श्री शैलेन्द्र दुबे, अध्यक्ष, ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) द्वारा आह्वान
(अंग्रेजी का अनुवाद)
नंबर 01 – 2025 / फोकस
25 – 02 – 2025
फोकस
बिजली निजीकरण – 26 जून को एक दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान
ऐसा लगता है कि पूरे बिजली क्षेत्र के निजीकरण के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने मिलकर चौतरफा हमला बोल दिया है। इसका मुकाबला करने के लिए हमारे पास एक ही रास्ता है – बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों को भी एकजुट होकर अपनी ताकत दिखानी होगी। बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों की राष्ट्रीय समन्वय समिति ने 26 जून को देशव्यापी हड़ताल करने का फैसला किया है।
निजीकरण की होड़
आज ऐसे हालात अचानक नहीं आए हैं। हम क्रम को समझने की कोशिश करेंगे। एनडीए शासित केंद्र सरकार ने 2014 से 2024 तक अपने पहले दो कार्यकालों में बिजली (संशोधन) विधेयक के जरिए पूरे ऊर्जा क्षेत्र का निजीकरण करने की कोशिश की थी जो सफल नहीं हो सकी। बिजली (संशोधन) विधेयक का मसौदा भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय ने पांच बार प्रसारित किया। बिजली (संशोधन) विधेयक 2014, बिजली (संशोधन) विधेयक 2018, बिजली (संशोधन) विधेयक 2020, बिजली 2021 और बिजली (संशोधन) 2022। कर्मचारियों और इंजीनियरों के कड़े विरोध का नतीजा यह हुआ कि केंद्र सरकार के ये पांचों प्रयास सफल नहीं हो सके।
UT चंडीगढ़ निजीकरण
इसके अलावा 13 मई 2020 को केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने सभी केंद्र शासित प्रदेशों के बिजली विभाग के निजीकरण की एकतरफा घोषणा की थी। यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि लाभ में चल रहे दादरा नगर हवेली दमन और दीव और चंडीगढ़ बिजली विभाग का निजीकरण वित्त मंत्री के आदेशानुसार किया गया है। इससे यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया कि केंद्र सरकार की मंशा पूरे ऊर्जा क्षेत्र का निजीकरण करने की है। इसका लाभ और घाटे से कोई लेना-देना नहीं है।
मुनाफे के निजीकरण का सबसे अनूठा उदाहरण चंडीगढ़ है। चंडीगढ़ एक केंद्र शासित प्रदेश है। चंडीगढ़ हरियाणा की राजधानी है और पंजाब की भी राजधानी है। चंडीगढ़ में बिजली की दरें हरियाणा और पंजाब से सस्ती हैं। वास्तव में, चंडीगढ़ की बिजली दरें उत्तरी भारत में सबसे कम हैं। चंडीगढ़ में पिछले 5 वर्षों से टैरिफ को संशोधित नहीं किया गया था चंडीगढ़ में खुद उपभोक्ता और रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन बिजली कर्मचारियों के साथ बड़े पैमाने पर निजीकरण के विरोध में सड़कों पर उतरे। लेकिन न तो उपभोक्ताओं की सुनवाई हुई और न ही कर्मचारियों की और चंडीगढ़ बिजली विभाग की हजारों करोड़ की संपत्ति को कोलकाता के गोयनका ग्रुप की निजी कंपनी को मात्र 871 करोड़ रुपये में सौंप दिया गया। निजीकरण का अगला लक्ष्य पुडुचेरी बिजली विभाग है।
यूपी बिजली निजीकरण
चंडीगढ़ बिजली विभाग के निजीकरण का रास्ता साफ होते ही उत्तर प्रदेश में निजीकरण शुरू हो गया। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण की घोषणा 25 नवंबर 2024 को की गई। इन दोनों निगमों के कार्यक्षेत्र में यूपी के 42 जिले हैं। निजीकरण की घोषणा होते ही बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों ने मोर्चा खोल दिया। बिजली कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शन को 90 दिन बीत चुके हैं। इस दौरान वाराणसी, आगरा, गोरखपुर और प्रयागराज में बिजली पंचायत और लखनऊ में बिजली महापंचायत का आयोजन किया गया। इन सभी में हजारों की संख्या में बिजली कर्मचारी और किसान शामिल हुए। समझा जा रहा था कि दिसंबर 2024 में ही निजीकरण कर दिया जाएगा। कड़े विरोध के चलते निजीकरण के लिए ट्रांजेक्शन कंसल्टेंट नियुक्त करने के लिए बोली की तिथि दो बार बढ़ाई जा चुकी है।
उत्तर प्रदेश में निजीकरण का विरोध कर रहे बिजली कर्मचारियों और अभियंताओं को दबाने/पीड़ित करने की भी तैयारी चल रही है। इस संबंध में पावर कारपोरेशन प्रबंधन द्वारा समय-समय पर जारी आदेशों का सहारा लिया जा रहा है। आदेशों में लिखा है कि विरोध सभा में शामिल होने जा रहे कर्मचारियों की वीडियोग्राफी कराई जाए, फोटो खींचे जाएं और उन पर कार्रवाई की जाए। विरोध सभा में जाने पर आउटसोर्स कर्मचारियों को तत्काल नौकरी से निकालने के आदेश जारी किए गए। बड़े पैमाने पर आउटसोर्स कर्मचारियों को भी नौकरी से निकालने की कार्रवाई की गई। कर्मचारियों और अभियंताओं की संघर्ष समिति के विरोध के बाद वह कार्रवाई वापस ले ली गई है लेकिन भय का माहौल लगातार बनाया जा रहा है।
राजस्थान – निजीकरण
लगभग उसी समय उत्तर प्रदेश के साथ-साथ राजस्थान में भी सरकार द्वारा बिजली के निजीकरण पर हमला बोला गया। राजस्थान में बड़े पैमाने पर बिजली वितरण सब-स्टेशनों और डिवीजनों के निजीकरण की बोली शुरू हो गई है। राजस्थान में बिजली उत्पादन निगम को भी निशाने पर लिया गया है। बिजली उत्पादन निगम के सबसे बड़े 2420 मेगावाट के छबड़ा थर्मल पावर स्टेशन को एनटीपीसी को ज्वाइंट वेंचर में सौंपा जाना है और दूसरे सबसे बड़े 2000 मेगावाट के झालावाड़ थर्मल पावर स्टेशन को कॉल इंडिया लिमिटेड के साथ ज्वाइंट वेंचर में सौंपा जाना है। राजस्थान के बिजली कर्मचारी और इंजीनियर लगातार सड़कों पर उतरकर बड़े-बड़े प्रदर्शन कर रहे हैं। हर दिन विरोध सभाएं हो रही हैं लेकिन सरकार पर इसका कोई असर नहीं हो रहा है। ऐसा लग रहा है कि सरकार यहां भी निजीकरण पर अड़ी हुई है।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में दो साल पहले नवी मुंबई और कई बड़े शहरों में निजी कंपनियों को समानांतर लाइसेंस देने का फैसला लिया गया था। महाराष्ट्र के बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों के कड़े विरोध के बाद समानांतर लाइसेंस की प्रक्रिया बंद हो गई थी। लेकिन पूरे महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर प्रीपेड मीटर लगाने का काम अडानी पावर और निजी कंपनियों को सौंपा गया है। कहने की जरूरत नहीं कि प्रीपेड मीटर सिर्फ निजी क्षेत्र की सुविधा के लिए लगाए जा रहे हैं। प्रीपेड मीटर लगने के बाद निजी कंपनी को न तो मीटरिंग की दिक्कत होगी और न ही बिलिंग की। प्रीपेड मीटर से रेवेन्यू अपने आप आएगा। उपभोक्ताओं को मोबाइल सिम की तरह रिचार्ज कराना होगा। टाइम ऑफ द डे टैरिफ लागू होने के बाद ज्यादा रेवेन्यू आएगा। RDSS योजना के तहत देशभर में बिजली वितरण कंपनियों के नेटवर्क को बेहतर बनाने के लिए लाखों करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। सभी निजी घरों को यह मुफ्त मिलेगा।
ट्रांसमिशन निजीकरण
ट्रांसमिशन के क्षेत्र में निजीकरण की प्रक्रिया बहुत तेजी से चल रही है। 50 करोड़ रुपये से अधिक लागत के बिजली सब-स्टेशन बनाने के लिए टैरिफ आधारित प्रतिस्पर्धी बोली के आदेश हैं। ट्रांसमिशन के सभी नए सब-स्टेशन निजी क्षेत्र में जा रहे हैं। ट्रांसमिशन में एसेट मोनेटाइजेशन के नाम पर निजीकरण ने नए सिरे से प्रवेश किया है। अब तक ट्रांसमिशन के क्षेत्र में निजी घरानों की गहरी पैठ हो चुकी है।
उत्पादन निजीकरण
विद्युत अधिनियम 2003 के लागू होने के बाद उत्पादन में लाइसेंस की अनिवार्यता समाप्त हो गई। परिणाम हमारे सामने है। आज पूरे देश में उत्पादन के क्षेत्र में निजी कंपनियों की उत्पादन क्षमता पूरे देश के सरकारी क्षेत्र की संयुक्त उत्पादन क्षमता से भी अधिक है, NTPC से भी अधिक है। आज देश का कोई भी ऐसा प्रांत नहीं है जो बिजली के मामले में निजी जनरेटरों पर निर्भर न हो। इन सबके साथ ही सरकारों ने राज्य की बिजली वितरण कंपनियों को बहुत महंगे बिजली खरीद समझौते करने के लिए मजबूर कर दिया है। इतना ही नहीं, आवश्यकता से अधिक बिजली खरीदने के समझौते किए गए हैं। इसका परिणाम यह है कि लगभग सभी प्रांतों की बिजली वितरण कंपनियां एक यूनिट बिजली खरीदे बिना ही निजी जनरेटरों को प्रति वर्ष हजारों करोड़ रुपये बिजली का भुगतान कर रही हैं। स्थिति भयावह है और घाटे के लिए डिस्कॉम को दोषी ठहराया जा रहा है।
उपरोक्त घटनाक्रम से यह स्पष्ट है कि पूरे ऊर्जा क्षेत्र का निजीकरण होने वाला है और उसी के अनुरूप एक-एक करके राज्यों पर हमले किए जा रहे हैं। जिस बहादुरी से चंडीगढ़ के बिजली कर्मचारियों ने 5 साल तक निजीकरण को रोकने के लिए संघर्ष किया है, वह काबिले तारीफ है। लेकिन चंडीगढ़ में भी बिजली कर्मचारियों को कुचलने के लिए ESMA, FIR और तमाम कृत्य किए गए जो पूरी तरह से अलोकतांत्रिक हैं।
निजीकरण – नवीनतम घटनाक्रम
केन्द्र एवं राज्य सरकारों की निजीकरण की पहल को समझने के लिए हाल की घटनाओं पर चर्चा आवश्यक है, जो कि बहुत महत्वपूर्ण है।
19 फरवरी को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली में एक सम्मेलन में कहा कि अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में निजी घरानों ने असाधारण उपलब्धियां हासिल की हैं। अब केन्द्र सरकार विद्युत वितरण के क्षेत्र में निजीकरण के लिए राज्यों को हर प्रकार की सहायता प्रदान करेगी। उन्होंने आगे कहा कि पहले लोग यह बात कहने से डरते थे कि हमने बजट में घोषणा की है कि परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भी निजी कंपनियां आएंगी।
20 फरवरी को केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री द्वारा उत्तरी राज्यों की बैठक ली गई। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बैठक में उत्तरी राज्यों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के साथ मध्य प्रदेश भी शामिल था। इस बैठक के विवरण में कहा गया है कि राज्यों ने वितरण निगमों के निजीकरण के लिए केन्द्र सरकार से मदद मांगी है। केन्द्र सरकार इस संबंध में राज्यों की मदद करने के लिए तैयार है। इस बैठक का उद्देश्य यह प्रतीत होता है कि एक तरह से केंद्र सरकार राज्यों से कह रही है कि बिजली वितरण का निजीकरण किया जाना चाहिए और राज्य सरकारें कह रही हैं कि केंद्र निजीकरण में मदद करे और केंद्र कह रहा है कि वह मदद करने के लिए तैयार है। इस प्रकार बिजली वितरण के निजीकरण की पृष्ठभूमि पहले ही तैयार हो चुकी है।
30 जनवरी को प्रयागराज महाकुंभ से छह प्रांतों महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के ऊर्जा मंत्रियों की एक ऑनलाइन बैठक हुई। यह स्पष्ट नहीं है कि इन प्रांतों का चयन किस आधार पर किया गया। लेकिन इस बैठक में सुधार यानी निजीकरण के लिए मंत्रियों के समूह का गठन किया गया, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री श्री श्रीपद यशो नाइक जी करेंगे और इसके संयोजक उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्री अरविंद कुमार शर्मा होंगे। यह बैठक इन सभी छह राज्यों में निजीकरण की एक कवायद भी है।
21 फरवरी को केंद्रीय ऊर्जा सचिव पंकज अग्रवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर साफ कर दिया कि केंद्र सरकार वितरण निगमों का निजीकरण करने जा रही है। ऊर्जा सचिव पंकज अग्रवाल ने कहा कि ऐसे बिजली वितरण निगमों का निजीकरण किया जाएगा जो टैरिफ नहीं बढ़ा रहे हैं और जहां बहुत महंगे बिजली खरीद समझौते चल रहे हैं। गौरतलब है कि राजनीतिक कारणों से बिजली की दरें नहीं बढ़ाई जा रही हैं और बहुत महंगे बिजली खरीद समझौते भी सरकारों ने ही किए हैं। ऐसे में बिजली कर्मचारियों को क्यों परेशानी उठानी चाहिए।
इन सब घटनाक्रमों से साफ पता चलता है कि केंद्र और राज्य सरकारें निजीकरण पर आमादा हैं। अगर सरकार कहती है कि घाटे में चल रही डिस्कॉम का निजीकरण किया जाना है तो फिर मुनाफे में चल रहे चंडीगढ़ बिजली विभाग का निजीकरण क्यों किया गया है। ट्रांसमिशन निगम मुनाफे में चल रहे हैं, उनका भी निजीकरण किया जा रहा है। यह निजीकरण की तीव्र धारा है और हमें इसका कड़ा प्रतिकार करने के लिए तैयार रहना होगा।
निजीकरण – अधिनियम का उल्लंघन प्रक्रियाधीन
बिजली का निजीकरण करते समय अधिनियम का घोर उल्लंघन किया जाता है। विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131 में कहा गया है कि जब सरकारी बिजली कंपनी का निजीकरण किया जाता है तो उसकी राजस्व क्षमता और उसकी परिसंपत्तियों का उचित मूल्य का मूल्यांकन करना आवश्यक होता है। चंडीगढ़ के निजीकरण के मामले में दोनों ही कार्य नहीं किए गए। चंडीगढ़ की परिसंपत्तियों का राजस्व क्षमता क्या है और उनका उचित मूल्य क्या है, इसका कभी मूल्यांकन नहीं किया गया। चंडीगढ़ में बिजली विभाग की हजारों करोड़ रुपए की परिसंपत्तियों को औने-पौने दामों पर बेच दिया गया। चंडीगढ़ बिजली विभाग की अरबों खरब रुपए की सारी जमीन मात्र एक रुपए मासिक लीज पर दे दी गई।
विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 133 में कहा गया है कि तबादला योजना लागू होने के बाद कर्मचारियों की सेवा शर्तों में किसी भी तरह की कमी नहीं आएगी। चंडीगढ़ में जारी तबादला योजना में लिखा है कि इस योजना के लागू होने के बाद चंडीगढ़ के कर्मचारी सरकारी बिजली विभाग के कर्मचारी नहीं रहेंगे। सेवा शर्तों को प्रभावित करने का यह सबसे बड़ा उदाहरण है। उड़ीसा और दिल्ली में जो हुआ, वह सबके सामने है। निजीकरण के बाद दिल्ली में करीब 50% कर्मचारी एक साल बाद ही रिटायर होने को मजबूर हो गए। चंडीगढ़ में निजीकरण से एक दिन पहले 45% कर्मचारी रिटायर होने को मजबूर हुए।
यूपी- 42 जिलों वाली दो डिस्कॉम का निजीकरण
यूपी में भी यही सब करने की तैयारी है। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की संपत्तियों का मूल्य क्या है और राजस्व की संभावना क्या है, यह जानने की किसी को परवाह नहीं है। पता चला है कि यह सब जाने बिना ही दस्तावेज तैयार किए जा रहे हैं और बहुत कम रिजर्व प्राइस रखा जा रहा है। चंडीगढ़ में रिजर्व प्राइस सिर्फ 174 करोड़ रुपए था, जो चंडीगढ़ में एक साल का मुनाफा था। पता चला है कि उत्तर प्रदेश में लाखों करोड़ रुपए की संपत्तियों का रिजर्व प्राइस करीब 1500 करोड़ रुपए रखा जा रहा है। यह सार्वजनिक संपत्ति की लूट है, इसे हर हाल में रोका जाना चाहिए।
उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में करीब 26000 नियमित कर्मचारी और करीब 50000 आउटसोर्स कर्मचारी हैं। इस प्रकार करीब 76000 कर्मचारियों के सामने नौकरी जाने का खतरा मंडरा रहा है। पावर कारपोरेशन के चेयरमैन की बात से सहमत हों तो कर्मचारियों के सामने तीन विकल्प होंगे। पहला विकल्प निजी क्षेत्र की नौकरी ज्वाइन करना। दूसरा विकल्प अन्य विद्युत वितरण निगमों में वापस जाना और तीसरा विकल्प सेवानिवृत्ति लेना। यदि विकल्प के तौर पर पहले निजी क्षेत्र की नौकरी ज्वाइन करते हैं तो सरकारी क्षेत्र में नौकरी करने आया कर्मचारी निजी क्षेत्र का कर्मचारी बन जाएगा। इसका सीधा असर सेवा शर्तों पर पड़ रहा है। दूसरे विकल्प के तौर पर अन्य विद्युत वितरण निगमों में वापस गए तो सरप्लस हो जाएंगे, फिर छिनने की तलवार लटक रही है और तीसरे विकल्प के तौर पर सेवानिवृत्ति का मतलब नौकरी खत्म होना। क्या इन तीनों ही स्थितियों में विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 133 का उल्लंघन नहीं हो रहा है?
अब ‘या तो कभी नहीं’।
करो या मरो की भावना के साथ संघर्ष का आह्वान।
उपर्युक्त परिस्थितियों से यह स्पष्ट है कि केंद्र और राज्य सरकारें निजीकरण पर आमादा हैं। जहां घाटा है, वहां घाटे के नाम पर निजीकरण। जहां मुनाफा है, वहां भी निजीकरण। केंद्र और राज्य की सरकारें अब बिजली को सेवा नहीं, बल्कि व्यापार के रूप में देख रही हैं। अगर अरबों-खरबों रुपए का इंफ्रास्ट्रक्चर कौड़ियों के भाव मिल जाए, तो इस देश में बिजली से बड़ा बाजार अब कौन सा है? आम उपभोक्ता और किसान सोच भी नहीं सकते कि इससे उन्हें कितना बड़ा नुकसान होगा।
सार्वजनिक संपत्ति की इस लूट को रोकने के लिए उपभोक्ताओं और किसानों के व्यापक हित में और सबसे ज्यादा हमारे हित में बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों को संघर्ष के लिए तैयार रहना होगा।
बिजली कर्मचारियों एवं इंजीनियरों की राष्ट्रीय समन्वय समिति (NCCOEEE) ने 23 फरवरी को नागपुर सम्मेलन में निर्णय लिया है कि 26 जून को देश के सभी बिजली कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर एवं इंजीनियर निजीकरण की प्रक्रिया एवं नीतियों के खिलाफ एक दिवसीय पूर्ण हड़ताल पर रहेंगे। हड़ताल की तैयारी के लिए व्यापक लामबंदी कार्यक्रम तय किए गए हैं। आने वाले 3 महीनों, मार्च, अप्रैल एवं मई में हमें बिजली कर्मचारियों, इंजीनियरों, किसानों एवं उपभोक्ताओं को एकजुट करने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत करनी होगी।
एकता का कोई विकल्प नहीं होता। ध्यान रखें कि यदि बिजली का कोई विकल्प नहीं है, तो बिजली कर्मचारियों का भी कोई विकल्प नहीं है। एकता ही जीत की गारंटी है।
बिजली क्षेत्र संकट में है!
पूरी ताकत से इसकी रक्षा करें!!
बिजली कर्मचारियों एवं इंजीनियरों की एकता जिंदाबाद!
AIPEF जिंदाबाद
इंकलाब जिंदाबाद
शैलेन्द्र दुबे
अध्यक्ष