निजी क्षेत्र में नये जमाने की यस बैंक जब डूब रही थी तब उसे सार्वजनिक क्षेत्र की स्टेट बैंक ने बचाया। निजी क्षेत्र की कराड बैंक जब डूब रही थी तब उसे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऑफ इंडिया ने बचाया। निजी क्षेत्र में नये जमाने की ग्लोबल ट्रस्ट बैंक जब डूब रही थी तब उसे सार्वजनिक क्षेत्र की ओरिएन्टल बैंक ऑफ कॉमर्स ने बचाया। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक इन निजी बैंकों को न बचाते तो फिर…. जो पुणे के रुपी बैक के, मुम्बई के पीएमसी बैंक के उपभोक्ताओं के साथ हुआ वही इन बैंक के उपभोक्ताओं का होता। रुपी बैंक के उपभोक्ता 8 साल बाद भी रास्ते पर खड़े हैं। पीएमसी बैंक के उपभोक्ताओं मे 100से ज्यादा उपभोक्तांओं की दुर्भाग्यवश मौत भी हुयी है। अपने पैसे डूब जाने का सदमा लगकर उनकी मौत हुई या पैसो के बिना वे इलाज नहीं कर पाये है, इसलिए बिमारी के कारण वे मर गये। कई लोगों ने आत्महत्या कर अपनी जीवनयात्रा समाप्त कर दी है। सार्वजनिक क्षेत्र की बैंको ने निजी क्षेत्र की बैंकों का जहर निगल लिया इसलिए निजी बैंकों के उपभोक्ता बच गए किंतु सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों का निजीकरण करना चाह रही है। ऐसा अगर होता है तो फिर जब कल निजी बैंक डूबते हैं…तो उन्हें कौन बचायेगा?
सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों का निजीकरण हुआ तो इनमें जमा की हुई 10.43 लाख करोड की जमापूंजी असुरक्षित हो जाएगी। जनता को हमेशा एक अस्थिर और असुरक्षित जीवन का सामना करना पडेगा। हम जनता जनार्दन से गुजारिश करते हैं कि जागते रहो…रात दुश्मनों की है। सरकार कोई भी समय सार्वजनिक क्षेत्र की बैकों के निजीकरण का निर्णय ले सकती है! सरकार की यह चाल नाकाम करने के लिए हमें अपना आवाज ज्यादा से ज्यादा बुलंद करना होगा। आखिरकार जनमत के आगे सरकार को झुकना ही पडे़गा।
चलो तो फिर हम बैंक उपभोक्ता और कर्मचारी एकजुट होकर सरकार की यह कुटिल चाल नाकाम कर दें।
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निजी क्षेत्र के बैंक उनकी सर्विसेस के लिए हमसे बहुत ही ज्यादा पैसे लेते है। हमें यह हमेशा ध्यान में रखना होगी की कोई भी निजी बैंक हमें सेवा देने के लिए नही हैं। निजी क्षेत्र का मूल उद्देश ज्यादा से ज्यादा मुनाफा बनाना होता है। इसीलिए निजी बैंक उनमे जमा करने वाले उपभोक्ताओं को कम से कम ब्याज दर देगा और उसके विपरीत जब कर्जा लेने का समय आये तो वो कर्जे हमें महंगे ब्याज दरों पर मुहैया कराये जायेंगे।
आज सार्वजनिक बैंक की शाखायें देश के हर कोने मै यह तक की गाँवो में भी फैली हैं। कोई भी निजी बैंक अपनी शाखायें गाव में नही खोलना चाहेगा क्योंकि वहां मुनाफा की संभावनाएं न के बराबर हैं।
इसलिए हम सभी उपभोक्ताओं का यह फर्ज़ बनता है की बैंक कर्मचारियों के साथ मिलकर निजीकरण को हराये।