श्री आला वंदर वेणु माधव, उप महासचिव, सिंगरेनी रिटायर्ड एम्प्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन हैदराबाद द्वारा
कोयला खदान पेंशन योजना-1998 के अनुसार देशभर में करीब छह लाख कोयला पेंशनभोगियों के लिए न्यूनतम पेंशन 350 रुपये तय की गई थी। पिछले चौबीस वर्षों में राष्ट्रीय ट्रेड यूनियनों और कोल् रिटायर्ड एम्प्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन के आंदोलनों के परिणामस्वरूप, कोयला खान भविष्य निधि संगठन ने न्यूनतम पेंशन 1,000 रुपये का प्रस्ताव रखा है जिसे केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है।
क्या आज के समय में 1,000 रुपये से पेंशनधारकों की बुनियादी जरूरतें पूरी हो सकती हैं? कोयला खदानों में काम करने वालों को सबसे कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। खदानों में गर्मी, रोशनी और हवा की कमी के कारण कई लोग पुरानी बीमारियों से पीड़ित हैं। सेवानिवृत्ति के बाद, वे हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और गुर्दे की बीमारी के कारण अधिकत्तर बिस्तर पर पड़े रहते हैं।
कोयला खनिक देश की रोशनी हैं। लेकिन उन्हें सरकारी कर्मचारियों की तुलना में कम पेंशन मिलती है। उन्हें सरकारी कर्मचारियों की तुलना में कम पेंशन इसलिए मिलती है क्योंकि सरकार उनकी सेवाओं को मान्यता नहीं देती है। कोयला मज़दूरों को नियोक्ता ऐसे देखते हैं मानो वे मशीनों को देख रहे हों। वे उन मज़दूरों पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं जो काम से बाहर हैं। एक हजार रुपये से उनकी तकलीफें खत्म नहीं होंगी।
वे पिछले 24 वर्षों से केंद्र सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों से सूखा भत्ता के साथ न्यूनतम 10,000 रुपये पेंशन देने का अनुरोध कर चुके हैं। पेंशन फंड में कमी है, पेंशनभोगियों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है और कोयला उद्योग में नई भर्तियों की संख्या कम होती जा रही है। दीवान हाउसिंग फाइनेंस कंपनी के 727 करोड़ रुपये के फर्जीवाड़े के कारण पेंशन फंड और भी कम हो गया है। पेंशन फंड में प्रति टन कोयले पर 10 रुपये जमा करने का पूर्व में तय किया गया भुगतान पूरी तरह से लागू नहीं हो पा रहा है। कोयले की बिक्री पर 20 रुपये वसूलने का प्रस्ताव आया है। कोयला खदान मालिकों को अपने मुनाफे का पांच प्रतिशत पेंशन फंड में जमा करना चाहिए। पेंशन फंड को मजबूत करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों तथा कोयला मालिकों को हर साल सेवानिवृत्त कोयला मज़दूरों के लिए एक विशेष फंड स्थापित करना चाहिए और स्थायी प्रस्ताव बनाना चाहिए।