कामगार एकता कमिटी (KEC) संवाददाता की रिपोर्ट
हम भारत में इस बात से वाकिफ हैं कि कैसे बड़े पूंजीपतियों के इशारे पर सरकार द्वारा मजदूर वर्ग और लोगों पर चौतरफा हमले किए जा रहे हैं। ऐसा दूसरे देशों में भी हो रहा है। दुनिया भर में इजारेदार कॉरपोरेट हर संकट का उपयोग आसमान-छूते लाभ कमाने के अवसर के रूप में करने में माहिर हैं। महामारी संकट का अधिकतम लाभ उठाने के बाद, अब वे यूक्रेन में युद्ध का लाभ उठा रहे हैं।
तेल और ऊर्जा क्षेत्र में बेल्जियम की बड़ी कंपनियां अत्यधिक मुनाफा कमाने के लिए युद्ध का भरपूर उपयोग कर रही हैं। अप्रैल 2021 से शुरू होने वाले वर्ष में, बिजली की लागत में 49.7%, प्राकृतिक गैस में 139.5%, ईंधन तेल में 57.8%, डीजल में 33.5% और गैसोलीन में 21% की वृद्धि हुई थी। इस अवधि में वेतन वृद्धि केवल 0.4% थी, जो व्यावहारिक रूप से ना के बराबर है। जून 2022 में बेल्जियम में मुद्रास्फीति लगभग 9% थी, जो पिछले 40 वर्षों का रिकॉर्ड है। क्या यह आश्चर्य की बात है कि मजदूर वर्ग के परिवारों को अब अपनी जरूरतों का ख्याल रखना मुश्किल हो रहा है?
बेल्जियम के जनरल लेबर फेडरेशन (FGTB), ईसाई ट्रेड यूनियनों के परिसंघ (CSS) और बेल्जियम के लिबरल ट्रेड यूनियनों के सामान्य परिसंघ (CGSLB) द्वारा आयोजित हड़ताल से बेल्जियम के श्रमिकों ने 20 जून 2022 को देश की कार्यचर्या को ठप्प कर दिया दिया। राजधानी ब्रुसेल्स में 80,000 से अधिक श्रमिकों ने प्रदर्शन में भाग लिया। फरवरी, अप्रैल और मई में पूरे देश में इसी तरह की गतिविधियां आयोजित की गई थीं।
बेल्जियम के कर्मचारी वेतन वृद्धि की सीमा को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं। जबकि कंपनियों के मुनाफे पर कोई कानूनी सीमा नहीं है, बेल्जियम में वेतन की वृद्धि 1996 के वेतन मानक अधिनियम द्वारा सीमित है। ऐसे तर्क का उपयोग करते हुए जो केवल पूंजीपतियों के लिए तर्क संगत है, शासक वर्ग इस अधिनियम को यह कहकर सही ठहराने की कोशिश कर रहा है कि बेल्जियम में वेतन को अन्य यूरोपीय देशों के बराबर रखना आवश्यक है। यह बेल्जियम के श्रमिकों के वेतन को कम करने के लिए पूर्वी यूरोप और दक्षिणी यूरोप के कम वेतन वाले देशों का उपयोग कर रहा है।
यह फिर से दिखाता है कि पूंजीपतियों और श्रमिकों के हितों में कभी भी सामंजस्य नहीं हो सकता, क्योंकि वे बिल्कुल विपरीत हैं, जैसा कि उनका तर्क है। मजदूर वर्ग एक देश में उच्च वेतन का उपयोग सभी में उच्च वेतन मांगने के लिए करेगा!
उनका नारा “फ्रीज प्राइस, नॉट वेज” (कीमतें स्थिर करें, वेतन नहीं) बेल्जियम में गूंज उठा और हर जगह कामगारों के साथ तालमेल बिठाया।। वे ऊर्जा की कम कीमतों, न्यूनतम वेतन में वृद्धि और श्रमिकों की यात्रा लागत में मालिकों के योगदान में वृद्धि की भी मांग कर रहे हैं।
बेल्जियम की राजधानी होने के अलावा, ब्रुसेल्स यूरोपीय संघ (EU) और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) का मुख्यालय भी है। मीडिया द्वारा अपने कार्यों को सही ठहराने के प्रचार के बावजूद, वहां के कई मजदूरों ने अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो गठबंधन और यूक्रेन में युद्ध में इसकी भूमिका और रूस के खिलाफ यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों की निंदा की। उन्होंने यूक्रेन को हथियारों की बिक्री में भारी वृद्धि की निंदा की क्यों कि उस से शस्त्र उद्योग को अत्यधिक लाभ होता है। उन्होंने मांग की कि सरकार युद्ध पर खर्च करना बंद करे और मेहनतकश लोगों की भलाई में निवेश करना शुरू करे! उन्होंने रूस के प्रति अमेरिका के नेतृत्व वाली पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियों की आक्रामक नीतियों को वर्तमान मूल्य-वृद्धि के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया।
“वेतन के लिए पैसा, युद्ध के लिए नहीं!” “नाटो बंद करो!” इन नारों ने बेल्जियम के मजदूर वर्ग की भावनाओं को छू लिया।
हम बेल्जियम के मजदूरों के संघर्ष का समर्थन करते हैं! दुनिया के मजदूरों, एक हो!