दूरसंचार क्षेत्र

पिछले कुछ दशकों में तकनीकी विकास ने संचार को बदल दिया है। उच्च गति और कुशल दूरसंचार अब उद्योग, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन और हमारे जीवन को छूने वाली लगभग हर चीज के लिए महत्वपूर्ण हो गया है।
हमारे देश में भी पिछले एक दशक में टेलीकॉम सेक्टर का बहुत तेजी से विस्तार हुआ है और अब यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा है। इसके 118 करोड़ मोबाइल सब्सक्राइबर हैं। मोबाइल एप्लिकेशन डाउनलोड करने के मामले में भी भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है। इसके 75 करोड़ इंटरनेट सब्सक्राइबर हैं।

इस सेक्टर से सालाना 2,70,000 करोड़ रुपयों से ज्यादा की राजस्व होता है। और लगातार बढ़ने की उम्मीद है। इसीलिए देशी-विदेशी इजारेदारों की भारतीय बाजार में दिलचस्पी है।

 

अत्यधिक एकाधिकार वाला दूरसंचार क्षेत्र!

कई भारतीय और विदेशी निजी कंपनियों ने 2000 और 2015 के बीच दूरसंचार क्षेत्र में प्रवेश किया। लेकिन इस अवधि में उनमें से 16 से अधिक ने या तो परिचालन बंद कर दिया है या विलय कर दिया है या अन्य निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा उनपर कब्जा हो गया है। अभी तक दूरसंचार क्षेत्र का अत्यधिक एकाधिकार हो चूका है, केवल 3 निजी क्षेत्र की कंपनियों के पास 90% के करीब है जबकि शेष BSNL के पास है

प्रतिस्पर्धा को खत्म करने और एकाधिकार बनाने के हेतु से, JIO ने उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए जानबूझकर मुफ्त सेवा और हिंसक मूल्य (predatory pricing) निर्धारण शुरू की किया। इस दौरान सरकार BSNL का समर्थन करने के बजाय शीर्ष स्तर पर से जियो को सपोर्ट करती रही है और वह भी काफी बेशर्मी से। नई दिल्ली में नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक के सचिव से लेकर नीचे तक के सभी अधिकारियों को JIO कनेक्शन दिए गए हैं. वर्तमान प्रधान मंत्री तो अपना उत्पाद मुफ्त में देनेवाले JIO के ब्रांड एंबेसडर भी बने नियमों के बावजूद, JIO को अपनी प्रचार मूल्य निर्धारण योजना को तीन महीने से अधिक बनाए रखने की अनुमति दी गई थी।

जियो की हिंसक गतिविधियों के कारण एयरटेल को 2019 से 2021 तक रु. 63000 करोड़ का, Vodafone Idea को 2019 से 2020 तक रु. 88,000 करोड़ का और BSNL को 2018 से 2020 तक रु. 38000 करोड़ का घटा हुआ। बेशक इनमें से कोई भी निजी कंपनी अपने पैसे से जोखिम नहीं उठा रही है। इन सभी ने बुनियादी ढांचे के विस्तार के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थानों से कर्ज लिया है और 31 मार्च 2020 तक दूरसंचार कंपनियों का कुल कर्ज रु. 4.4 लाख करोड़ से अधिक था। इसमें से अधिकांश के बैंकों के NPA में परिवर्तित होने की बड़ी संभावना है। इस प्रकार मेहनतकश लोगों की मेहनत की कमाई को लूट लिया जाता है।

 

पूर्ण निजीकरण की ओर तेज कदम

मौजूदा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम को भूखा रखें, इसे इस हद तक अपंग कर दें कि उपभोक्ता उस सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम के श्रमिकों को दोष देना शुरू कर दें, ऐसी नीतियां बनाएं जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से निजी क्षेत्र की सहायता करें, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम का निगमीकरण शुरू करें और अंत में निजीकरण के लिए एक धक्का दें; 1991-92 में राव-मनमोहन के नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार द्वारा उदारीकरण और निजीकरण द्वारा वैश्वीकरण (LPG) की नीति शुरू किए जाने के बाद से हर मौजूदा सरकार द्वारा अपनाई जाने वाली यह रणनीति है। दूरसंचार क्षेत्र के मामले में यह रणनीति सबसे स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इन युक्तियों के परिणामस्वरूप दूरसंचार क्षेत्र, जो 1995 में पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र में था, केवल 25 वर्षों में 90% निजी क्षेत्र में हो गया है।

 

निजीकरण की सहायता में केंद्र सरकरों की विभिन्न नीतियां

1984: तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने फ्रांस अल्काटेल के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट का आयात शुरू किया; इस प्रकार दूरसंचार विभाग में निजी प्रवेश की शुरुआत हुई। अगले साल सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम ITI में सभी उत्पादन बंद कर दिया गया था।

1985: MTNL और VSNL के गठन से दूरसंचार क्षेत्र का निगमीकरण शुरू हुआ।

1991: LPG (निजीकरण और उदारीकरण के माध्यम से वैश्वीकरण) की नीति शुरू की गई थी।

1994: सरकार ने दूरसंचार क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया, लेकिन कई लोगों को आकर्षित नहीं कर सकी क्योंकि दूरसंचार विभाग सेवा प्रदाता और नीति निर्माता दोनों था।

1994-95 में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने दूरसंचार क्षेत्र के तीन विभागों में से दो के निगमीकरण के उद्देश्य से एक विधेयक लाया। उस समय भाजपा जैसे विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया था। हालाँकि, 2000 में सत्ता में आने पर, दूरसंचार सेवाओं और संचालन दोनों को भाजपा सरकार द्वारा निगमित कर दिया गया था।

1995: एयरटेल ने 2G तकनीक के साथ परिचालन शुरू किया।

1997: भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) का गठन किया गया ताकि कई बड़े निजी खिलाड़ी इस क्षेत्र में प्रवेश कर सकें।

1999: एक नई राष्ट्रीय दूरसंचार नीति (NTP) की घोषणा की गई।

2000: BSNL की स्थापना हुई।

2002: ग्राहकों को बुनियादी और सेलुलर सेवाएं प्रदान करने की अनुमति निजी कंपनियों को दी गई।

2008: VSNL का निजीकरण किया गया और टाटा समूह को बेचा गया; 3G तकनीक पेश की गई

2010 तक: 15 से अधिक कंपनियों को 3जG सेवाएं प्रदान की गईं जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के योगदान को जानबूझकर कम किया गया। BSNL की बाजार हिस्सेदारी में 17% की गिरावट आई, जबकि कई निजी कंपनियां फलने-फूलने लगीं।

2012: NTP को फिर से “एक राष्ट्र एक लाइसेंस” के रूप में संशोधित किया गया ताकि टाटा, बिड़ला, मित्तल आदि जैसे निजी खिलाड़ियों के लिए बाजार पर एकाधिकार करना आसान हो सके। 4G तकनीक विभिन्न निजी कंपनियों द्वारा पेश की गई थी, लेकिन तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने BSNL को इस तकनीक से वंचित कर दिया था।

अब, JIO द्वारा 5G के लिए परीक्षण पहले ही शुरू कर दिए गए हैं, जबकि BSNL द्वारा 4G सेवा के रास्ते में अभी भी बाधाएं हैं।

31 मार्च 2020 को BSNL की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार उसकी अपनी संपत्ति: ₹146,758 करोड़ (21 अरब अमेरिकी डॉलर) थी।
• पूरे देश में सिर्फ इसकी भूमि संपत्ति – मौजूदा बाजार मूल्य के अनुसार 3 लाख करोड़ रुपये
• 7.5 लाख रूट किलो मीटर से अधिक ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क और 66,000 से अधिक टावर। इस बुनियादी ढांचे को स्थापित करने में 15 साल से अधिक का समय लगा।
BSNL की इन मूल्यवान संपत्तियों पर, यानि भारत के लोगों की इन मूल्यवान संपत्तियों पर, पूंजीपति कब्जा करना चाहते हैं।
BSNL के निजीकरण की तैयारी के लिए कर्मचारियों की संख्या 2015 में 2,20,000 से अधिक से 2020 में 70,000 से भी काम कर दी गई है।

 

BSNL को जानबूझकर व्यवस्थित तरीके से समाप्त किया जा रहा है

जबकि उपरोक्त सभी नीतियां निजी क्षेत्र की सहायता के लिए लागू की जा रही थीं, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम BSNL की रह पर जानबूझकर रोढ़े लगाये जा रहे थे।

जिस दिन से BSNL की स्थापना हुई थी उस दिन से बिलकुल कोई बजटीय समर्थन नहीं था। सारा खर्च इसके आंतरिक संसाधनों से पूरा किया जाता है। BSNL के गठन के समय रु. 7,500 करोड़ रुपये दिए गए थे और सरकार ने कहा था कि वह यह पैसा वापस नहीं लेगी। लेकिन, वादे की अनदेखी करते हुए BSNL से 14,000 करोड़ रुपये वापस ले लिए गए। BSNL ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है। वह ग्रामीण क्षेत्रों में कई सरकारी कार्यालयों के साथ-साथ ATM और बैंकों के कामकाज के लिए आवश्यक है। इन क्षेत्रों में संचालन लाभदायक नहीं है। प्रारंभ में भारत सरकार इन सेवाओं के लिए BSNL को मुआवजा दे रही थी। हालांकि, सरकार ने इस मुआवजे को रोक दिया, जिसके परिणामस्वरूप इसके पास 10,000 करोड़ रुपये से अधिक का बकाया है। ग्रामीण क्षेत्रों में अपने 18000 एक्सचेंजों को बनाए रखने के लिए अनुमान के मुताबिक प्रति वर्ष 4000 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ है।

निजी खिलाड़ियों को 1995 में दूरसंचार क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति दी गई थी। BSNL, 2000 में गठित होने के बावजूद, 2002 तक उसे मोबाइल बाजार में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। यह जानबूझकर सरकार द्वारा सुनिश्चित करने के लिए किया गया था कि BSNL से किसी भी प्रभावी प्रतिस्पर्धा के बिना निजी क्षेत्र तेजी से बढ़ सके। अंततः BSNL के कर्मचारियों के दिल्ली उच्च न्यायालय में लड़ने के बाद, भारत सरकार को BSNL और MTNL को मोबाइल संचालन के लिए लाइसेंस प्रदान करने का आदेश दिया गया था।

यह इतिहास तब दोहराया गया जब 4G स्पेक्ट्रम तकनीक आई। जब व्यापार फलफूल रहा था और अन्य ऑपरेटर प्रति माह लाखों कनेक्शन जोड़ रहे थे, BSNL के पास विकास के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी थी। यह सरकार की नीतियों, राजनीतिक हस्तक्षेप, 4G स्पेक्ट्रम का आवंटन न होने, निदेशक मंडल की नियुक्ति न करने और खराब प्रबंधन निर्णयों से प्रतिकूल रूप से प्रभावित था। 4G तकनीक विभिन्न निजी कंपनियों द्वारा पेश की गई थी लेकिन तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने BSNL को इस तकनीक से वंचित कर दिया था। जबकि अन्य सभी ऑपरेटरों को 2014 में विदेशी उपकरणों के साथ 4G सेवाएं शुरू करने की अनुमति दी गई थी और उन सभी को 2017 तक अपग्रेड किया गया था, मेक इन इंडिया नीति केवल BSNL के लिए अनिवार्य कर दी गई थी; BSNL 4G संचालन शुरू नहीं कर सका, क्योंकि कोई भारतीय आपूर्तिकर्ता था ही नहीं! 30,000 करोड़ रुपये का राजस्व होने के बावजूद BSNL के पास 2013 से 2020 तक वित्त निदेशक ही नहीं था! BSNL कर्मचारियों द्वारा लगभग 3 वर्षों के बहुत संघर्ष के बाद, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने BSNL पुनरुद्धार योजना को आखिर 23/10/2019 को मंजूरी दे दी। उस समय तक निजी संचालक बहुत आगे निकल चुके थे!

BSNL को 4G तकनीक से वंचित कर दिया गया था जबकि भारतीय रेलवे को अगली पीढ़ी की 5G तकनीक की अनुमति दी गई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि निजी ट्रेन ऑपरेटर अपनी ट्रेनों और सिग्नलिंग सिस्टम को चलाने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल करना चाहते हैं। उनकी पैरवी के चलते रेलवे को सबसे पहले 5G आवंटित किया गया।

यह बहुत स्पष्ट है कि एक के बाद एक सरकारों ने BSNL के विस्तार का गला घोंट दिया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि निजी क्षेत्र का स्वतंत्र रूप से विस्तार हो।