजनक है। सभी 7 निगमों के लिए वर्ष 2023-24 के लिए ऑर्डर बुक की स्थिति केवल 16,694.58 करोड़ है। आयुध कारखानों का निगमीकरण करते हुए सरकार ने दावा किया था कि ऐसा करने से आयुध कारखानों के पास 30,000 करोड़ रुपये की ऑर्डर बुक होगी!

ऑर्डर बुक केवल MIL और AVNL कंपनियों के लिए सुविधाजनक है, जबकि 8 कारखानों वाली AWEIL पर केवल 1915 करोड़ रुपये के ऑर्डर हैं। TCL और YIL सबसे खराब स्थिति में हैं क्योंकि 4 कारखानों वाली TCL के पास केवल 88.89 करोड़ रुपये के ऑर्डर हैं और YIL के 8 कारखानों के पास 700 करोड़ रुपये के ऑर्डर हैं। MIL पर 2025-26 के बाद कोई काम का बोझ नहीं है।

सेना द्वारा आयुध निर्माणियों को सीधे इंडेंट देना बंद करने और खुली निविदा के माध्यम से निजी क्षेत्र में जाने से सभी 7 निगमों का भाग्य दांव पर लगने वाला है। हाल ही में, सेना ने 12 लाख नई डिज़ाइन की सेना की वर्दी की खरीद के लिए एक खुली निविदा जारी की और प्रतिबंधात्मक शर्तें लगाकर TCL के तहत 4 आयुध कारखानों को निविदा में भाग लेने की अनुमति भी नहीं दी गई। सेना ने पैराशूट आयुध निर्माणी की उपेक्षा करते हुए, जो GIL कॉर्पोरेशन के अधीन है, निजी उत्पादकों से 350 नग कॉम्बैट फ्री फ़ॉल पैराशूट सिस्टम (CFF) खरीदने का निर्णय भी लिया है।

आयुध निर्माणी के कर्मचारी और उनकी यूनियनें इस बात को महसूस करते हुए कि यह निजीकरण की दिशा में एक कदम है, निगमीकरण के प्रस्ताव के दिन से ही विरोध कर रहे हैं। हाल ही में, अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (AIDEF), भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ (BPMS) और रक्षा मान्यता प्राप्त एसिओसेशनो के संघ (CDRA) ने रक्षा विभाग को एक विस्तृत नोट प्रस्तुत किया। वे चाहते हैं कि सरकार आयुध कारखानों का निगमीकरण करने के अपने निर्णय को उलट दे और आयुध निर्माणी बोर्ड के तहत विभागीय संगठनों के रूप में आयुध कारखानों की स्थिति को बहाल करे। वे यह भी चाहते हैं कि सरकार 30,000 करोड़ रुपये का उत्पादन हासिल करने के लिए कर्मचारी संगठनों द्वारा दिए गए बहुमूल्य सुझावों को लागू करे।

निजीकरण बड़े इज़ारेदारों के नेतृत्व में शासक पूंजीपति वर्ग का एजेंडा है। एक के बाद एक सरकारों ने दिखाया है कि उन्हें इस एजेंडे को लागू करना है। आखिर सबसे बड़े कारपोरेट ही हैं जो चुनाव के दौरान इन पार्टियों को फंड देते हैं इसलिए उन्हें सरकार बनाने के बाद अपना एजेंडा लागू करना होगा। हमें सरकारों द्वारा दिए गए विभिन्न औचित्यों के बहकावे में नहीं आना चाहिए, क्योंकि हमें बेवकूफ बनाने की कोशिश करना और निजीकरण की ओर ले जाने वाले कदमों को स्वीकार कराना उनके काम का हिस्सा है।

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