ब्रिटेन में रेलकर्मियों की लगातार हड़तालें हर जगह कामगारों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं

अशोक कुमार, संयुक्त सचिव, कामगार एकता कमिटी (KEC)

हम ब्रिटेन के रेलकर्मियों की हड़ताल की रिपोर्ट पहले से ही देते रहे हैं। कृपया देखें “Train drivers in England and Scotland struck work on 13th August 2022 for pay rise to offset soaring food and fuel prices” (17 अगस्त 2022: https://aifap.org.in/6341/) और “ब्रिटेन के रेल कर्मचारियों की लगातार हड़ताल जारी” (22 अगस्त 2022: https://hindi.aifap.org.in/6138/): “ब्रिटेन में 45,000 से अधिक रेल कर्मचारी, रेल, समुद्री और परिवहन श्रमिक संघ (RMTI) और परिवहन वेतनभोगी कर्मचारी संघ (TSSA) के सदस्य, इस सप्ताह गुरुवार 18 अगस्त और शनिवार 20 अगस्त को राष्ट्रीय हड़ताल के एक और दौर में चले गए”।

पिछले कई महीनों से वेतन वृद्धि के लिए संघर्ष कर रहे करीब 40,000 रेलकर्मी शनिवार, 8 अक्टूबर, को फिर से हड़ताल पर गए।

ये हड़तालें पिछले दो महीनों से नियमित रूप से हो रही हैं, जिसका अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है। ये हड़तालें हमें सामान्य तौर पर पूंजीवादी व्यवस्था के बारे में क्या सिखाती हैं? हम विशेष रूप से भारत के लिए क्या सबक सीख सकते हैं?

क्या कोई इस बात से इंकार कर सकता है कि समाज की भलाई और उसकी प्रगति के लिए श्रमिकों, किसानों और मेहनतकशों का श्रम महत्वपूर्ण है? हम में से कितने लोग उस काम के बिना जीवित रह सकते हैं जो हमारे भोजन, वस्त्र, आवास आदि का उत्पादन करता है? बिजली, परिवहन के साधन, स्वास्थ्य, शिक्षा, आईटी सेवाओं आदि के बिना हमारा जीवन कैसा होगा?

फिर यदि हमारा श्रम इतना महत्वपूर्ण है, तो क्या हमें वर्षों में प्रगति और बढ़ती समृद्धि की उम्मीद नहीं करनी चाहिए? क्या हमारे काम करने की स्थिति में सुधार नहीं होना चाहिए?

भारत में हम जानते हैं कि जो हो रहा है वह वास्तव में विपरीत है। हममें से कुछ लोगों को यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि इस मामले में भारत कोई अपवाद नहीं है। तथाकथित “अमीर” देशों जैसे यूके, यूएसए और यूरोप के श्रमिकों को भी कीमतों में वृद्धि, नौकरी में कटौती, काम की बिगड़ती स्थिति, सेवा की असुरक्षा आदि का सामना करना पड़ रहा है।

यूके में, भारत की तरह, रेल कर्मचारी अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में हैं, लेकिन उन्हें भी अपने जीवन स्तर को बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है (जो कि किसी भी तरह से बहुत अधिक नहीं हैं)। उन्हें प्रति वर्ष केवल 4% की वेतन वृद्धि की पेशकश की गई थी, जब वार्षिक मुद्रास्फीति 10% से अधिक और बढ़ रही है। वास्तव में इसका क्या मतलब है?

उदाहरण के लिए हम एक मज़दूर को लेते हैं जिसने पिछले साल 1000 पाउंड प्रति माह कमाया था। शालीनता से रहकर उसने और उसके परिवार ने उस पैसे को केवल परम आवश्यकता पर खर्च किया। यदि वह प्रस्तावित वृद्धि होती है तो इस वर्ष उसे प्रति माह 1040 पाउंड मिलेगा। लेकिन, अब वह उन सभी परम आवश्यकताओं को वहन करने में सक्षम नहीं होगा जो उसने पिछले साल खरीदी थी, क्योंकि अब उसे उनके लिए 1100 पाउंड की बढ़ी हुई कीमत का भुगतान करना होगा। इसका सीधा सा मतलब है कि वह वास्तव में पहले से ज्यादा गरीब होगा!

घाव पर नमक छिड़कने के लिए, प्रस्तावित वेतन वृद्धि इस शर्त के साथ आती है कि मज़दूर 2,000 नौकरियों की छंटनी के साथ-साथ नियमों और शर्तों में बड़े बदलाव को स्वीकार करे। इसका मतलब होगा अधिक रात की पाली—साल में 40 सप्ताह की रात की पाली। यह लोगों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के साथ-साथ सामाजिक जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित करेगा। कोई आश्चर्य नहीं कि उन्हें लड़ना पड़ रहा है!

यह कोई काल्पनिक स्थिति नहीं है। इन देशों में उन मज़दूरों की संख्या बढ़ रही है जो दिन में केवल एक भोजन पर जीवित रह रहे है। इसके अलावा, गैस की कीमतों में जबरदस्त वृद्धि के कारण, सर्दियों में मज़दूरों को धीरे-धीरे भूख से मौत या ठंड से मौत के बीच चुनना होगा!

ब्रिटेन में, हड़ताली मज़दूरों को इजारेदार मीडिया द्वारा पुतिन के कठपुतली (रूस के चमचे) के रूप में लेबल किया जाता है। क्या भारत में लोग अपने अधिकारों के लिए नहीं लड़ रहे लोगों को पाकिस्तानी, खालिस्तानी, गद्दार (देशद्रोही), अंदोलंजीवी (पेशेवर आंदोलनकारी) आदि के रूप में लेबल नहीं किया गया है?
यह क्यों हो रहा है?

तथ्य यह है कि पूंजीपति वर्ग द्वारा शासित प्रत्येक देश, यहां तक कि जिन देशों में लोकतंत्र है, उनमें निम्नलिखित सामान्य विशेषताएं हैं:

• पूंजीपतियों (विशेषकर इजारेदार पूंजीपतियों) और अन्य के बीच की खाई बढ़ती जा रही है।

• सत्ता में पार्टियों की सरकारें इजारेदारों की मदद करती हैं।

• हाल की महामारी जैसे संकटों में भी इजारेदार फलते-फूलते है; उनकी संपत्ति तेजी से बढ़ती है।

• एकजुट संघर्ष के बिना मज़दूर कभी कोई अधिकार नहीं जीतते।

• मजदूरों को जहां है वहीं रहने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।

जैसा कि भारत में, मज़दूरों की बढ़ती संख्या को अनुबंध पर रखा जा रहा है। उनकी लड़ने की क्षमता सीमित है। लेकिन यह बहुत खुशी की बात है कि ब्रिटेन में रेलवे (साथ ही अन्य) कर्मचारी डटकर मुकाबला कर रहे हैं। दुनिया में कहीं भी मजदूरों का संघर्ष हर जगह मजदूरों के लिए प्रेरणा का स्रोत है!

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