पूंजीपतियों की शर्तों पर निजीकरण – दो पीएसबी से पूरी तरह बाहर निकलने वाली है सरकार

कामगार एकता कमिटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट

पूंजीपति न केवल केंद्र सरकार को बता रहे हैं कि किन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) का निजीकरण करने की जरूरत है, बल्कि उन शर्तों को भी तय कर रहे हैं जिन पर उनका निजीकरण किया जाना चाहिए।

जब सरकार ने पिछले साल दो पीएसबी के निजीकरण की घोषणा की, तो उसमें 26% स्वामित्व बनाए रखने की योजना बनाई थी। इसका मतलब यह हुआ कि उन बैंकों के संचालन में उसकी कुछ भागीदारी जारी रहेगी। पूंजीपतियों ने सरकार से कहा कि वे नहीं चाहते कि निजीकरण के बाद सरकार बैंकों में किसी भी तरह से शामिल हों। यह बताया जाता है कि बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम संशोधन विधेयक, जिसे आगामी मानसून सत्र में पेश करने की योजना है, तदनुसार बदल दिया गया है और अब वह सरकार को पूर्ण स्वामित्व बेचने की अनुमति देगा। सरकार का कहना है कि यह “निवेशकों से मिले फीडबैक” के आधार पर किया जा रहा है।

150 यात्री ट्रेनों के निजी संचालन के मामले में भी, यह देखा गया है कि सरकार ने निजी ऑपरेटरों से कहा था कि वे सरकार के साथ राजस्व की राशि साझा करें। निजी ऑपरेटरों ने निजी ट्रेनों के संचालन के लिए निविदा का बहिष्कार किया और सरकार को राजस्व-साझाकरण खंड के खिलाफ अपना विरोध व्यक्त किया। 2021 में जब सरकार ने भारत गौरव ट्रेनों के निजी संचालन की योजना की घोषणा की, तो उसने राजस्व साझाकरण के खंड को हटा दिया। इसने भारतीय रेलवे को इन ट्रेनों के चलने से होने वाली आय से वंचित कर दिया।

कुछ महीने पहले जब एलआईसी के शेयरों का एक हिस्सा बेचने का फैसला किया गया था, तब शुरू में एलआईसी का मूल्य 15 लाख करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान लगाया गया था। लेकिन, “निवेशकों की सलाह” पर शेयरों की बिक्री के समय एलआईसी का मूल्य मूल अनुमान से घटाकर एक तिहाई कर दिया गया था। इसका परिणाम हुआ कि “निवेशक” एलआईसी के शेयर एक तिहाई कीमत पर खरीद सके।

एयर इंडिया के निजीकरण का इतिहास बताता है कि कैसे सरकार निजीकरण के हर प्रयास में पूंजीपतियों के लिए शर्तों को अधिक से अधिक अनुकूल बनाती गयी, लेकिन उन्होंने एयर इंडिया को तब तक खरीदने से इनकार कर दिया जब तक कि सरकार उनकी इच्छित शर्तों पर सहमत नहीं हो गई। पूंजीपतियों ने जोर देकर कहा कि सरकार को पूर्ण स्वामित्व देना चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने सरकार से एयर इंडिया के अधिकांश ऋण की जिम्मेदारी लेने और पूंजीपतियों द्वारा भुगतान की जाने वाली ऋण राशि को निर्दिष्ट नहीं करने के लिए कहा। जब सरकार इन शर्तों पर सहमत हो गई, तभी एयर इंडिया का निजीकरण किया जा सका।

निजीकरण का हर मामला बार-बार दिखा रहा है कि निजीकरण देश के बड़े पूंजीपतियों का एजेंडा है जो तय कर रहे हैं कि क्या, कब और कैसे निजीकरण किया जाए। क्या यह नहीं दर्शाता है कि देश के असली शासक यही बड़े पूंजीपति हैं और सरकार को उनकी बात माननी पड़ती है?

केवल श्रमिकों का एकजुट विरोध और पीएसयू और पीएसबी के उत्पादों और सेवाओं के उपयोगकर्ताओं/उपभोक्ताओं की भागीदारी ही इस मजदूर विरोधी, जनविरोधी एजेंडे को रोकने में सक्षम होगी।

 

 

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